डॉ. ए. के. अरुण
राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल 2018 के अनुसार, भारत उन देशों में शुमार है जो जन स्वास्थ्य पर सबसे कम खर्च करते हैं। स्वास्थ्य पर जीडीपी का महज 1.02 प्रतिशत खर्च करके सभी लोगों को स्वास्थ्य सुरक्षा देने का सपना देखा जा रहा है। भारत से बेहतर स्थिति भूटान, श्रीलंका और नेपाल की है। ये तीनों देश नागरिकों के स्वास्थ्य पर अपनी जीडीपी का क्रमश: 2.5 प्रतिशत, 1.6 प्रतिशत और 1.1 प्रतिशत व्यय करते हैं।
नेशनल हेल्थ अकाउंट (एनएचए) द्वारा 2014-15 में की गई गणना के अनुसार, प्रति व्यक्ति के स्वास्थ्य पर सालाना सरकारी खर्च 1,108 रुपए है। इसे बढ़ाकर पांच प्रतिशत करने की जरूरत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 2017 में जारी हेल्थ फाइनेंसिंग प्रोफाइल के अनुसार, भारत में स्वास्थ्य पर होने वाले कुल खर्च में से 67.78 प्रतिशत लोगों को अपनी जेब से देना पड़ता है, जबकि वैश्विक औसत 18.2 प्रतिशत है। दूसरे शब्दों में कहें तो स्वास्थ्य बीमा का कवरेज बहुत कम है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल के अनुसार, मिजोरम एकमात्र भारतीय राज्य है, जिसने प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर सर्वाधिक 5,862 रुपए खर्च किए, जो इस राज्य की जीडीपी का 4.2 प्रतिशत है। यह खर्च राष्ट्रीय औसत से करीब पांच गुणा है। मिजोरम के बाद अरुणाचल प्रदेश 5,177 रुपए और सिक्किम 5,126 रुपए प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर खर्च के मामले में दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। वहीं, दूसरी तरफ बिहार स्वास्थ्य पर सालाना 491 रुपए, मध्य प्रदेश 716 रुपए और उत्तर प्रदेश 733 रुपए प्रति व्यय करता है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता भी चिंता का विषय है। देश की एक बड़ी आबादी वहनीय और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2001 से 2015 के दौरान 38,000 लोगों ने उपचार सुविधाओं के अभाव में आत्महत्या कर ली।
ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है। गांवों में बने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) में डॉक्टरों के पद खाली है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिहार की पीएचसी में डॉक्टरों के 63.6 फीसदी पद खाली पड़े हैं।