प्रमोद साह
श्रीमती बिमला बहुगुणा पत्नी स्वर्गीय श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी का आज 14 फरवरी 2025 की प्रातः 93 वर्ष की आयु में निधन हुआ, यह मृत्यु एक देवात्मा का देवत्व में विलय है। परमपिता परमेश्वर पुण्य आत्मा को स्वीकार करें और परिजनों को दुख सहन करने की शक्ति दे।
चिपको आन्दोलन एवं गांधीवादी विचारों की प्रयोगशाला के रूप में अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने वाले स्वर्गीय श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी के एक सक्रिय राजनीतिज्ञ से समर्पित गांधीवादी चिंतक और कर्म योगी बनने की कहानी भी कम दिलचस्प नही है ।
महिला शिक्षा एवं ग्रामीण भारत में सर्वोदय के विचार को दृष्टिगत रख, दिसंबर 1946 में कौसानी में लक्ष्मी आश्रम की स्थापना की गई. इस आश्रम की प्रारम्भ से ही देखरेख महात्मा गांधी की नजदीकी शिष्या सरला बेन (बहन) द्वारा संपादित की गई . आश्रम के प्रति अल्मोड़ा जनपद का रवैय्या उत्साहजनक नहीं था .. लेकिन पौड़ी और टिहरी से प्रारंभ से ही कुछ छात्राओं ने आकर आश्रम को मजबूती प्रदान की। टिहरी से एक साथ 5 छात्राओं ने आश्रम में दाखिला लिया उनमें ही एक थी .”बिमला नौटियाल” अपनी साफ समझ , कड़ी मेहनत और समर्पण की भावना ने बिमला नौटियाल को छोटे समय में ही आश्रम की सबसे प्रिय छात्रा बना दिया. आश्रम से बाहर की सामाजिक गतिविधियों में बिमला का आश्रम द्वारा सर्वाधिक उपयोग किया जाता था । जब विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में आश्रम के प्रतिनिधित्व की बात सामने आई तो, इसके लिए भी बिमला नौटियाल का ही नाम चुना गया था ।
बिमला ने अपने समर्पण और नेतृत्व क्षमता से भूदान आंदोलन में बहुत विलक्षण काम किया, विनोबाजी के मंत्री दामोदर जी ने बिमला जी को “वन- देवी” की उपाधि देते हुए कहा कि ऐसी लड़की उन्होंने पहले कभी नहीं देखी, जो बहुत आसानी और मजबूती से नौजवानों का सही मार्गदर्शन करती हैं ।
भूदान आंदोलन से वापस लौट कर आश्रम के उद्देश्य का ग्रामीण क्षेत्रों में आश्रम की छात्राओं द्वारा अवकाश के दिनों में प्रचार का कार्यक्रम तय किया गया था, यह 1954 की बात थी, जब सरला बहन बिमला नौटियाल को लेकर आश्रम की गतिविधियों के लिए टिहरी को रवाना हुई.. सरला बहन किसी काम के लिए नैनीताल होकर जब लौटी तो बिमला जी काठगोदाम रेलवे स्टेशन में इंतजार कर रहीं थीं । सरला बेन के स्टेशन पहुंचते ही बिमला नौटियाल ने पिता नारायण दत्त जी का लिखा पत्र सरला बहन को दिखाया जिसमें अंतिम रूप से आदेशित था कि अमुक दिनांक, अमुक माह में उनका विवाह सुंदर लाल के साथ तय कर दिया गया है। विवाह की तिथि में कुछ ही दिन शेष थे. उन्हें जल्दी घर बुलाया है ।
सरला बहन ने विमला से पूछा कि तुम क्या सोचती हो.. उन्होंने उत्तर दिया ” मैंने हमेशा सुंदरलाल जी को भाई की तरह माना है मैं एकदम उस दृष्टि को नहीं बदल सकती, दूसरी तरफ यदि मैं इनकार करूंगी तो गुस्सा होकर पिताजी मेरी छोटी बहनो की शिक्षा रोककर जल्दी में उनकी शादी कराएंगे, फिर पहाड़ में कोई अन्य व्यक्ति नहीं है जिससे मेरे विचार मिल सकें, मैदान में भी विजातीय विवाह के लिए पिताजी तैयार नहीं होंगे, मुझे निर्णय करने और मन को तैयार करने में कम से कम एक वर्ष का समय चाहिए ”
सरला बेन के आगे यह बड़ी दुविधा थी. इससे पहले भी आश्रम की एक अन्य छात्रा राधा भट्ट (बहन) विवाह को लेकर अपने पिता से विद्रोह कर चुकी थीं। वह अब इसकी पुनरावृति नहीं चाहती थी.
बस से टिहरी को जाते हुए एक अजीब उधेडबुन थी. टिहरी से खबर आ रही थी नारायण दत्त जी गांव से टिहरी आ गए हैं. सामान खरीद रहे हैं, बड़े शान से लोगों को निमंत्रण दे रहे हैं।
अब रास्ता सुंदर लाल जी के माध्यम से ही निकल सकता था. टिहरी शिविर में पहुंचकर सबसे पहले यह दुविधा सुंदरलाल जी से साझा की गई उन्होंने कहा “यदि बिमला राजी है, तो उन्हें बेहद खुशी होगी, लेकिन अपनी तरह से कोई जबरदस्ती नहीं, निर्णय के लिए उन्हें समय चाहिए तो वह ले लें ”
किसी तरह शिविर का समापन हुआ, आंखरी रोज अब विमला के घर नौटियाल परिवार का सामना होना था. सारे गांव में हलचल थी, क्या विमला शादी के लिए मान जाएंगी। गंभीर लेकिन आक्रामक मुद्रा में बैठे नारायण दत्त नौटियाल जी से सरला बहन ने कहा “कम से कम आपको कुछ समय देना चाहिए था”।
कड़क आवाज में नारायण दत्त जी ने कहा मैंने बहुत समय दिया, मैंने पत्र लिखा, कुछ लोग तो तार से ही बुला लेते हैं।
सरला बहन ने कहां आपको इतनी जल्दी क्या है ,सुंदरलाल समय देने को तैयार हैं” नारायण दत्त आग बबूला होकर बोले कौन सुंदरलाल ? सुंदरलाल बिमला नौटियाल के भाई भी थे। उम्मीद थी बिमला के भाई कामरेड विद्या सागर नौटियाल सरला बहन के साथ खडे होंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ ।
बिमला ने अभी शादी को हां नहीं भरी थी ,गांव वाले चाहते थे सरला बहन दबाव देकर उसे राजी कर लें । रात ऐसे ही बीत गई ,सुबह अंधेरे में ही स्टेशन पर सुंदर लाल जी के भाई गोविंद प्रसाद जी इंतजार कर रहे थे । उन्होंने कहा कि हमारा परिवार इस विवाह के लिए लालायित है ।आप बिमला जी को राजी कर लें।
आखिर तैयारी के लिए पूरे एक साल का वक्त मिला, बिमला नौटियाल शादी के लिए इस शर्त के साथ तैयार हुई सुंदरलाल जी राजनीतिक कामों को छोड़कर एक आश्रम की स्थापना करें ।
सुंदरलाल जी सहर्ष तैयार हुए और तब सड़क से मीलों दूर सिलयारा आश्रम की शुरुआत की गई ,विवाह तो नए बने, ठक्कर बाबा आश्रम के तीन चार कमरों में ही संपन्न हुआ ।
यह 1955 का साल था। राजनीतिक समझ और सरोकारों से संपन्न एक सक्रिय राजनेता जो जिला कांग्रेस कमेटी के महासचिव थे, जिनकी उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत से नजदीकी संबंध रखते थे। उन्होंने हमेशा -हमेशा के लिए राजनीति से अलविदा कर दिया।
गांधी के दर्शन को विनोबा भावे के बाद न केवल गहराई से समझा बल्कि उसका विस्तार अंतरराष्ट्रीय पटल तक किया। प्रकृति को बचाने और गांधी विचार के क्रियान्वयन में उनका योगदान सर्वविदित है।
इस दौरान जीवन के संघर्ष में, उसकी उष्णता में, जब- जब भी थका देने वाले रेगिस्तान आए, लक्ष्मी आश्रम से गांधी की शिक्षा में परिपक्व श्रीमती बिमला नौटियाल बहुगुणा हमेशा एक ‘”नखलिस्तान” की तरह सुंदरलाल जी के साथ खडी़ रहीं और उन्हें ऊर्जा से सरोवार करती रहीं ।
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