हमारे बारे में

वर्ष 1977 के पन्द्रह अगस्त को नैनीताल समाचार का पहला अंक प्रकाशित हुआ। वह आपात्काल की समाप्ति के तत्काल बाद के दिन थे और लोग ‘दूसरी आजादी’ के बाद की बात करते थे और सपना देखते थे कि ‘नेहरू राजवंश से मुक्ति’ के बाद देश में अब सब अच्छा ही अच्छा होगा। मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी नयी सरकार के मंत्री राजघाट में जाकर शपथ ग्रहण कर आये थे। आपात्काल में जमी—जमाई पत्रिकाओं की छुट्टी हो गई थी और स्थानीय पत्रकारिता में तो एक तरह का शून्य सा था। आजादी के आन्दोलन में डट कर मोर्चा लेने वाले साप्ताहिक पत्र थक कर चूर हो गये थे। पहाड़ों पर ज्यादातर स्थानों पर तो दिल्ली या लखनऊ से छप कर आने वाले दैनिक अखबार भी शाम को या अगले दिन पहुँचते थे। ‘आकाशवाणी’ या ‘बीबीसी’ ही सूचना प्राप्त करने के त्वरित साधन थे।

इस खालीपन को ‘नैनीताल समाचार’ ने बखूबी भरा। हालांकि शुरू में नैनीताल समाचार का स्वरूप एक डाइजेस्ट जैसा रखने की कोशिश की गई। अखबार शुरू करने वाले 23 से 26 साल की उम्र के तीन युवा, राजीव लोचन साह, हरीश पंत और पवन राकेश, राजनीतिक दृष्टि से बहुत परिपक्व भी नहीं थे। मगर समाचार का प्रकाशन पत्रकारिता के क्षेत्र में एक ताजी हवा के झोंके की तरह आया। वह पहाड़ में वन आन्दोलन का दौर था। कोई भी संवेदनशील युवा वन आन्दोलन की ओर खिंचने से बच नहीं सकता था। 28 नवम्बर 1977 को वनों की नीलामी रोकने के लिये हुए प्रदर्शन के दौरान नैनीताल क्लब के जलने के बाद पूरा उत्तराखंड वनान्दोलन की लपटों में घिर गया तो नैनीताल समाचार का भी नया अवतार हुआ— एक तेज तर्रार और जनान्दोलनों के मुखपत्र के रूप में, जो ‘नशा नहीं रोजगार आन्दोलन’ और छोटे—बड़े अनगिनत आन्दोलनों से गुजर कर उत्तराखंड राज्य आन्दोलन और उसके बाद आज भी जारी है।

43 सालों की यात्रा में नैनीताल समाचार एक ओर संघर्षशील जनता की सबसे मुखर आवाज बना रहा तो दूसरी ओर पत्रकारिता का एक अनौपचारिक स्कूल भी। नैनीताल समाचार से शुरू कर सैकड़ों की संख्या में लोग पूर्णकालिक पत्रकार बने। तब पत्रकारिता सिखाने के संस्थान होते ही कहाँ थे ?

नैनीताल समाचार की फाइलों, जिन्हें अभी वैब पर अपलोड होना है, में आपको उत्तराखंड की विविध और सर्वांगीण जानकारियों के साथ यहाँ की जनता के संघर्ष, हर्ष—विषाद और आकांक्षाओं—हताशाओं की सैकड़ों कहानियाँ मिल जायेंगी। 1977 से 2002 तक इसमें प्रकाशित सामग्री से चयनित श्रेष्ठ सामग्री का संकलन ’25 साल का सफर’ के रूप में पुस्तकाकार में उपलब्ध है। मगर नैनीताल समाचार तो आज भी जिन्दा है, अपने पूरे उत्साह, तेजस्विता और जुझारूपन के साथ। 1977 से उलट आज मीडिया बहुत आगे बढ़ गया है। ब्रेकिंग न्यूज के दौर में सूचनायें फटाफट पहुँचती हैं। मगर इसमें वह गहराई कहाँ है ? सच्चाई कहाँ है ? सत्ता से सीधे टकराने का जज्बा कहाँ है ?

इसलिये नैनीताल समाचार पिछले 43 वर्षों की तरह आज भी जरूरी है। बदलते वक्त के साथ अब वह वैब पर भी आ गया है। यह जारी रहेगा….बस इसे आपका सहयोग चाहिये।

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