विनोद पांडे
एक दिन अचानक खबर मिली कि डांठ की सड़क को चौड़ा करने के लिए तल्लीताल के डाकखाने को ध्वस्त किया जाने वाला है। कई लोगों ने कहा कि यह संभव नहीं होगा क्योंकि इसके लिए तो केन्द्र सरकार से अनुमति की जरूरत होगी। पर मुझे अपने एक मित्र का बताया एक वाकया याद आ गया। वाकया बलिया नाले के उपर बस स्टेशन बनाने का है। इसके लिए कमिश्नर कुमाऊँ राकेश शर्मा ने एक बैठक बुलायी थी। बैठक में मौजूद विशेषज्ञों सहित सभी की राय थी ऐसा करना ठीक नहीं होगा क्योंकि भूगर्भ शास्त्रियों का मत है कि तालाब के बीच से लेकर बलिया नाले से होकर एक बहुत बड़ी फॉल्ट लाइन गुजरती है और नैनीताल में बायलॉज के अनुसार नाले के नजदीक तक निर्माण की अनुमति नहीं है तो सबसे बड़े नाले के उपर निर्माण करना कहां उचित होगा? पर कमिश्नर साहब ने कहा कि लेकिन इसे बनाना जरूरी है और प्रस्ताव पारित हो गया। ये घटना भारत में नौकरशाह की ताकत को दर्शाती है। आज देश में नौकरशाह दिनोंदिन मजबूत होते जा रहे हैं क्योंकि जनप्रतिनिधि बौद्धिक और नैतिक रूप से मजबूत नहीं है। इसी नैनीताल में एक बार का किस्सा है, जब डुंगर सिंह बिष्ट जी विधायक थे। डीएम वैंकटनारायण ने एक बैठक बुलायी गयी। वे बहुत तेज तर्रार नौकरशाह थे। डुंगरसिंह जी बैठक में करीब 15 मिनट देर में पहुंचे। उन्हें आश्चर्य हुआ कि बैठक उनके आने से पहले ही शुरू हो गयी थी। उन्होंने इस पर कड़ी आपत्ति की और कहा मैं एक जनप्रतिनिधि हूं, घर से लेकर रास्ते में कई लोग अपनी समस्या लेकर आते रहते हैं, इसलिए मुझे कुछ बिलम्ब हो गया। लेकिन डीएम साहब कार्यवाही शुरू से करने पर तैयार नहीं हुए। विधायक डुंगरसिंहजी के जोर देने पर भी जब कार्रवाई नये सिरे से शुरू नहीं हो पायी तो वह यह कह कर मीटिंग से बाहर आ गये कि हमें आप जैसा जिलाधिकारी नहीं चाहिये और पूरी घटना का विवरण इस सिफारिस के साथ मुख्यमंत्री को भेज दिया कि जो जिलाधिकारी जनप्रतिनिधि का सम्मान नहीं करता उसे तत्काल हटा दिया जाय। मांग मान ली गई और जिलाधिकारी का तबादला हो गया। रायबहादुर जसौद सिंह बिष्ट का मुख्यमंत्री गोबिंद बल्लभ पंत की कार का बिना चुंगी चालान कर देने का तो कई बार जिक्र कई बार हो चुका है, पर अब ऐसे जनप्रतिनिधि नहीं रहे हैं।
जनप्रतिनिधि बनाम नौकरशाह की चर्चा इसलिए की गई क्योंकि डाकखाने को हटाने की मुहिम की सूत्रधार नैनीताल की जिलाधिकारी बतायी जाती हैं। इसलिए मामला गंभीर है। लेकिन यह मानने के कई कारण हैं कि यह निर्णय जिलाधिकारी का अपना निर्णय नहीं है। क्योंकि इस छोटे से मामले में मुख्यमंत्री धामी की सक्रियता दिखती है, वे केन्द्रीय संचार मंत्री ज्योर्तिआदित्य सिंधिया से व्यक्तिगत रूप से मिलने गये थे। इस मुलाकात के बाद सिंधिया ने मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा जिसमें यह स्वीकार भी किया गया कि यह एक विरासत भवन है फिर भी घुमाफिराकर डाकखाने को हटाने की इजाजत दे दी है। यानी राज्य सरकार से लेकर केन्द्र सरकार तक सभी इस मामले में एकमत हैं अर्थात् “एक राष्ट्र- एक राय”। यह राय है कि हर शहर, कस्बा और राजमार्ग की सड़क को अधिक से अधिक चौड़ा किया जाय ताकि इन सड़कों पर यातायात आसानी से गुजर सके। ऐसा लगता है कि यातायात को “पवित्र गाय” जैसा मान लिया गया है और यातायात को कोई असुविधा न हो को एक राष्ट्रीय सिद्धांत के रूप में प्रतिपादित किया जा चुका है। इसलिए इसमें जिलाधिकारी महज एक प्यादे के रूप में हैं। फिर सवाल उठता है कि सड़कों को चौड़ा करना गलत क्यों है? सड़क को चौड़ा करना कतई गलत नहीं है लेकिन सवाल उठता है कि चौड़ीकरण किस कीमत पर?
तल्लीताल डाकखाना एक विरासत की इमारत है, इसे केन्द्रीय संचार मंत्री ने भी स्वीकारा है। इसके अलावा डाकखाने अपने आप में एक विरासत बनते जा रहे हैं। डाकखानों की गरिमा इस बात से समझी जा सकती है कि जिम कार्बेट के पिता क्रिस्टोफर कोलम्बस लंबे समय तक मल्लीताल डाकखाने के पोस्ट मास्टर रहे थे। अभी कुछ दशक पहले तक डाक विभाग लोगों के जीवन का अभिन्न हिस्सा था। एक दूसरे से संपर्क का माध्यम चिट्ठियां ही हुआ करती थी। इसी तरह मनीऑडर तो अपने घर पर पैसा भेजने के लिए एकमात्र साधन था। कुछ समय पहले तक उत्तराखण्ड के प्रवासी लोगों का अपने परिवार के खर्चों का आधार मनीआर्डर ही था। उत्तराखण्ड के दूरस्थ गांवों के लोग मनीआर्डर पर इस कदर निर्भर थे कि यहां की अर्थव्यवस्था को मनीआर्डर इकोनोमी कहा जाने लगा था। त्वरित सूचना के लिए “तार” का कोई विकल्प नहीं था। इसका महत्व इस बात से मापा जा सकता है कि डाकघरों का पूरा नाम था- डाक व तार घर। डाकव्यवस्था का महत्व इस बात से भी समझा जा सकता है कि हाईस्कूल में पोस्टमैन पर निबंध बहुत महत्वपूर्ण निबंध हुआ करता था। उस दौर डाकिये का महत्व के लिए फिल्मी गाने तक लिखे गये- “डाकिया डाक लाया” आदि। नौकरी के लिए आवेदन से लेकर तैनाती आदेश डाक से ही आते थे। यह विभाग इतना महत्वपूर्ण था कि आईएएस की परीक्षा के साथ भारतीय डाक सेवा की परीक्षा होती थी और अभी भी होती है। इसलिए डाकखाने हमारी महत्वपूर्ण विरासत हैं।
जहां तक तल्लीताल डाकखाने का प्रश्न है डाक विभाग के अभिलेखां के अनुसार यह एक विरासत भवन है इसलिए ज्योर्तिआदित्य सिंधिया ने अपने पत्र में स्वीकार किया है कि ये डाकखाना एक विरासत है क्योंकि इस डाकखाने की स्थापना सन् 1883 में हुई थी यानी आज से करीब 140 साल पहले। नैनीताल जिसकी खोज ही 1841 में हुई उसकी विरासतों की अवधि ज्यादा पहले की नहीं हो सकती है। दूसरी बात नैनीताल को बसाया ही अंग्रेजों ने था और नैनीताल को एक “सत मासे बच्चे” की तरह संभाला संवारा। नैनीताल की पहचान लंबे समय तक छोटा विलायत के रूप में होती रही है। इसलिए ब्रिटिशकालीन इमारतें महत्वपूर्ण विरासतें हैं। नैनीताल जैसी पहचान भारत के गिने चुने शहरों को हासिल है। ऐसी विशिष्ट पहचान किसी शहर के पर्यटन के लिए युनीक सैलिंग प्रपोजिशन हो सकता है। इस सबको भुलाकर अगर नैनीताल को भीड़भाड़ वाले पर्यटक स्थल के रूप में ढाला जायेगा तो नैनीताल अपनी असली पहचान खो देगा। इसलिए समय की मांग है कि नैनीताल को ब्रिटिश विरासत के स्थल के रूप में पहचाना जाय और विकसित किया जाय। इससे नैनीताल को राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर एक खास पहचान मिलेगी।
इन सबके अलावा अविभाजित यूपी के समय में भी एक बार यहां से डाकखाने को हटाने का प्रयास हुआ। जिसका सबसे बड़ा विरोध डाकविभाग ने ही किया था। इस तरह की पत्रावली डाक अधीक्षक के कार्यालय में है जिससे पता चलता है कि डाक विभाग के शीर्षस्थ अधिकारी पोस्टमास्टर जनरल ने सरकार को इसके विरोध में पत्र लिखे हैं। जिनका आधार है- बलिया नाले से होकर एक फॉल्ट लाइन गुजरती है, इसलिए इसके उपर भार डालना उचित नहीं होगा। साथ ही इसे विरासत भवन बताया गया है। आज की परिस्थितियां तब से बदतर ही हुई हैं। इसलिए स्वाभाविक है कि जब तब इसे हटाना गलत था तो आज सही कैसे हो सकता है?
संवेदनशील इलाकों में सड़क को जबरदस्ती चौड़ा करने के बजाय आज समय आ गया है कि यातायात के नियंत्रित करने के विकल्पों पर विचार किया जाना चाहिये। नैनीताल के लिए इसके लिए निर्विवाद विकल्प है शहर से बाहर बड़ी पार्किंग बनायी जायं और वहां से नैनीताल के लिए सुविधाजनक शटल बसें चलायी जाय। इससे नैनीताल दीघार्य हो सकता है अन्यथा इस तरह के तुगलकी फरमानों से देर सबेर नैनीताल बर्बाद ही होगा। इसलिए इस विरासत भवन और पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील स्थल से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाय। इसे बचाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किये जाने जरूरी हैं।
फोटो इंटरनेट से साभार