केशव भट्ट
बागेश्वर जिले के साथ ही पिथौरागढ़, चमोली सहित अन्य जगहों में हिमालय की तलहटी में बसे गांवों में सत्तर के दसक के बाद हो रहे बेतहाशा, बेतरतीब खड़िया खनन से हर कोई परेशान है. लम्बे समय से पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर पत्रकारिता कर रहे ओंकार जनौटी कहते हैं कि हिमालय के साथ फोटो खिचाने का शौक तो सभी को है लेकिन हिमालय को बचाने के नाम पर सभी खानापूर्ति करने में लगे रहते हैं. जबकि यूरोप इतिहास से सबक लेकर प्रकृति की ओर लौट रहा है. जर्मनी के डॉयचे वेले में काम कर रहे ओंकार जनौटी की हिमालय पर अपनी एक गहरी समझ है.
बहरहाल! वर्तमान में हाईकोर्ट के आदेश के बाद से बागेश्वर जिले में खड़िया की खदाने बंद हैं. जिलाधिकारी आशीष भटगांई, जिला एंटी इलीगल माइनिंग फोर्स के साथ खनन क्षेत्रों का भ्रमण कर सच्चाई से रूबरू हो रहे हैं. निरीक्षण के दौरान वो खदानों में पैच निर्माण, वृक्षारोपण, श्रमिकों को रहने की व्यवस्था, पीपीएफ, इंश्योरेंस, ग्रामीणों को दी जाने वाली सुविधाओं, सीसीटीवी आदि के बारे में पड़ताल कर जानकारी जुटा रहे हैं. जिलाधिकारी ने कान्डे कन्याल में ग्रामीणों के आवासीय भवनों में आयी दरारों का भी निरीक्षण कर उन्हें हर सम्भव मदद करने का भरोसा दिया है. जिलाधिकारी द्वारा सम्बंधित अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा पारित आदेश का अनुपालन सुनिश्चित किया जाए और खड़िया खदानों में पैनी निगरानी रखते हुए अवैध अतिक्रमण व खनन पर नियमानुसार कड़ी कार्रवाई करने को कहा है.
एक ओर जिलाधिकारी खड़िया खदानों की भयावहता को देख समझ रहे हैं वही उनके द्वारा कान्डे कन्याल में ग्रामीणों के आवासीय भवनों में आयी दरारों का भी निरीक्षण कर उन्हें हर संभव मदद का भरोसा दिया है. वहीं खड़िया लॉबी इन बातों को झुठलाने में लगी है. इस बीच खड़ियावीरों ने सुर्पीम कोर्ट में दौड़ लगाई और दावा किया कि सारी रिपोर्टें मनगढ़ंत हैं. कोर्ट कमिश्नर व न्याय मित्र की ओर से हाई कोर्ट नैनीताल में पेश रिपोर्ट मनगढ़ंत है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार व न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की संयुक्त पीठ में बागेश्वर में खनन कारोबार करने वाली कंपनियों कटियार माइंस एंड इंडस्ट्रीयल कारपारेशन, जगन्नाथ मिनरल्स, दिनेश परिहार, जयधौलीनाग माइंस एंड मिनरल्स, उत्तराखंड माइंस एंड मिनरल्स आदि की ओर से विशेष याचिका दायर की तो कोर्ट में दायर इस विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई हुई, जिसमें कोर्ट कमिश्नर व न्याय मित्र की ओर से हाई कोर्ट नैनीताल में पेश रिपोर्ट मनगढ़ंत बताया गया. याचिका में न्याय मित्र व कोर्ट कमिश्नरों की विशेषज्ञता पर भी सवाल उठाए गए. याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि हाई कोर्ट ने उनका पक्ष नहीं सुना. उन्होंने कहा कि मामले में शिकायत बागेश्वर क्षेत्र विशेष की थी लेकिन हाई कोर्ट ने पूरे जिले में खड़िया खनन पर रोक लगा दी है. खड़िया खनन से संबंधित मामला एनजीटी में भी विचाराधीन है. याचिका में कहा गया कि खनन पर रोक लगने से उनका कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है, लिहाजा रोक तुरंत हटाई जाए. खंडपीठ ने पर्यावरण के मामले को खनन से ऊपर बताते हुए इस मामले में नैनीताल हाई कार्ट के आदेश पर हस्तक्षेप से इन्कार करते हुए याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिए कि हाई कोर्ट के नोटिस का जवाब देते हुए अपना पक्ष उच्च न्यायालय में रखें. कोर्ट ने याचिका सुनवाई योग्य न मानते हुए निस्तारित कर दी है.
अब खड़ियावीर बावले हो ट्रक एसोसिएशन, खच्चर एसोसिएशन के लोगों को आगे कर दबाव बनाने की नाकाम कोशिश में जुटे पड़े हैं. जानकारों का भी मानना है कि खड़िया से सरकारों समेत माफियाओं के हित लंबे वक्त तक प्रभावित नही हो सकते हैं. इसके लिए सब मिलकर एक चोर दरवाजा जल्द बना ही लेंगे. जिलाधिकारी अपनी जो भी रिपोर्ट पेश करें.
पद्मश्री से सम्मानित इतिहासकार, लेखक और शिक्षाविद डॉ. शेखर पाठक का यह कहना सटिक बैठता है कि, ‘सरकारों या किसी समाज को नदियों के साथ ही पहाड़ों की हत्या करने या अधमरा करने का हक किससे मिला है..? यह सवाल भविष्य की पीढ़िया पूछेंगी तो जरूर ही. उन्हें यह चमक नहीं, ज्यादा अंधकार पैदा करने वाली साजिस लगेगी यदि वह हमारी पीढ़ी से जरा सी भी प्रबुद्व होगी तो गुस्सा भी होंगी..!’
सरकार को भी चाहिए कि वो आगे आकर खुद ही निर्णय ले कि हिमालय की इस धरती को कुछ लंबे अंतराल के लिए बख्श दिया जाए ताकि धरती खुद ही अपने जख्मों को भर तो सके. लेकिन..!! ये सब एक सपना जैसा ही हुआ ना..??