राजीव लोचन साह
प्रयागराज में चल रहे महाकुम्भ में मौनी अमावस्या, 29 जनवरी को हुई भगदड़ में तीस व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी। यह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दिया गया आँकड़ा है। हालाँकि कोई भी व्यक्ति इस आँकड़े को स्वीकार नहीं कर रहा है। यह स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश सरकार मृतकों की संख्या को छिपा रही है और उसकी इस कोशिश में गोदी मीडिया उसकी मदद कर रहा है। कुछ यू ट्îूब चैनलों ने अस्पतालों में जाँच-पड़ताल कर यह संख्या 100 से ऊपर सिद्ध कर दी है। मगर सही संख्या तभी मालूम हो सकती है, जब पूरे देश भर में यह पता लगेगा कि कितने ऐसे लोग हैं, जो कुम्भ में गये थे और घर वापस नहीं लौटे। अभी हजारों ऐसे लोग हैं, जो अपने परिजनों को ढूँढने के लिये मारे-मारे फिर रहे हैं। किन्तु लगता नहीं कि सरकार ऐसा करेगी। पता नहीं उसे मृतकों की संख्या छिपाने से क्या हासिल हो रहा है। कुम्भ में भगदड़ मचने की यह पहली घटना नहीं है। आजादी के बाद ही अगर देखें तो 1954 के महा कुम्भ में तीन सौ से अधिक लोगों ने अपने प्राण गँवाये थे। मगर इन सत्तर सालों में दुनिया बहुत आगे बढ़ गयी है। अब ऐसे आयोजनों में व्यवस्था बनाने के लिये आसमान से तक निगरानी रखी जाती है और ड्रोनों का उपयोग किया जाता है। इस दुर्घटना के मूल में यदि जायें तो उत्तर प्रदेश सरकार का अति आत्मविश्वास और अनावश्यक प्रचार दिखाई देता है। कुम्भ हर बारह वर्ष में होता है। लाखों-करोड़ों श्रद्धालु अपनी आस्था के साथ त्रिवेणी में डुबकी लगाने आते हैं। सरकार को सिर्फ उनके लिये व्यवस्थायें करनी पड़ती हैं। इस बार के कुम्भ में देखा गया कि व्यवस्थायें इतनी नहीं थीं, जितना प्रचार था। योगी सरकार ने सदियों से चले आ रहे एक धार्मिक पर्व को पर्यटन का ईवेंट बना कर रख दिया। प्रचार इतना अधिक हो गया कि कल तक ‘आइये-आइये’ कहने वाले अधिकारियों को ही अब कहना पड़ रहा है कि अब आप कुम्भ में मत आइये। प्रयागराज ही नहीं, अयोध्या और वाराणसी भी श्रद्धालुओं से बुरी तरह पट गये हैं।