राजीव लोचन साह
पुरस्कार और सम्मान प्रायः विवादों के घेरे में आ जाते हैं। भारत सरकार द्वारा दिये जाने वाले पद्म सम्मान भी विवादों से परे नहीं हैं। एक दौर ऐसा भी आया था, जब पद्म सम्मान के लिये चुने गये अनेक व्यक्तियों ने सम्मान लेने से ही इन्कार कर दिया था। तब सरकार ने सम्मान घोषित करने से पहले चुने गये व्यक्ति से सहमति माँगना शुरू किया, ताकि बाद में अशोभनीय स्थिति न पैदा हो। कई सम्मानित व्यक्तियों ने सरकार द्वारा किये गये किसी निर्णय अथवा उसके कामकाज को लेकर भी विरोधस्वरूप पद्म सम्मान वापस कर दिया था। 2014 में केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार आने के बाद तो ऐसी अनेक घटनायें हुईं। इस साल के गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत सरकार ने कौसानी के लक्ष्मी आश्रम में रहने वाली राधा बहन को पद्मश्री देने की घोषणा कर एक बार पुनः विवाद की स्थिति पैदा की है। अपना पूरा जीवन समाज को देने वाली 91 वर्षीय राधा दीदी इस वक्त देश की सम्भवतः सबसे वरिष्ठ गांधीवादी कार्यकर्ता हैं। उनके प्रशंसक उन्हें इस सम्मान से बहुत ऊपर मानते हैं। उनके साथ ही साध्वी ऋतम्भरा को एक सीढ़ी ऊपर पद्म भूषण दिये जाने की घोषणा हुई है। साध्वी ऋतम्भरा राम जन्मभूमि आन्दोलन के दौरान अपने नफरत फैलाने वाले उत्तेजक भाषणों के लिये चर्चित हुई थीं। बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिये लिब्रहान कमीशन ने उन्हें भी जिम्मेदार माना था और उन्होंने कुछ समय जेल भी काटी थी। उनके खिलाफ मुकदमा अन्तिम रूप से वर्ष 2020 में खत्म किया गया था। वर्ष 1995 में उन पर मध्य प्रदेश में एक क्रिश्चियन साध्वी की हत्या के लिये भीड़ को उकसाने का आरोप भी लगा था। उनके द्वारा स्थापित दुर्गा वाहिनी, जिसमें महिलाओं को हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है, पर हिंसा करने के अनेकों आरोप हैं। देश भर में अनेक लोगों ने साध्वी ऋतम्भरा को पद्म भूषण दिये जाने पर अफसोस व्यक्त किया है तो उत्तराखंड में लोगों ने आश्चर्य व्यक्त किया है कि ऋतम्भरा को पद्म भूषण और राधा बहन को पद्मश्री!