रेवती बिष्ट
साथी का साथ हो तो जिंदगी हँसाती है, मुस्कुराती है और खुशियों से ओतप्रोत रहती हुई बीतती है। एक लड़की भी अपना सपना, अपनी खुशी ढूँढती है कि क्या पता किताबों में मिल जाए। इसलिए वह पढ़ती रहती है कि कहीं तो मिल जाए। उसकी जन्म पत्री बताती है कि विद्या का ज्ञान प्राप्त करते हुए उसे एक अच्छा लड़का भी मिलेगा।
बचपन से ही कई रिश्ते आने लगते हैं, पर कोई भी जँचता नहीं। आखिर तक वह अच्छे के इंतजार ही में रहती है। वह गांव से हॉस्टल में पढ़ने के लिए भेजी जाती है। वहां कठिनाइयाँ तो बहुत झेलनी पड़ती हैं, पर पढ़ाई के लिए तो यह सब करना ही था। अपने परिवार से दूर तो रहना ही पड़ता है। हॉस्टल में सहेलियाँ तो बन जाती हैं, पर माता-पिता, परिवार की याद में वह उदास रहती है। हॉस्टल के बाहर भी कुछ लड़कियों से उसकी दोस्ती हो गई है, जहाँ वह कभी-कभी जाया करती है।
उन लड़कियों का पड़ोसी एक लड़का भी कभी-कभी आया करता है, जो हाल ही में कॉलेज यूनियन का अध्यक्ष चुना गया है। अधिकांश विद्यार्थियों ने उसे ही अपना वोट दिया था, जबकि उसने कोई बड़े-बड़े पोस्टर न छपवा कर एक छोटी सी पर्ची में मोहर लगा कर नाम लिखा था, शमशेर सिंह बिष्ट (शम्भू) उस पर्ची से ही बहुत बंपर वोटो से शंभू अध्यक्ष पद पर जीते। उसे पहचानने वाली लड़कियों को ताज्जुब होता है कि यही वह अध्यक्ष है, जो लड़कियों से बहुत झेंपता है और सर झुकाए उनके सामने से गुजर जाता है। परंतु कॉलेज में किसी लड़की को किसी लड़के ने परेशान किया तो उसकी खैर नहीं। शमशेर सिंह बिष्ट छड़ी पकड़े हुए वहाँ पहुंच जाते। इसीलिये कॉलेज में लड़के डरते हुए लड़कियों से नहीं उलझते थे। कॉलेज में अनुशासन रखने या पढ़ाई की बात हो, परीक्षाएं समय पर करवानी हो सब पर छात्रसंघ अध्यक्ष का बहुत अनुशासन रहता। लड़कियों की कोई परेशानी हो, हॉस्टल में कोई दिक्कत हो, वे स्वयं पहुँच जाते सभी। लड़कियां कहतीं जीजा जी आ गए, जीजा जी आ गए।
सच में बहुत प्रतीक्षा के बाद शमशेर सिंह बिष्ट उन लड़कियों के जीजा जी बन गए। गाँव में जाति के बड़े-छोटे का बहुत भेदभाव होने से शादी आर्य समाज में हुई। चिपको आंदोलन उन दिनों चरम पर थ। इनका पूरा परिवार उसमें शामिल रहता था। शादी से एक दिन पहले ही वे जेल से रिहा हुए और बहुत ही साधारण तरीके से विवाह सम्पन्न किया। डॉक्टर कच्चाहारी जी अभी भी समाज की सेवा में कार्यरत हैं। उन्होंने हमारी शादी सम्पन्न कराई। पलटन बाजार में इनका परिवार किराये के मकान में रहता था। इनका निवास शीतला देवी मंदिर के पास दो कमरों में था, जहाँ पर आन्दोलन के उनके साथी भी जब-तब रह जाते थे। आंदोलन की रूपरेखा इसी निवास से बनती। तब के छात्र व नेता सभी का आना-जाना लगातार बना रहता था। उनकी माताजी भी सभी का ख्याल रखती थीं और घर पर ही सब का भोजन भी बनता था। कितने भी लोग घर पर आते और बड़े प्रेम से भोजन करते। षष्ठी जोशी, खड़क सिंह, मोहन सिंह आदि गाँव से आकर वहीं रहते। गिर्दा जब भी अल्मोड़ा आते, यहीं पर रहते। प्रेम से दोनों का वार्तालाप होता। वैसे भी दोनों की हर दिन फोन पर भी बातें होती रहती थी। शेखर, राजीव, दीवान, नन्दनन्दन पांडे, जगत, बसंत, कपिलेश भोज भी अक्सर वार्तालाप में शामिल रहते थे।
लम्बी यात्रा रही, डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट की और उनकी सहधर्मिणी के रूप में मेरी। वे संघर्ष के दिन थे। मगर एक लम्बी यात्रा में साथ रहने की खुशी के अहसास के भी। बस इतना हुआ कि उस संघर्ष के कारण अनियमित जीवन ने उनके मजबूत शरीर को अशक्त कर दिया। अनेक रोगों का घर बन गया उनका शरीर। मगर अन्तिम दिनों में भी अपने परिवार और अपने नातियों के बीच वे खुशियाँ ढूँढते रहे। असीम प्रसन्नता प्राप्त करते रहे। उनका जन्मदिन आता रहा, आता ही रहेग। हमेशा उनका जन्मदिन मुबारक रहेगा।