जगमोहन रौतेला
पिछले दिनों हल्द्वानी की कालाढूँगी रोड में सड़क को चौड़ा करने के नाम पर 70 – 80 साल व इससे भी पुराने आम , कंजू , शीशम , बड़ आदि के डेढ़ दर्जन से अधिक पेड़ काट दिए गए । उसके बाद कालाढूँगी रोड में मुखानी तक एक भी पेड़ नहीं बचा है । पुरानी सड़क विरान व बदरंग नजर आने लगी है । इससे पहले भी लगभग सात – आठ साल पहले इसी तरह कुछ पेड़ों को काट डाला गया था या कहें कि उनकी सरेआम सरकारी संरक्षण में हत्या कर दी गई थी । कहीं भी हरियाली के नाम पर मुखानी तक सड़क किनारे एक भी पेड़ अब बचा नहीं है । काट कर मार दिए गए पेड़ों के कुछ अवशेष छोटी – छोटी टहनियों व सूखे पत्तों के निशान के तौर पर अभी भी सड़क किनारे पड़े हुए हैं । उन्हें देखकर राह चलते किसी भी व्यक्ति के मुँह से आह तक नहीं निकल रही है । लगता है कि जैसे हर किसी को इन पेड़ों की हत्या कर दिए जाने का ही इंतजार था ।
तथाकथित विकास के नाम पर वर्षों पुराने हरे पेड़ काटने वालो इसकी हाय से बचोगे नहीं तुम देख लेना । देख तो , पूछ लो हल्द्वानी के कुछ पुराने लोगों के बारे में । उनके परिवारों की क्या स्थिति है आज ? गर्मी के दिनों में बटोही को छॉव कहॉ से मिलेगी ? तुम्हें तो खैर हरे पेड़ की छॉव नसीब ही न हो कभी । चिलचिलाती धूप में तरस जाओ तुम पेड़ की छॉव पाने के लिए । सड़कों के किनारे , नालियों में , गूलों में तुमने अतिक्रमण करवाया है और अब सड़क चौड़ा करने के नाम पर इन बेजुबान पेड़ों की हत्या कर रहे हो ? अतिक्रमण हटवाते , नियमों का सख्ती से पालन करते व करवाते तो इन पेड़ों को काटने की नहीं, बचाने की सोचते ।
एक सितम्बर से एक हफ्ते का ” हिमालय बचाओ ” का ड्रामा करोगे और लोगों को शपथ भी दिलवाओगे । उन्हें पेड़ों की रक्षा करने और पेड़ लगाने को भी कहोगे , लेकिन तुम्हारी गिद्ध दृष्टि हमेशा इन पेड़ को काट डालने पर ही रहती है । कितने दोगले हो रे तुम लोग ? अपनी नहीं तो अपने बच्चों के बारे में सोचो । इस साल तुम लोगों की इसी तरह की जाहिल हरकतों के कारण हल्द्वानी जैसे शहर में भी तापमान 42 डिग्री पार कर गया था । उसके बाद 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर तुम लोगों ने पेड़ लगाने का भरपूर नाटक किया , जो तुम अपनी गिद्ध मंडली के साथ हर साल करते हो । तुम लोगों का यह विद्रूप प्रहसन सावन के पूरे महीने भी चलता रहा । जगह – जगह तुम हरे पेड़ों के हत्यारे पेड़ लगाने , उन्हें बचाने का नाटक करते रहे । कब तक करोगे ऐसे नाटक ? जरा भी दया , शर्म नहीं बची है तुम में ? हर रोज किसी न किसी कालेज , स्कूल व संस्थान में जाकर पेड़ों पर खूब लम्बे – चौड़े व्याख्यान देते हो । कितने निर्दयी और भयानक हो तुम ? अभी भी वक्त है पेड़ों को काटने की नहीं बचाने की सोचो । उन्हें बचाकर कैसे काम किया जा सकता है इसमें लगाओ अपनी यह बुद्धि अगर बची हुई है तो ? वैसे लगता नहीं है कि तुम्हारे अन्दर बुद्धि , विवेक , दया , करुणा जैसा कुछ बचा हुआ भी है ।
जिन पेड़ों की हत्या करवाने से पहले तुममें जरा भी दया व करुणा का भाव नहीं जागा , उन पेड़ों को इतना बड़ा होने में चालीस , पचास , साठ , सत्तर साल लगे होंगे और तुमने उन्हें कुछ ही मिनटों में जमीन पर लिटा दिया । पूरी – पूरी सड़कें विरान कर दी हैं तुमने। कैसे विकास के पैरोकार हो रे तुम ? जो सड़कों को हरियाली से सूना कर दे । जो बटोही के लिए चिलचिलाती गर्मी में दो पल के लिए हरी छॉव न रहने दे , जो विभिन्न प्रजाति के सैकड़ों पक्षियों के रहने के ठौर को खत्म कर दे , जो सड़कों से फलदार वृक्षों का सफाया कर दे। विकास के नाम पर किस तरह के हत्यारे पैदा हो गए हैं समाज में चारों ओर ?
कहॉ हैं वे लोग जो हर साल कथित तौर पर हजारों , लाखों पेड़ लगाने के दावे करते हैं , लेकिन वर्षों पुराने पेड़ों की हत्या कर दिए जाने पर चूँ तक नहीं करते । जिस तरह सरकारी संरक्षण में पेड़ों की हत्या की गई , उससे लगता है कि आज पेड़ लगाने की कम , बल्कि उन्हें किसी भी तरह से बचाए रखने की आवश्यकता अधिक है । जब पेड़ों की हत्या करने से बचाओगे ही नहीं तो उन्हें लगाकर क्या करोगे ?