राजीव लोचन साह
आज सुबह लाउडस्पीकर की आवाज सुन कर कान खड़े हुए। आज कौन सा नया पब्लिक एनाउंसमेंट हो रहा है ? माजरा क्या है ?
गौर से सुना तो मालूम पड़ा कि एक कबाड़ी साइकिल पर लाउडस्पीकर लगाये आवाज दे रहा है। पहले तो हैरानी हुई। फिर धीरे—धीरे गुस्सा सुलगने लगा। अब ऐसा भी होने लगा नैनीताल में। आज कबाड़ी आवाज लगा रहे हैं, कल को शान्त—नीरव रहने वाला नगर मछली बाजार बन जायेगा। गाड़ियों का शोर ही कम है क्या ? अब यह नयी आपदा आ गई। अंग्रेजों की छोटी विलायत का यही हस्र होना है शायद।
जब गुस्सा बेकाबू हो गया तो एस.ओ. तल्लीताल को फोन किया। नगरपालिका तो सो रही है, आप लोग क्या कर रहे हैं ? वे बाहर से विनम्रतापूर्वक सुनते हुए भी मन ही मन हँस रहे होंगे। इस बुड्ढे पर कौन सा खब्त सवार हुआ होगा। कौन सा पहाड़ टूट पड़ा है। कहाँ नहीं होता यह सब ?
कल भी ऐसा हुआ था। मालरोड में एक शादी में बहुत जोर—शोर से फिल्मी गाने लगे थे। इस कोरोना काल में तो अब तक मस्जिदों की अजान और गुरुद्वारों का शबद कीरतन भी बन्द है। फिर यह शोरगुल क्यों ? तब भी पुलिस को फोन किया था। मगर उसने एक सठियाये बुड्ढे की बात पर क्यों ध्यान देना था! दो घण्टे बाद लौटा तो नैनीताल की घाटी उसी तरह फिल्मी गानों से दहल रही थी।
पहले ऐसी बातों को लेकर खुद पहल ले लेता था। ऐसे नामाकूल लोगों को टोकने—फटकारने लगता था। अब नहीं करता। सबने समझाया कि जमाना बदल गया है। कोई दो हाथ जड़ दे, न जड़े एकाध गालियाँ ही दे दे तो क्या कर लोगे ? कोई साथ देने वाला भी है तुम्हारा इस शहर में।
ठीक बात है। शहर तो खूब विकास कर ही रहा है। तालाब में, तालाब के चारों ओर इतना कुछ तो हो रहा हैं। करोड़ों का वारा—न्यारा है। टूरिज्म के नाम पर भी पैसा बरस रहा है। फिर बेमतलब का झमेला क्यों ?