पंकज कुशवाल
अगर आप रोज अखबारों से गुजरते होंगे तो कभी न कभी यह खबर आपकी नजरों में आई होगी। समुद्रतल से 11 हजार फीट की उंचाई व 28 वर्ग किमी में फैला दयारा बुग्याल देशी विदेशी पर्यटकों के लिए ट्रैकिंग का प्रमुख केंद्र बनकर उभरा है। हालांकि, इन दिनों कोविड 19 की वजह से पर्यटन ठप है वरना अमूमन दयारा बुग्याल में साल भर दस से बारह हजार पर्यटकों की आवाजाही लगी रहती है।
दयारा बुग्याल पर पिछले दो दशकों से भू धंसाव का खतरा लगातार मंडरा रहा था। भूधसांव ने इस कुदरत के नायाब तोहफे को कुरूप बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शुरूआती दौर में भू क्षरण रोकने को कुछ चैक डैम बनाने के काम हुए लेकिन वह सफल नहीं हो सके। पारंपरिक रूप से पत्थरों से बनाए यह चैक डैम भी बुग्याल में हुए भूक्षरण के साथ ही खत्म हो गए।
ऐसे में अब वन विभाग बिल्कुल नये विचार के साथ सामने आया है। भू धसांव को रोकने को यह विचार अपनी ओर आकर्षित भी करता है। नारियल व जूट के रेशों से तैयार किए गए केयर नेट, पिरूल से चैक डैम बंडल, बांस के खंूट से बुग्याल में धंसाव रोकने की कवायद की जा रही है।
पूरी तरह से ईको फ्रेंडली यह ढांचा कितना प्रभावी होगा यह समय ही बताए लेकिन यह बुग्याल को बिना कोई नुकसान पहुंचाए धंसाव रोकने का प्रभावी तरीका तो लगता ही है। इस ईको फ्रेंडली तरीके से धंसाव को रूकेगा साथ ही बुग्याल में धंसाव वाले इलाके हरे भरे भी हो सकेंगे।
रैथल के ग्रामीणों की ओर से तैयार किए गए केयर नेट, चैक डैम बंडल लगाने का काम भी रैथल के ग्रामीणों ने ही किया है। वन विभाग के डीएफओ संदीप कुमार जी का भी इस इनोवेटिव आइडिया के लिए धन्यवाद दिया जाना चाहिए। पता चला है कि बुग्यालों में भू धंसाव रोकने का यह अनोखा तरीका पहली बार दयारा में ही प्रयोग में लाया जा रहा है, इसके बाद देश भर में बुग्यालों में हो रहे भू क्षरण में इस तकनीकि को प्रयोग में लाया जाएगा।
वनाग्नि के लिए दोषी माने जाने वाली चीड़ की पत्तियों का भी सदुपयोग है। चीड़ की पत्तियों के बंडल तैयार कर चैक डैम बनाने से वनाग्नि का बड़ा कारण बनने वाला यह चीड़ बुग्यालों के संरक्षण में खपाया जा सकेगा।
दयारा बुग्याल का संरक्षण बेहद जरूरी है, ऐसे में वन विभाग की इस पहल की सराहना होनी चाहिए।