डॉ. चंदन सिंह अधिकारी
जब ग्राम प्रधान, लोगों व प्रकृति के प्रति संवेदशील होते हैं तो वह गांव को स्वर्ग बना सकते हैं, परन्तु यदि उन्हें पर्यावरण की समझ ही न हो अच्छे और बुरे का ज्ञान ही न हो तो गांव नरक भी बन सकते हैं । इस वक्तव्य का जीता जागता उदाहरण है ग्राम चमकना अधे , मल्ला सल्ट , तहसील सल्ट , जिला अल्मोड़ा। इस ग्राम की सभापति हैं श्रीमती शांति गिरीश चंद्र सिंह रावत । श्रीमती शांति अपने पति गिरीश चंद्र की रबर स्टम्प हैं । श्री गिरीश डिफेक्टो ग्राम सभापति हैं और उन्होंने लगभग एक महीने पहले एक बहुत बड़ा मूर्खता पूर्ण निर्णय लिया कि गाँव के लगभग १५० फलदार पेड़ व अन्य कई प्रकार की प्रजातियां जैसे कि गिठी , तिमिल, भीमुल, खयोणा आदि के वृक्ष काट डाले जाएं, और ऐसा ही हुआ भी। विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि चमकना मनराल व डढरी के सभापति ने भी ऐसा ही किया है। इतने सारे सैकङों पेड़ काटने के पीछे क्या मकसद था ? पता चला है कि बन्दर गाँव में न आयें इसलिए यह निर्णय लिया गया कि पेड़़ काट दिए जायें । कई और भी प्रश्न हैं जो अनुत्तरित हैं और जिनका जवाब ग्राम प्रधान को देना है।
– क्या गांव सभा के मीटिंग बुलाई गयी थी जिसमें बहुमत से प्रस्ताव पास हुआ था कि पेड़ काट दिए जायें ॽ
– जो परिवार गाँव में नहीं रहते हैं क्या उनके संज्ञान में ये बात लायी गयी थी ॽ
– क्या जड़ से पेड़ काट कर उनकी लाश विछाना जरुरी था या उनकी प्रूनिंग की जा सकती थी ॽ
– पेड़ काटने से पहले क्या आवश्यक परमिशन ली गयी थी ॽ
जहाँ एक ओर चमकना गांव के सभापति ने ये बर्बरता पूर्ण, घृणित व निंदनीय कार्य किया वहीं दूसरी ओर जखानी गांव बागेश्वर की महिलाओं ने १६ मार्च २०२१ को पेड़ों पर चिपक कर पेड़ नहीं काटने दिए। शांति रावत को इससे कुछ सीख लेने की जरुरत नहीं हैं क्या? चिपको आंदोलन वाले प्रदेश में इस तरह का जघन्य कृत निंदनीय ही नहीं दंडनीय भी है ।
गांव के लोगों ने जब गिरीश से पूछा कि तुम पेड़ क्यों काट रहे हो तो उन्होंने गांव वालों को बताया कि ऊपर से आदेश आया है और गांव में रहने वाले गिने चुने बुजुर्गों व महिलाओं ने उनकी बात पर विश्वास कर लिया। यहाँ पर यह बात उल्लेखनीय है की अधिकतर घरों के लोग प्रवासी हैं और उनके पेड़ बिना उनकी सहमति लिए काट दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त यह बताना भी यहाँ पर उचित होगा की चमकना व आस पास के गावों में कई वर्षों से कोई भी खेती नहीं करता है । अतः बन्दरों द्वारा खेती को नुकसान होता है इसलिए पेड़ काट दिए गए, यह कथन असत्य व भ्रामक है।
हैरानी की बात यह है की एक माह से ज्यादा समय हो जाने के बावजूद न तो स्थानीय प्रशासन , न ही जनप्रतिनिधि, न ही किसी ऐन. जी. ओ. ने इस बर्बरता पूर्ण कृत्य के लिए आवाज उठायी । इस बात से पता चलता है की सामाजिक चेतना की कितनी कमी है इस क्षेत्र में ।
इस लेख के द्वारा, स्थानीय लेखपाल, क्षेत्र विकास अधिकारी, ग्राम विकास अधिकारी व जिलाधीश महोदय हरकत में आ जायेंगे ऐसी आशा है । क्योंकि यदि चमकना गांव के सभापति के खिलाफ कार्यवाहीं नहीं की गयी तो अपने अज्ञानतावश अन्य ग्रामों के सभापति यथा ग्राम सोली, डढरिया, डंगुला, जंतरा, धुरा आदि भी इसी तरह पेड़ों के लाश लगाने में नहीं हिचकिचायेंगे ।
उल्लेखनीय है कि आज भी गांव में यत्र तत्र कटे हुए पेड़ों की लाशें बिछी पड़ी हैं ।