अतुल सती
22 मई को मेधा पाटकर जी के कार्यक्रम के दौरान कुछ छुटभय्या नेता विरोध प्रदर्शन करते रहे जैसे सोसीयल मीडिया में भाजपा के ट्रोल लोगों का पीछा करते हैं गलियों में, बाजारों में और बेटियों का पीछा करते हैं छेड़खानी करते हैं शोहदों की तरह पर जोशीमठ के आपदा प्रभावितों का दुःख दर्द बांटने आई मेधा जी का विरोध समझ से परे था ।
वैसे पूरे डेढ़ साल के आन्दोलन के दौरान भी इनकी यही भूमिका रही कि किसी तरह आन्दोलन टूटे परंतु इनके ये इरादे जनता ने अपनी चट्टानी एकजुटता से नेस्तनाबूद कर दिए। 22 मई को भी खिसियाए से ये 10 लोगों को लाकर वही करने की कोशिश करते रहे।
इनकी सरकार बगैर वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के बाईपास को मंजूरी दे रही है, जोशीमठ के व्यवसायियों के हितों के खिलाफ़ यहां पर्यटकों, तीर्थयात्रियों को रुकने नहीं दे रही है जो जोशीमठ के अस्तित्व के लिए खतरनाक है, उसका विरोध इनके बस का नहीं तो अपनी खीज यहां निकालते दिखे। विरोध की शालीनता के पार एक समय बिलकुल महिलाओं पर हमलावर होते ऐसे बढ़े कि जैसे मार ही डालेंगे। यह दुर्भाग्यपूर्ण था। जोशीमठ की जनता के साथ सहानुभूति रखने के बजाय ये न जाने कौन सा एजेंडा लिए आए थे।
यह ‘जोशीमठ बचाओ संघर्ष समीति’ का कार्यक्रम था जिसके साथ एकजुटता प्रदर्शित करने मेधा जी आई थीं। यह संघर्ष समीति जोशीमठ की आपदा और इसके प्रभावितों के सवालों पर पिछले 18 माह से संघर्षरत है। जिसकी बदौलत प्रभावितों की आवाज देश दुनिया तक पहुंची तब सरकार कुछ चेती। भले अभी भी बहुत से सवालों का हल होना बाकी है जिसके लिए संघर्ष जारी है। इस पूरे दौरान स्थानीय भाजपाईयों, खासकर कुछ नेताओं की भूमिका बिलकुल नकारात्मक रही। 22 मई का प्रदर्शन इसी नकारात्मकता की एक झांकी था ।
जोशीमठ के आपदा प्रभावित जो अभी भी अपने भविष्य और अस्तित्व के लिए संघर्षरत हैं .इनकी इस भूमिका को कभी नहीं भूलेंगे।