गोविन्द पन्त ‘राजू’
उत्तराखंड को राज्य बने हुए 20 साल से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन इस राज्य के विकास और उस विकास में स्थानीय जनता की हिस्सेदारी के लिए कौन सी नीति सही होगी इसके बारे में इस राज्य के अभी दूध के दांत भी नहीं निकले हैं। यहां जितने भी राजनीतिक दल सत्ता में आए और जितने भी मुख्यमंत्री बदले सभी ने टुकड़े-टुकड़ों में ही उत्तराखंड को समझने की कोशिश की।
यदि नारायण दत्त तिवारी को थोड़ा अपवाद मान भी लिया जाए तो यह साफ दिखता है कि उत्तराखंड के प्रायः सभी मुख्यमंत्रियों की प्राथमिकता सिर्फ अपना कार्यकाल पूरा करने और अपने हित को साधने की ही रहीं। राज्य के विकास के लिए कौन सी नीति सबसे उपयुक्त होगी, यह तय कर पाने में सभी मुख्यमंत्री प्रायः विफल रहे और टुकड़े-टुकड़ों में बनी सोच के कारण उत्तराखंड का विकास एक ऐसे राज्य के रूप में हुआ, जिसको यदि एक वाहन मानें तो इसमें चार टायरों की जगह चार अलग-अलग तरह के, अलग-अलग आकार के पहिए लगे दिखते हैं। जाहिर है कि ऐसे वाहन का सुचारू ढंग से चल पाना असंभव होगा। यही स्थिति उत्तराखंड के विकास की भी है।
नीतियों का अभाव हर जगह दिखाई देता है। हर जगह काम चलाओ वाला रवैया है और यही वजह है कि जिन्हें राज्य बनने से पहले प्रमुख संसाधन माना जा रहा था, उन तमाम संसाधनों की आज बेहद दुर्गति हो रही है। जिस पानी और जवानी को उत्तराखंड का सबसे बड़ा संसाधन समझा जा रहा था, उसकी आज क्या हालत है ? जवानी वैसे ही परेशान है। नौकरी मिलने की समस्या वैसी ही है जैसी पहले थी। नए रोजगारों का सृजन नहीं हो रहा, लोग स्वरोजगार करें इसके लिए सरकार की तरफ से कोई नीति नहीं है। कोई ऐसी योजना नहीं है जिसमें उत्तराखंड के संसाधनों को समझ कर विकास और रोजगार का साधन खोजा जा सके। रही बात पानी की तो पानी के बारे में तो पहले कहा जाता था कि उत्तराखंड का पानी बर्बाद हो रहा है। आज पानी बर्बाद भी हो रहा है और बर्बादी भी ला रहा है।
पर्यटन उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को पचासों सालों से सींच रहा है और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का एक विश्वसनीय साधन रहा है। राज्य बनने के बाद, जैसी कि अपेक्षा थी, पर्यटन के सही विकास और उसके जरिए रोजगार देने तथा उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए जो प्रयास किए जाने थे, वह कतई नहीं किए गए। सही नीति के अभाव में पर्यटन आज स्थानीय लोगों की अपेक्षा बाहर के लोगों के लिए अधिक बड़ा साधन बन गया है।
उत्तराखंड में पर्यटन के अनेक रूप हैं। यहां तीर्थाटन के रूप में गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ, और जागेश्वर जैसे बड़े तीर्थ स्थान मौजूद हैं। हरिद्वार, ऋषिकेश, देवप्रयाग, रामेश्वरम, बागेश्वर जैसे संगम और नदी तट पर बसे धार्मिक स्थल हैं तो मौसमी पर्यटन यानी कि गर्मियों में मैदानी हिस्सों की तपन से बचने के लिए पहाड़ों की ठंडी हवा का रसास्वादन करने वाले लोगों के हिस्से का पर्यटन भी हमेशा से लोगों को आकर्षित करता रहा है। नैनीताल, रानीखेत ,मसूरी, लैंसडाउन जैसे अनेक पर्यटक स्थल उत्तराखंड में हमेशा से अपनी-अपनी सुविधाओं के साथ लोगों को आकर्षित करते रहे हैं और अब इस तरह के टूरिस्ट स्पॉट्स का विस्तार समूचे उत्तराखंड के दूरदराज के कोनों तक हो चुका है। नेचर टूरिज्म और वाइल्ड लाइफ टूरिज्म के लिए कार्बेट नेशनल पार्क, राजाजी नेशनल पार्क, गोविंदघाट पशु विहार, बिनसर, अस्कोट, नंदा देवी सेंक्चुरी आदि अनेक पर्यटक स्थल उत्तराखंड में मौजूद हैं और हमेशा से वन्यजीव और प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करते रहे हैं। फिशिंग और बर्ड वॉचिंग के लिए तो उत्तराखंड से बढ़कर कोई दूसरी जगह है ही नहीं।
पर्वतारोहण और पथ आरोहण के शौकीनों के लिए उत्तराखंड में सैकड़ों नजारे बिखरे पड़े हैं। बंदरपूंछ, चौखंबा, त्रिशूल, कामेट, शिवलिंग, नंदा देवी, नंदा कोट और पंचचूली जैसे अनेक हिमाच्छादित पर्वत शिखर पर्वतारोहियों के लिए हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहे हैं। हर की दून, डोडी ताल, केदारताल, रूइंसेरा पास, कालिंदी पास, पिंडारी ग्लेशियर, मिलम ग्लेशियर, मिलम-माणा ट्रैक आदि अनेक छोटे-बड़े ट्रैकिंग रूट घुमक्कड़ों के बीच खासे लोकप्रिय हैं।
साहसिक खेलों के लिए भी उत्तराखंड में एक से बढ़कर एक स्थान मौजूद हैं। पैराग्लाइडिंग के लिए पिथौरागढ़ और पौड़ी में सुविधाएं विकसित हुई हैं तो रिवर राफ्टिंग के लिए ऋषिकेश और घाट पिथौरागढ़ में बहुत ही सुंदर बहाव क्षेत्र उपलब्ध हैं। इन जगहों में रिवर राफ्टिंग का संचालन भी लगातार हो रहा है। नौकायन के लिए नैनीताल, सातताल, भीमताल व नौकुचियाताल जैसी झीलें मौजूद हैं तो और अधिक रोमांचक जल क्रीड़ाओं के लिए टिहरी बांध की झील और उत्तरकाशी में मनेरी भाली परियोजना से बनी झील उपलब्ध हैं। रॉक क्लाइंबिंग, रिवर क्रांॅसग तथा रोप क्राफ्ट के लिए तो अब अनेक स्थानों में सुविधाएं विकसित हो गई हैं। बाइक राइडिंग के शौकीनों के लिए भी उत्तराखंड में खजाने ही खजाने बिखरे पड़े हैं। यानी एडवेंचर स्पोर्ट्स की हर विधा की सुविधाएं उत्तराखंड में उपलब्ध हैं और उन तक पहुंचना भी लोगों के लिए बहुत आसान हो गया है। यहाँ की आबोहवा, घने जंगलों की उपस्थिति और शांति तथा निर्मल वातावरण पर्यटकों के लिए बहुत बड़ा आकर्षण है। इतना सब कुछ होते हुए भी आखिर ऐसा क्यों है कि उत्तराखंड के युवाओं को, स्थानीय लोगों को पर्यटन के इस खजाने में उनका अपना हक ठीक से नहीं मिल पा रहा है ?
सूक्ष्म विश्लेषण करने पर इसकी बहुत सारी अलग-अलग वजहें ढूंढी जा सकती हैं। लेकिन अन्ततः उन सारी वजहों के तार जिस एक बात पर आकर रुक जाते हैं, वह है उत्तराखंड में राज्य के अनुकूल किसी व्यावहारिक पर्यटन नीति का न होना। स्पष्ट है उत्तराखंड के पर्यावरण तथा भू भौतिकी और स्थानीय समाज को केंद्र में रखे बगैर बनी कोई भी नीति न तो उत्तराखंड का भला कर सकती और न ही उससे स्थानीय समाज को किसी प्रकार का लाभ मिल सकता है।
26 अप्रैल 2001 को उत्तराखंड की पहली पर्यटन नीति घोषित की गयी थी। इस नीति के बारे में कहा गया था कि इसका मकसद उत्तराखंड को पर्यटन प्रदेश के रूप में विकसित करना तथा ईको टूरिज्म को प्रोत्साहित करना होगा। इस नीति के तहत पर्यटन स्थलों का राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक प्रचार-प्रसार करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जाना था। मनोरंजन पर्यटन के साथ-साथ संस्थागत एवं साहसिक पर्यटन का विकास करना भी इस नीति का लक्ष्य बताया गया था। इसमें उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड का गठन भी किया जाना था। इस नीति में उत्तराखंड में पर्यटन के जरिये रोजगार को बढ़ाने के लिए पर्यटन के क्षेत्र में पूंजी निवेश हेतु लोक व निजी सहभागिता पर ढांचागत सुविधाएँ विकसित करने की बात भी कही गयी थी। इस नीति का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष चंद्र सिंह गढ़वाली स्वरोजगार योजना था। युवा वर्ग को पर्यटन सेक्टर में अधिकाधिक स्वरोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से “वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली पर्यटन स्वरोजगार योजना“ का प्रारम्भ 1 जून 2002 को किया गया। यह उत्तराखण्ड की पहली स्वरोजगार योजना भी थी। इस योजना की असलियत इसी बात से समझी जा सकती है कि चंद्र सिंह गढ़वाली के परिजनों को ही इस योजनाओं का लाभ नहीं मिल सका था। 2021 में इस योजना को संशोधित करके इस योजना के तहत लाभार्थियों को इलेक्ट्रिक बस खरीदने के लिए सरकार द्वारा 25-33 प्रतिशत या 10-15 लाख रुपए की सब्सिडी दिए जाने का प्रावधान कर दिया गया। यानी राज्य में पर्यटन के विकास के लिए बनी सबसे बड़ी योजना आखिरकार वाहन खरीदने की योजना बन कर रह गयी।
ऐसा ही हश्र राज्य की पहली पर्यटन नीति का भी हुआ। कई बार के संशोधनों के बाद 27 सितम्बर विश्व पर्यटन दिवस पर 2018 में राज्य ने नयी पर्यटन नीति की घोषणा की। इस योजना में उत्तराखंड में पर्यटन की परिभाषा के अंतर्गत धार्मिक पर्यटन, सांस्कृतिक पर्यटन, तीर्थाटन, साहसिक पर्यटन, खेल पर्यटन, चिकित्सा पर्यटन, हेली पर्यटन, पारिस्थितिकीय पर्यटन, फिल्म पर्यटन और वन्य जीव पर्यटन को शामिल किया गया। इस योजना के प्रस्ताव में बताया गया है कि 2006-07 से 2016-17 तक पर्यटन से राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में 50 फीसदी की हिस्सेदारी आयी। 32 पृष्ठों की इस भारी भरकम नीति में बातें तो बड़ी-बड़ी की गयी थीं, लेकिन इन्हें अमली जामा पहनने का काम नहीं हो सका। सबसे दुर्भाग्यजनक बात तो यह रही कि इस नीति में उत्तराखंड में पर्यटन के काम से जुड़े असली और जमीनी स्तर पर काम कर रहे लोगों (स्टेक होल्डर्स) को एकदम हाशिये पर रख दिया गया।
इस नीति में पहाड़ के दूरदराज के गांवों में रह कर ट्रैकिंग, कैंपिंग और अन्य साहसिक खेलों के जरिए रोजी-रोटी चला रहे लोगों, रिवर राफ्टिंग, कैनोइंग तथा अन्य जल क्रीड़ाओं से जुड़े स्वरोजगार कर रहे उद्यमियों, चंद्र सिंह गढ़वाली योजना के जरिए होम स्टे या रेस्टोरेंट के काम में लगे लोगों, स्थानीय ट्रैवल और ट्रैकिंग एजेंसियों के कर्ताधर्ताओं से न तो कोई राय इस नीति को बनाने से पहले ली गई और न ही इस नीति में उनके बारे में व्यावहारिक ढंग से संवेदनशीलता के साथ सोचा गया। क्योंकि नीति में बातें बहुत बड़ी-बड़ी कही गई थीं, इसलिए यह नीति भी बड़े-बड़े लोगों के इर्द-गिर्द ही केंद्रित रही। वैसे भी इस नीति के आने के बाद पहले प्राकृतिक आपदाओं और फिर कोरोना की दो लहरों के कारण उत्तराखंड में जमीनी स्तर पर जितना भी पर्यटन से जुड़ा कारोबार चल रहा था, वह बहुत बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। रही बात इस पर्यटन नीति की, तो यह पर्यटन विभाग के बड़े-बड़े अधिकारियों के दफ्तरों में और मंत्रियों तथा नेताओं के भाषणों तक ही सीमित रह गई है।
उत्तराखंड ने अन्य पहाड़ी राज्यों से भी पर्यटन के बारे में कुछ नहीं सीखा। जम्मू कश्मीर तथा लद्दाख में गाइडों एवं पर्यटन व्यवसाय से जुड़े अन्य लोगों के लिए बीमा की व्यवस्था है। वहां शासन पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों और उद्यमियों को ऋण और सब्सिडी की विशेष सुविधाएं देता है। हिमाचल प्रदेश में सांस्कृतिक पर्यटन और साहसिक पर्यटन से जुड़कर अपना रोजगार कर रहे लोगों के लिए अनेक सुविधाएं हैं। वहां पर्यटन व्यवसाय से जुड़े पंजीकृत उद्यमियों को भी सरकार अनेक तरह से प्रोत्साहन देती है और उनके प्रशिक्षण आदि की निरंतर व्यवस्था करती रहती है। पड़ोसी देश नेपाल में तो वहां की सरकार ने अपने पर्यटन व्यवसाय को इतना संरक्षण दिया है कि पर्यटन न सिर्फ नेपाल की अर्थव्यवस्था का सबसे प्रमुख आधार बन गया है, बल्कि नेपाल के अनेक दूरदराज के गांवों के लोग पर्यटन को मिल रहे सरकारी संरक्षण के कारण अपने गांव में रहकर ही बहुत अच्छे ढंग से अपना निर्वाह कर पा रहे हैं। नेपाल के ज्यादातर ट्रैकिंग और माउंटेनियरिंग के रास्तों में टी हाऊस जैसे खास तरह होटल बनाने या चलाने वालों को भी नेपाल सरकार अनेक तरह की सुविधाएं प्रदान करती है।
उत्तराखंड में ऐसा कुछ भी नहीं होता। राज्य की पर्यटन नीति न तो अपने जमीनी आधार पर केंद्रित है पर न ही पर्यटन से जुड़े राज्य के मूल निवासियों के आर्थिक और तकनीकी विकास के बारे में इसमें कुछ सोचा गया है। राज्य में पर्यटन के क्षेत्र में स्थानीय लोगों की जो भी छिटपुट सफलताएं तथा उपलब्धियां हैं, वह सिर्फ उनके अपने उद्यम, लगन और समर्पण की वजह से ही संभव हो सकी हैं। राज्य की नीति की सफलता सिर्फ यही है कि इसने राज्य के पर्यटन उद्योग की लगाम धीरे-धीरे राज्य से बाहर के लोगों के हाथों में सौंपनी शुरू कर दी है। साहसिक खेलों और पर्वतारोहण आदि से जुड़ी तमाम गतिविधियों की बागडोर अधिकतर राज्य से बाहर की बड़ी-बड़ी एजेंसियों के हाथों में आ चुकी है। धार्मिक पर्यटन का भी बड़ा हिस्सा बाहरी ट्रेवल एजेंसियों के हाथ में है और हेली पर्यटन आदि के बढ़ते जाने के कारण यात्रा मार्ग में पर्यटकों के जरिए रोजी-रोटी चला रहे स्थानीय लोगों पर इसका जबरदस्त दुष्प्रभाव पड़ा है। रही सही कसर अदालतों के अलग-अलग समय पर आए आदेशों ने पूरी कर दी, जिसमें स्थानीय लोगों की आवाज को बराबर अनसुना किया जाता रहा है। रैणी गांव को लेकर उत्तराखंड हाई कोर्ट का ताजा फैसला इसका ज्वलंत उदाहरण है ।
नई पर्यटन नीति की पहली और सबसे बड़ी उपलब्धि जून 2019 में औली के शांत और स्वच्छ वातावरण में दक्षिण अफ्रीका के कुख्यात गुप्ता बंधुओं के परिवार की 200 करोड़ की शादियों के रूप में सामने आई, जिसने औली क्षेत्र में लगभग 2,000 कुंतल कचरे का अंबार लगा दिया। साफ दिखता है कि पर्यटन के प्रति हमारी दृष्टि कैसी है और यह किसके पक्ष में खड़ी है।
फोटो : गूगल से साभार