केंद्र सरकार बीटी बैंगन के लिये फील्ड ट्रायल की अनुमति देने की तैयारी कर रही है। जीईएसी (जेनेटीक इंजीनिअरिंग अप्रूवल कमेटी) की मई 2020 को हुई बैठक में कंपनी को फील्ड ट्रायल के लिये अनुमति देने का निर्णय लिया गया है। सरकार नोटिफिकेशन जारी कर इसे कभी भी लागू कर सकती है। जिससे बीटी बैंगन के लिये मार्केट में प्रवेश का रास्ता खुल जायेगा।
जीएम बीज की अनुमति के लिये बिज कंपनियां लगातार प्रयास कर रही है। देश के कई राज्यों में गैरकानूनी तरीके से सरकार से अनुमति लिये बिना सरसों, बैंगन, चावल आदि कई बीटी फसलों की फील्ड ट्रायल की जा रही है। इस गैरकानूनी काम में कृषि विश्व महाविद्यालय भी शामिल हुये है।
भारत में चावल, गेहूं, सोयाबीन, मक्का, सरसों, मूंगफली, बैंगन, भिंडी, मिर्ची, गोभी, आलू, टमाटर, प्याज, सेब, केला, पपीता, तरबूज आदि 100 से अधिक जीएम फसलों की अनुमति के लिये कंपनियां प्रयास कर रही है। भारत में प्रतिबंध के बावजूद जीएम फसलों की खेती कराई जा रही है। कंपनियों द्वारा किसानों को फसांकर कई राज्यों में बीटी फसलें उगाई जा रही है। इस गैरकानूनी काम को रोकना सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन कंपनियों पर कारवाई करने के बदले सरकारें निर्दोष किसानों पर कारवाई करती है।
भारत में बीटी कपास को पहले ही अनुमति मिली है। 2009 में बीटी बैंगन के लिये भी स्वीकृति दी गई थी। लेकिन किसानों के भारी विरोध के कारण तत्कालिन सरकार ने फरवरी 2010 में बीटी बैंगन पर रोक लगाई थी लेकिन जीईएसी के बैठक में बीटी बैंगन को फील्ड ट्रायल की अनुमति देने के निर्णय से यह स्पष्ट है कि केंद्र सरकार बीटी बैंगन को फील्ड ट्रायल की अनुमति देने जा रही है।
जेनेटीक मॉडिफाइड बीटी बीज का स्वास्थ्य, खेती, पर्यावरण, जैवविविधता पर बुरा असर पडेगा। साथ ही किसानों की बीज स्वाधीनता पूरी तरह से खतम करके किसानों का आर्थिक शोषण किया जायेगा। मोनसान्टो/बेअर कंपनी इसके लिये लगातार कोशिश कर रही है।
केंद्र सरकार कारपोरेट खेती के लिये कृषि विषयक कानूनों में लगातार बदलाव कर रही है। बीटी बीज को अनुमति भी उसी योजना का हिस्सा है। कॉन्ट्रैक्ट खेती के लिये किसानों द्वारा किये गये करार के अनुसार गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के लिये कंपनियां किसानों को बीटी बीज का इस्तेमाल करने के लिये बाध्य करेगी।
आत्मनिर्भरता की रट लगानेवाली केंद्र सरकार किसानों की बीज स्वाधीनता पूरी तरह से खत्म करके बीज कंपनियों के अधीन करना चाहती है। इसलिये फिर से एक बार किसानों और किसान संगठनों को इसके विरुद्ध आवाज उठानी होगी ताकि किसानों की बीज स्वाधीनता बनी रहे।
इस निवेदन के साथ जीईएसी बैठक की रिपोर्ट संलग्न है। आप उसे पढे और अधिकाधिक किसानों तक पहुंचाये। धन्यवाद।
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