मुकेश प्रसाद बहुगुणा
यह हर्ष का विषय है कि जागरूक समाज द्वारा न सिर्फ इस बात का संज्ञान लिया गया ,अपितु एक ऐसे दौर में -जहाँ नकारात्मक –सनसनीखेज ख़बरों को ही बढ़ावा देने का रिवाज सा बन गया है ,ऐसे दौर में सकारात्मक घटना के समाचार को व्यापक प्रचार –प्रसार –प्रशंसा प्राप्त हुई I यह भी हर्ष का विषय है सरकार द्वारा तुरंत इसका संज्ञान लिया गया और मुख्यमंत्री और शिक्षामंत्री ने तुरंत आशीष डंगवाल को व्यक्तिगत रूप से सम्मानित किया I
जमीनी स्तर पर कार्य करने वालों को कुछ दिनों का फैशन बनाना भी एक आम बात सी हो गयी है I सबको लगता है कि फैशन की होड़ में वो कहीं पीछे न रह जाय I लेकिन फैशन तो कभी स्थायी नहीं होता ..कुछ दिनों के बाद नया कोई फैशन आ जाता है और पुराना फैशन भुला सा दिया जाता है I तो आज जरूरत है आशीष डंगवाल को परम्परा बनाने की , फैशन नहीं I जरूरत है शासन –विभाग –सरकार –समाज द्वारा उस पद्धति को विकसित करने की जहाँ आशीष डंगवाल जैसे शिक्षक –व्यक्ति मूर्ति की बजाय जीवंत कड़ी बन सकें I आशीष जैसे लोग एक बड़े वृक्ष के समान होते हैं ,,जो कुदरती रूप से अपने फूलों –फलों द्वारा समाज के पर्यावरण को स्वस्थ और गतिमान रखते हैं I इन्हें गमलों का सजावटी पौधा बना देंगे तो जंगल का सहज जीवन सौन्दर्य नष्ट हो जाएगा I
आशीष के बहाने हमारे पास एक बार से मौका मिला है कि हम ( समाज ,सरकार ,विभाग ,राजकीय शिक्षक संगठन आदि ) इन बिखरे मोतियों को एक सूत्र में पिरोने का तरीका विकसित करें ,एक ऐसी माला जहाँ मोती सिर्फ सजावट की वस्तु न हों बल्कि सतत-व्यापक संवाद –विचार –कर्म का संवाहक हों I
हमें आशीष से आगे देखना होगा ,सिर्फ आशीष को देखेंगे तो एक बिंदु मात्र पर अटक जायेंगे I लेकिन आशीष के बिंदु से शुरू कर बिंदु बिंदु आगे बढ़ेंगे तो एक ऐसे वृहत्तर वृत्त का निर्माण होगा जिसकी त्रिज्या –व्यास और परिधि अनंत तक होंगे I आशीष को अनंत का विस्तार चाहिए ,उसे एक निश्चित सीमा में बांधना हम सबके साथ अन्याय होगा I आशीष को सहस्त्रों –कोटियों विचार –कर्म की जमीन चाहिए ,उसे आकाश में तारा बनाने से पृथ्वी अधूरी रह जायेगी I आशीष मौलिक कार्य है , उसे कट-पेस्ट –कापी बनायेंगे तो अन्याय होगा I
एक बार पुनः आशीष को बधाई , इसलिए नहीं कि उसे मुख्यमंत्री –शिक्षामंत्री द्वारा सम्मानित किया गया है ,,बल्कि इसलिए कि उसके कारण एक सकारात्मक चैतन्य संवाद प्रारम्भ हुआ है , आशीष समाज की ऐसी पूँजी है जिसे सतत निवेश की जरूरत है ,उसे क्लब की शोभा न बनाइये I आशीष उन कई तमाम आशीषों की आवाज है ,जो अनसुनी ही रह गयीं ,,अब आशीष के सूत्र को पकड़ कर उन तमाम आवाजों को सुगम गीत बनाइये I
आज यह भी ज्ञात हुआ है कि एक दर्जन से अधिक सामाजिक संस्थाओं ने आशीष को सम्मानित करने के लिए उससे सम्पर्क किया है I यह हर्ष और गर्व की बात है कि आशीष ने उन सबको विनम्रता से इनकार करते हुए उनसे अनुरोध किया है कि अगर वे वास्तव में सम्मानित करना ही चाहते हैं तो उन शिक्षकों को भी तलाशें जो अभी तक प्रचार से दूर रह कर बुनियाद की अँधेरी नींव का कार्य कर रहे हैं I जुगनुओं को एक साथ करिए तो सही ,,,जो सूरज का इन्तजार किये बिना ही -छोटा ही सही -पर अपने आसपास प्रकाश कर रहे हैं I