प्रयाग पाण्डे
शीतऋतु पूरे यौवन में है। चिल्ला जाड़े के दिन चल रहे हैं। उत्तराखंड सहित भारत के पर्वतीय क्षेत्र ठंड से ठिठुर रहे हैं, पहाड़ी क्षेत्रों के ऊँचाई वाले अनेक स्थानों ने बर्फ की सफेद चादर ओढ़ ली है। इस सबके बीच उत्तराखंड के नगरीय क्षेत्रों में सियासी तापमान यकायक बढ़ गया है। उत्तराखंड में स्थानीय निकायों के चुनाव के चलते ठंड के इस मौसम में भी सियासी गर्मी का अहसास हो रहा है। केंद्र और राज्य की सत्ता में आरूढ़ भाजपा और विपक्ष में बैठी कांग्रेस के बीच स्थानीय निकायों में वर्चस्व कायम करने की कशमकश चल रही है। चुनावी जोर-आजमाइश की जद्दोजहद में नगरीय क्षेत्रों की बुनियादी सुविधाओं, नगरों की भार-वहन क्षमता और स्थानीय निकायों के अधिकारों जैसे अहम सवाल सियासी पार्टियों के एजेंडे से बाहर हैं। स्थानीय निकायों के अधिकारों की पुनर्बहाली की बात करने से सभी राजनीतिक दल कतरा रहे हैं। यहाँ तक कि यह विषय उम्मीदवार की प्राथमिकता में भी नहीं है। उम्मीदवारों के बीच येनकेन प्रकारेण चुनाव जीत कर कुर्सी से जा चिपकने की होड़ मची हुई है।
ब्रिटिश शासनकाल में स्थानीय निकाय पूरी तरह स्वायत्त एवं स्वतंत्र थीं। इन्हें “स्थानीय सरकार” कहा जाता था। तब नगर पालिकाएं “लोकल सेल्फ गवर्नमेंट” थीं। अध्यक्ष और सभासद “पब्लिक सर्वेंट।” आजादी से पहले जो नेता सत्ता के विकेंद्रीकरण और ग्राम-स्वराज के पक्षधर थे, सत्तारूढ़ होते ही उन्होंने इन संस्थाओं में पहले से स्थापित स्वशासन के आंतरिक लोकतंत्र का गला घोटने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। नतीजतन स्थानीय निकाय अधिकारविहीन होते चले गए। 74 वां संविधान संशोधन भी स्थानीय निकायों के अधिकारों की पुनर्बहाली कर पाने में असफल सिद्ध हुआ।
ब्रिटिश शासनकाल में नगर पालिकाएं “लोकल सेल्फ गवर्नमेंट” थी, इसका नैनीताल नगर जीवंत उदाहरण है। बसासत से पूर्व नैनीताल एक वीरान जंगल था। पीटर बैरन की पहल पर यहाँ एक पर्वतीय नगर बसाने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। 1845 में आठ अंग्रेजों ने म्युनिसिपल कमेटी बनाने का निर्णय लिया। उसी म्युनिसिपल कमेटी के जज्बे ने एक वीरान जंगल को स्वप्न लोक में बदल दिया। एक आदर्श नगर के लिए आवश्यक आधारभूत ढांचा खड़ा किया। नगर पालिका ने नैनीताल को “कन्ट्री रिट्रीट” यानी उच्च वर्ग के लिए शांत और एकांत नगर के रूप में बसाया और विकसित किया।
अंग्रेजों की नेतृत्व वाली नगर पालिका ने नैनीताल में बाजारें, सड़क, रास्ते, निजी एवं सार्वजनिक उपयोग के लिए भवन, बगीचे, पार्क, धर्मशालाएं, अस्पताल, स्कूल और नाले बनाए। टीकाकरण की पुख्ता व्यवस्था की। तब नगर पालिका के पास अपनी बिजली थी,पुलिस थी। समृद्ध और संरक्षित वन थे। स्कूल-अस्पताल थे। जलापूर्ति थी,सीवर व्यवस्था थी। अग्नि शमन विभाग था। सड़क-रास्ते और नाले- नालियों का जिम्मा था। नगर की साफ-सफाई के लिए एक सुविचारित मजबूत ढांचा था। यहाँ की सुंदर कुदरती झील और पहाड़ियों की सुंदरता और सुरक्षा को महफूज़ रखने के प्रति प्रतिबद्धता थी। अपनी इन जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए बाकायदा उपविधियाँ थीं। मनमर्जी और प्रयोगधर्मिता की कोई गुंजाइश नहीं थी। प्रत्येक कार्य म्युनिसिपल एक्ट और उपविधियों के प्राविधानों के तहत होता था। कुलमिलाकर नगरीय प्रशासन के मामले में नगर पालिका एकमात्र सर्वशक्तिमान संस्था थी। नगर पालिका की सहमति के बगैर नगर क्षेत्र में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता था।
1899 में नगर पालिका ने नैनीताल में नलों के द्वारा घरों में शुद्ध फिल्टर पानी पहुँचा दिया था। 1912 में यहाँ टेलीफोन की घंटियां बजने लगीं थीं। 1915 में यहाँ के लिए मोटर सड़क बन गई थी।1921 में नैनीताल नगर बिजली की रौशनी से जगमगाने लगा था। नगर पालिका ने बिजली उत्पादित करने के लिए खुद का पॉवर हाउस बनाया था। 1924 में नगर पालिका ने बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य कर दी थी। बच्चों को स्कूल नहीं भेजने वाले अभिभावकों को नगर पालिका आर्थिक दंड देती थी। 1929 तक नगर पालिका प्राथमिक शिक्षा के मद में प्रति बच्चा सालाना बाइस रुपये चार आना खर्च कर रही थी। नगर पालिका न केवल खुद स्कूल संचालित करती थी बल्कि अन्य स्कूलों को वार्षिक अनुदान भी देती थी। होनहार गरीब छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वजीफा देती थी। नगर पालिका, नैनीताल के लिए रेल लाइन और रोप -वे का निर्माण करना चाहती थी लेकिन अपरिहार्य कारणों से ये योजनाएं धरातल पर नहीं उतर सकीं।
सन 1900 आते-आते साफ-सफाई की बेहतरीन व्यवस्था और शुद्ध पेयजल की आपूर्ति सहित अन्य नगरीय सेवाओं में नैनीताल इंग्लैंड के अनेक शहरों से आगे निकल गया था। यहाँ की पेयजल आपूर्ति एवं साफ-सफाई इंग्लैंड के कई शहरों से बेहतर मानी जाती थी।
भारत के अन्य हिल स्टेशनों की तरह नैनीताल भी अंग्रेजों का प्रिय ऐशगाह था। तब नैनीताल को शिक्षा और स्वास्थ्य लाभ के केंद्र के रूप में जाना जाता था। नगर पालिका नैनीताल नगर की सुरक्षा, स्वास्थ्य, साफ- सफाई और पर्यावरण सहित सभी पक्षों का बखूबी खयाल रखती थी। पारिस्थितिकी और पर्यावरण सुरक्षा को अत्यंत गंभीरता से लिया जाता था। नगर पालिका ने यहाँ वह सब व्यवस्थाएं कीं , जिससे यहाँ की हवा एवं पानी साफ रह सके और नैनीताल की सुंदरता, शांति एवं सुरक्षा बनी रहे।
नैनीताल की भार वहन क्षमता को लेकर 1891 में ही चिंता व्यक्त की जाने लगी थी। तब जबकि नैनीताल में कुल 410 के आसपास बंगले और मकान बने थे, यहाँ की ग्रीष्मकालीन आबादी बमुश्किल दस हजार थी। नैनीताल प्रोपराइटर एसोसिएशन के अध्यक्ष फ्लीडवुड विलियम्स द्वारा 26 जनवरी, 1891 को नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेज की सरकार को भेजे गए एक पत्र में लिखा कि- “नैनीताल के बाजार में खतरनाक रूप से भीड़ बढ़ रही है।” कुमाऊँ के तत्कालीन कमिश्नर कैप्टन ए.डब्ल्यू. इबट्सन ने 19 जुलाई, 1929 को अपनी एक रिपोर्ट में टिप्पणी की थी कि-” ….. इसमें कोई संदेह नहीं कि यह नगर अति इंसानों से भर गया है।” जब इबट्सन ने यह टिप्पणी की, उस समय नैनीताल की आबादी बारह हजार से कम थी। नैनीताल नगर यांत्रिक यातायात से निरापद था। घोड़ा और डांडी यातायात के अकेले साधन थे।
आजादी के करीब ढाई दशक बाद तक नगर पालिका का स्वायत्त स्वरूप बरकरार रहा।
1970 के दशक से नगर पालिका को अधिकार विहीन करने का उपक्रम प्रारंभ हो गया। उत्तर प्रदेश सरकार ने एक अगस्त,1972 को नगर पालिका द्वारा संचालित जूनियर और मिडिल स्कूल भवनों सहित शिक्षा विभाग के हवाले कर दिए। दो अक्टूबर, 1975 को नगर पालिका से पेयजल और सीवर व्यवस्था छीन ली गई। उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन था, डॉ. एम.चेन्ना रेड्डी राज्यपाल थे, उस दौरान जनवरी, 1976 में नगर पालिका से दुर्गापुर पॉवर हाउस समेत संपूर्ण विद्युत व्यवस्था छीन ली गई। उत्तर प्रदेश में नारायण दत्त तिवारी के शासनकाल में 29 मई, 1976 को नगर पालिका का पाँच सौ बासठ हेक्टेयर वन क्षेत्र वन विभाग के हवाले कर दिया गया। 20 सितंबर, 1978 को नगर पालिका के प्रबंध वाली 52 किलोमीटर सड़कें पीडब्ल्यूडी विभाग को सौंप दी गई। रही- सही कसर प्राधिकरण के गठन से पूरी हो गई। 29 अक्टूबर, 1984 को बृहत्तर नैनीताल विकास क्षेत्र प्राधिकरण के गठन कर नगर पालिका से भवन मानचित्र स्वीकृत करने का अधिकार भी छीन लिया गया। 1977 से 1988 तक नगर पालिका भंग रही। संपत्ति और आर्थिक तौर पर सुसंपन्न नगर पालिका प्रशासनिक बोर्ड के कार्यक्रम के दौरान कंगाली की हालत में पहुँच गई।
आज से करीब नब्बे साल पहले नगर पालिका, नैनीताल के पहले गैर आधिकारिक चेयरमैन आर. सी. बुशर ने अपनी एक टिप्पणी में कहा था- “जब से नैनीताल नगर पालिका बनी, तभी से कुमाऊँ डिवीजन के डिप्टी कमिश्नर पालिका के आधिकारिक चेयरमैन रहे हैं। उन्होंने नैनीताल को एक खूबसूरत नगर के रूप में विकसित करने में बड़ा योगदान दिया और नैनीताल को उच्च गुणवत्तापूर्ण, सभ्य, शिष्ट और आदर्श नगर के रूप में बसाया। मौजूदा प्रशासनिक और राजनीतिक बदलावों के मद्देनजर भविष्य में इस नगर की लोकप्रियता कायम रखना एक बड़ी चुनौती होगी।” कालांतर में बुशर की उक्त टिप्पणी सौ आना सच साबित हुई। अंग्रेजी शासनकाल में प्रशासनिक बोर्ड ने नैनीताल को बसाया और सँवारा। इंग्लैंड के आधुनिक नगरों के समकक्ष विकसित किया। आजाद भारत की प्रशासनिक बोर्ड ने एक दशक में ही उस नगर पालिका को कंगाली की स्थिति में पहुँचा दिया।
अधिकार विहीन नगर पालिका और प्रयोगधर्मी सरकारी मशीनरी ने आज इस नगर को विनाश के मुहाने पर खड़ा कर दिया है। अनियंत्रित, अनियोजित एवं अदूरदर्शी विकास ने नैनीताल को अत्यधिक भीड़-भाड़ वाले कुव्यस्थित नगरों में शुमार कर दिया है। एक दौर में जिस नैनीताल को मिनी स्विजरलैंड कहा जाता था, आज वही नैनीताल मैदानी क्षेत्रों के भीड़भाड़ वाले कस्बों में तबदील हो गया है। दुर्भाग्य यह कि अबकी स्थानीय निकाय चुनाव में नगर की मौजूदा दुर्दशा कोई मुद्दा नहीं है। राजनीतिक दल और उनके उम्मीदवार का एकमात्र लक्ष्य चुनाव जीतना है।