विनीता यशस्वी
कभी-कभी कुछ संयोग ऐसे बनते हैं जो हमेशा के लिये बहुत प्यारी और मीठी यादें दे जाते हैं। ऐसा ही कुछ संयोग 27 तारीख को बना जब अचानक ही बच्चों के एक पुस्तकालय में जाने का मौका मिल गया। हुआ कुछ यूँ कि हम ‘नैनीताल समाचार’ के साथियों को राजीव लोचन साह जी, शेखर पाठक जी और उमा भट्ट जी के साथ सीम गांव जाने का मौका मिला जहाँ किसी ने ‘हैप्पी चिल्ड्रन्स लाइब्रेरी’ के नाम से बच्चों का एक पुस्तकालय बनाया है। जब तक पुस्तकालय नहीं पहुँचे थे तब तक तो सब कुछ सामान्य सा ही लग रहा था पर जैसे ही पुस्तकालय के अंदर कदम रखा एकदम ताज़गी आ गयी। अपनी सबसे प्रिय जगह पर पहुँच कर दिल खुश हो गया।
नैनीताल जिले के सीम गाँव में यह पुस्तकालय अतुल साह जी और जया साह जी ने मिलकर बनाया है। ‘हैप्पी चिल्ड्रन्स लाइब्रेरी’ में बच्चों के पढ़ने के लिये बहुत अच्छी-अच्छी किताबें रखी गयी हैं। हालांकि जब हम पुस्तकालय पहुँचे उस समय पुस्तकालय में बच्चे नहीं आये थे। इसलिये हम आराम से पुस्तकालय को देखते रहे। बच्चों की ढेर सारी किताबें शैल्फ में करीने से सजी हुई थीं। इन किताबों में बच्चों के लिये कहानियों की किताबें भी हैं तो उनके सामान्य ज्ञान को बढ़ाने वाली किताबें भी हैं। हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं की किताबों को यहाँ पर रखा गया है ताकि बच्चे पढ़ने के साथ-साथ अंग्रेजी भी सीख सकें। ‘हैप्पी चिल्ड्रन्स लाइब्रेरी’ में बच्चों के लिये सरल भाषा में लिखी रामायण भी है तो अकबर-बीरबल के किस्सों की किताब भी है। गांधी जी की संक्षिप्त आत्मकथा है तो रस्किन बॉण्ड की किताबें भी है। बुद्ध की कथाऐं हैं तो भीमराव अम्बेडकर के बारे में बताने वाली किताब भी है। जया जी बताती है- एक बच्ची पर तो इन कहानियों का इतना प्रभाव पड़ा कि वो यहाँ से किताब घर ले जाती है और दिन भर के काम के बाद शाम को जब उसकी माँ चूल्हे पर रोटियाँ बनाती है तो वो अपनी माँ को कहानियाँ पढ़ के सुनाती है। यहाँ पर तो मैं बस कुछ ही किताबों के बारे में बता रही हूँ पर अंतहीन किताबें इस पुस्तकालय में संजोयी गयी हैं।
किताबों के साथ-साथ पुस्तकालय की दीवारों में बच्चों के द्वारा बनायी गयी कई पेंटिंग्स भी लगी हुई हैं जो इस पुस्तकालय को जीवन्त बना देती हैं और बिना कुछ कहे ही महसूस करवा देती हैं कि बच्चे यहाँ कितना खुश हैं और कितना सीख रहे हैं। दीवार में चिपके एक कविता पोस्टर में मेरी नजर पड़ी जिसे दीक्षा ने बनाया है जो कक्षा 6 में पढ़ती है। उसने इस पोस्टर में वर्षा ऋतु के ऊपर कविता लिखी है और उसे रंगों से सजाया है। शायद कविता भी दीक्षा ने ही लिखी हो। कविता की कुछ शुरूआती लाइनें इस तरह है- जब वर्षा आती है, खूब पानी बरसाती है, सबके रंगीले छाते खुलते हैं, मेरा छबीला छाता खुलता है। इसी तरह एक बच्ची ने एक स्त्री का बहुत प्यारा चित्र बनाया है तो एक बच्चे ने भगवान गणेश को कागज में उकेरा है। किसी ने ऐपण बनाये हैं तो वहीं एक बच्चे ने स्नो मैन बना कर सर्दियों का एहसास कराया है। पुस्तकालय की दीवारों में इस तरह के प्यारे और मासूम से चित्रों की भरमार है।
अतुल जी और जया जी बताते हैं – इस पुस्तकालय को उन्होंने सिर्फ इसलिये ही बनाया ताकि वे गाँव के बच्चों को ऐसा माहौल दे सकें जिसमें बच्चों के अंदर का डर और झिझक दूर हो जाये। वे कहते हैं- 1 जून 2016 में जब हमने ‘हैप्पी चिल्ड्रन्स लाइब्रेरी’ को शुरू किया तब हमारे पास इसका कोई अनुभव नहीं था। पर एक चाहत थी कि इन बच्चों के लिये हमें कुछ करना ही है इसलिये हम धीरे-धीरे इस काम को करते रहे और फिर गाँव के बच्चे भी हमारे पास आने लगे। कुछ ही दिनों में बच्चे हमारे साथ घुलमिल गये और उनको यह भी लगने लगा कि यहाँ वे जो चाहे वह कर सकते हैं। उन्हें यहाँ पर स्कूल की तरह कड़े अनुशासन में रहने की जरूरत नहीं है इसलिये बच्चों को भी इस पुस्तकालय में आने का इंतजार रहने लगा और स्कूल की छुट्टी होते ही बच्चे सीधे पुस्तकालय पहुँचने लगे।
लॉकडाऊन लगने पर ‘हैप्पी चिल्ड्रन्स लाइब्रेरी’ में बच्चों के लिये ट्यूशन का भी इंतजाम किया गया ताकि परीक्षाओं में बच्चे पिछड़े नहीं। ज्यादातर बच्चों की फरमाईश रहती है कि उन्हें अंग्रेजी और गणित पढ़ा दिया जाये क्योंकि स्कूल में वे इन विषयों को बहुत अच्छे से समझ नहीं पाते हैं। 9 और 10 कक्षा के बच्चों को मझेड़ा से विजय पांडे आकर पढ़ाते हैं और छोटे बच्चों को गणित सीम गाँव के ही कृपाल सिंह बिष्ट पढ़ा देते हैं जबकि अंग्रेजी की क्लास जया जी स्वयं पढ़ाती हैं। यहाँ बच्चों से ट्यूशन की कोई फीस नहीं ली जाती है। अतुल जी और जया जी कहते हैं – शुरू-शुरू में बच्चे कम थे और छोटे बच्चे ही आते थे तो हम दोनों ही बच्चों को पढ़ा दिया करते थे पर अब बच्चों की संख्या भी बढ़ गयी है और बड़ी कक्षाओं के बच्चे भी आने लगे हैं इसलिये अब हमें ट्यूटर की जरूरत पढ़ गयी। यहाँ पर बच्चों के लिये कम्प्यूटर का भी इंतजाम किया गया है जिसमें बच्चों को काम करना सिखाया जाता है और उन्हें फिल्में भी दिखलायी जाती हैं। बच्चे यहाँ काफी कुछ सीख लेते हैं और बदले में उन्हें किसी तरह का कोई पैसा नहीं देना होता है इसलिये बच्चों के माता-पिता भी खुशी से बच्चों को पुस्तकालय में भेजते हैं।
अतुल जी ने बिट्स (पिलानी) से शिक्षा ली है और कई ऊँची कन्स्ट्रक्शन कम्पनियां में काम करने के बाद कुछ साल पहले उन्होंने समय से पूर्व ही अपने काम से विदा ले ली। जया जी भी सामाजिक कार्यों के साथ हमेशा जुड़ी रहीं। उन्होंने कैंसर के मरीजों और मानसिक रूप से अस्वस्थ बच्चों के लिये कई काम किये हैं। फिर दोनों को अचानक लगा कि अपने पहाड़ों में जाकर वहाँ के लोगों के लिये कुछ करना चाहिये तो दोनों ने सीम गाँव में जमीन खरीद कर छोटा सा मकान और उसके साथ एक पुस्तकालय बनाया। वो कहते हैं – हमारी चाहत सिर्फ इतनी ही है कि ये गाँव के बच्चे जब बाहर की दुनिया में निकलें तो इन्हें किसी तरह की घबराहट या आत्मविश्वास की कमी नहीं होनी चाहिये इसलिये हम इन्हें इन्टरनेट की दुनिया से भी अपडेट रखते हैं और गाँव के बाहर क्या चल रहा है वो भी बताते रहते हैं। पिछले साल की तेज बरसात में इनके घर की दीवार भी ढह गयी थी जिसकी वजह से दोनों को काफी नुकसान उठाना पड़ा पर ये कहते हैं – बच्चों की खुशियों और उनको होने वाले फायदे के सामने हम इस नुकसान को बहुत छोटा मानते हैं।
दोपहर का 2.30 बजा और पुस्तकालय में बड़े बच्चों का आना शुरू हो गया और फिर धीरे-धीरे पूरा पुस्तकालय बच्चों से भर गया। ये सब बड़ी कक्षा के बच्चे थे इसलिये अपनी जगह में आकर बैठ गये। इन बच्चों ने हमें गिर्दा का जनगीत ‘उत्तराखंड मेरी मातृभूमी’ गाकर सुनाया। शेखर पाठक जी ने बच्चों को इस गीत की पृष्ठभूमि और इस गीत का मतलब समझाया। राजीव लोचन साह जी ने भी बच्चों को उत्तराखंड आंदोलन से संबंधित कई बातें बताई। उमा भट्ट जी ने गाने को गाने का सही तरीका बच्चों को बताया ताकि अगली बार बच्चे इस गाने का अर्थ समझकर और अच्छी तरह से इसे गा सकें। आज हम बहुत कम समय के लिये ही आये थे इसलिये बच्चों के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाये। मगर जितना भी समय बिताया वह बहुत सुखद था।
बच्चों से बात करके हम जैसे ही कमरे के बाहर निकल रहे थे छोटे बच्चों के झुण्ड दौड़ते हुए बरामदे में इकट्ठा होने लगे और पूरा बरामदा ‘गुड आफ्टरनून दीदी’ और ‘गुड आफ्टरनून दद्दा’ की आवाज से गूँजने लगा। बच्चों के उत्साह को देखते ही लग रहा था कि वे यहाँ कितना अच्छा महसूस करते होंगे और शायद इसीलिये अपने समय से एक घंटा पहले ही दौड़ते-भागते पुस्तकालय पहुँच गये। छोटे-छोटे बच्चों ने बगैर किसी हिचकिचाहट के हमारे साथ बातें की और खुद ही हमें बताने लगे कि उनको इस पुस्तकालय में कितना मजा आता है। हमारा सबसे विदा लेने का समय आ गया था तो लौटते हुए एक छोटी बच्ची ने हम सब की ग्रुप फोटो खींची और फोटो खींचते हुए बोली- अरे ! स्माइल तो दो। इस स्माइल के साथ ही हम लोग एक खुशनुमा दिन बिता के वापस लौट गये।
5 Comments
नवीन जोशी
बहुत अच्छी रिपोर्ट एक सराहनीय पहल की। कुछ दिन पहले संजय जोशी भी वहाँ गए थे, बच्चों को फिल्म दिखाने। मेरा भी मन है वहाँ जाने का।
Kripal Singh
तहे दिल से हार्दिक धन्यवाद आपको, मैं 2016 से ही इस लाइब्रेरी से जुड़ा हुआ हूँ।🙏
Kripal Singh
तहेदिल से धन्यवाद, इस लेख के लिए,मैं 2016 से अब तक इस पुस्तकालय के साथ जुड़ा हुआ हूँ।
DR. Harish Chandra Andola
Very excellent work done for Society
Vikas Nainwal
सराहनीय पहल।