जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’
अत्याधुनिक तकनीकी दुनिया में उत्तराखंड राज्य में अक्तूबर महीने की सबसे बड़ी घटना राज्य की सूचना तकनीकी पर साइबर अटैक रही, जिसने राज्य सरकार की सारी मशीनरी को ठप्प कर दिया था. इस बाबत सूचना तकनीकी विभाग (आई. टी. डी. ए.) के विशेषज्ञ विभागों को लगातार चेताते रहे, लेकिन विभागों ने इसको तवज्जो नहीं दी. उल्लेखनीय है कि पिछले साल जुलाई माह में कोषागार निदेशालय का स्टेट डाटा सेन्टर से साढ़े तीन लाख कर्मचारी, पेंशनर व आश्रितों का 22 दिन का डाटा गायब हो गया था. गनीमत रही कि कोषागार निदेशालय के पास इसका बैकअप था.
इस साल आई. टी. डी. ए. के ऑडिट में 72 वेबसाइटो को हैकिंग व साइबर हमलों के हिसाब से असुरक्षित माना गया था. आई. टी. डी. ए. राज्य सरकार की 192 वेबसाइट और मोबाइल एप को सेवाएँ प्रदान करती हैं. लेकिन विभाग की हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आई. टी. डी. ए. में तीन अधिकारी जिनमें एक मात्र अधिकारी ही विशेषज्ञता वाला है. पिछले साल विभाग का दुबारा गठन किया गया था, जिसमें प्रतिनियुक्ति के तहत 45 पद सृजित किये गए थे, लेकिन कोई भी भर्ती में आने को तैयार नहीं हुआ. आई. टी. डी. ए. में शुरुआत से ही भर्तियों में गड़बड़ झाला रहा, एक आई. टी. आई. के शिक्षक अहर्ता न होने पर भी यहाँ प्रतिनियुक्ति पर सेवाएँ देता रहा, तो कोई नौकरी पाने के बाद दूरस्थ शिक्षा की डिग्री प्राप्त कर जमा रहा, इन्तहा यहाँ तक हुई कि एक टास्क फ़ोर्स मैनजर अहर्ता न होने के बाद भी विभाग का घर जवाई बना रहा, इन महाशय को बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग आई. टी., कंप्यूटर साइंस या एमसीए होना चाहिए था, लेकिन वो निकला बी.टेक. मैकेनिकल इंजीनियरिंग, अब इससे बड़ा गड़बड़ घोटाला क्या होगा की आदमी को मर्ज कुछ और और डॉक्टर निकला जानवरों का. जिस राज्य में इतने बड़े आईटी हाईटेक विभाग में नकारा व अयोग्य कार्यकर्त्ता होंगे तो राज्य की स्थिति परिस्थिति का आंकलन सहज ढंग से लग जाता है.
सरकार ई – गवर्नंस के लिए अनेक घोषणायें तो करती हैं, लेकिन बजट आबंटन में कंजूसी बरतती रही है. केवल 32 करोड़ के सालाना बजट से अत्याधुनिक तकनीकी का संचालन करना ऊंट के मुंह में जीरा वाली बात है. विभाग के पास तकनीकी विशेषज्ञ कंसल्टेंट के लिए मात्र 40 हजार रुपये की सैलेरी फिक्स है, इतनी कम सेलेरी पर कोई भी तकनीकी विशेषज्ञ कंसल्टेंट आने को तैयार नहीं हुआ लिहाजा यह काम आई. टी. डी. ए. को सूचना तकनीकी सेवाएँ देने वाली संस्थान को देना पड़ा. राज्य में कई विभाग ओपन नेटवर्क पर काम कर रहे थे, जिनको केंद्र सरकार के स्वान या नेशनल इन्फोर्मेटिक सेंटर (एन. आई. सी.) के सिक्योर नेटवर्क से जोड़ने के लिए कहा गया था, लेकिन इसमें भी लापरवाही बरती गयी. बताया गया है कि यह साइबर हमला माकोप रैनसंवेयर के माध्यम से हुआ था, इसे चीन, कोरिया या नाइजीरिया से संचालित किया गया बताया जा रहा है.
अब सरकार ने सरकारी दफ्तरों में सोसिअल मीडिया के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है व बिना सिक्योरिटी ऑडिट के कोई भी नयी या पुरानी वेबसाइट संचालित नहीं होंगी. मुख्यमंत्री धामी ने कहा है कि इस हेतु साइबर सिक्योरिटी टास्क फोर्स का गठन किया जायेगा. मुख्यमंत्री ने कहा है कि साइबर सुरक्षा हेतु अन्य राज्यों के सफल मॉडल का भी अध्ययन किया जाए व विभिन्न विभागों से संबंधित ऑनलाइन डाटा की रिकवरी के लिए डिजास्टर रिकवरी सेंटर की स्थापना की जाएगी.
सामाजिक सांस्कृतिक बदलाव
थोड़ा विषय को बदलते हैं, पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव इतनी तेजी से होगा कभी किसी ने परिकल्पना नहीं की होगी. यमुना टोंस घाटी में वैवाहिक सम्बन्ध राज्य से बाहर अन्य विरादरियों या जातियों में दो दसक से तेजी से होने लगा था. जिसमें अब और तेजी आ गयी है. दूरस्थ से लेकर हर गांवों की बेटियां हिमांचल परदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश यहाँ तक कि बिहार में ब्याही जा रही है. ताज्जुब की बात यह है कि बेटियां तो बाहर जा रही हैं लेकिन इन राज्यों से बहुएँ बनकर वहां की बेटियां यहाँ नहीं आ रही है. उत्तराखंड में यह एक बड़े अध्ययन का विषय तो है ही. इसी तरह पूरे राज्य में बेटे – बेटियों की पढाई लिखाई व प्रोफेशन के अनुकूल वर वधू न मिलने से अब अंतर जातीय, अंतर राज्यीय वैवाहिक संबंधों को लोग मान्यता देने के लिए मजबूर हो गए है. इसी तरह हर प्रकार की जातीय प्रथायें टूटने के कगार पर है. आने वाले समय में उत्तराखंड का सामाजिक व सांस्कृतिक स्वरूप को बदलने में दो दसक ही काफी होंगे. समय काल परिस्थिति के अनुसार सांस्कृतिक सामाजिक बदलाव एक स्वाभाविक व निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है. कभी इसमें तेजी होती है तो कभी लम्बा ठहराव.
एक और उदाहरण और देना चाहूँगा, आजकल उत्तराखंड में एक दिवसीय विवाह की परंपरा तेजी से उभरी है. जहाँ यह लड़के वालों को भारी पड़ रहा है, वहीँ लड़की वालों के लिए राहत लेकर आया है. कितनी भी जल्दी कर लें बरात दिन के दो बजे से पहले पहुँच ही नहीं पाती. बरात पहुँचने पर अभी भी पुरानी परंपरा के अनुसार सूक्ष्म जलपान चाय से स्वागत किया जा रहा है, जबकि यह वक़्त भोजन का होता है. इसी में तीन – चार बज जाते हैं. प्यारे पहाड़ियों इस परंपरा को बदलो भाई. देखा देखी व अपने अहम के कारण शादी विवाह पर अनावश्यक खर्चे बढ़ गए हैं इन पर लगाम लगाने की जरुरत है. विवाह संस्कार सादगी से किये जाएँ तो दोनों वर वधू के परिवारों की आर्थिक स्थिति मजबूत रहेगी व तनावमुक्त जीवन बना रहेगा. शादी – विवाह पर खर्च करने के बजाय बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करने से ज्यादा फायदा होगा.