सलीम मलिक
उत्तराखंड में भाजपा सरकार द्वारा लागू किए जा रहे समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के खिलाफ शनिवार को रामनगर में आयोजित जन सम्मेलन में सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने यूसीसी को विचारों की विभिन्नता को नष्ट करने की साजिश का आरोप लगाते हुए इसे महिलाओं और अल्पसंख्यकों के खिलाफ बताया है। पायते वाली रामलीला के रंगमंच पर समाजवादी लोक मंच के मुनीष कुमार के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में श्रीमती ग्रोवर ने कहा कि प्रस्तावित यूसीसी कानून लोगों की सघन निगरानी के लिए ही ऐसा टूल है जो आधार कार्ड से होते हुए यहां तक पहुंच चुका है। महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर लोगों पर निगरानी का काम किया जा रहा है। यूसीसी के द्वारा भाजपा सरकार लोगों की छोटी छोटी निजी जानकारियां अपने पास रखकर उन्हें भविष्य में उत्पीड़न के हथियार के तौर पर इस्तेमाल करेंगी। सभी के समानता के नाम पर लागू होने वाले इस कानून में उत्तराखंड के निवासी की परिभाषा इतनी व्यापक है कि इसमें राज्य में केंद्रीय सरकार की नौकरी करने वाले, पढ़ाई के लिए उत्तराखंड आने वाले अन्य राज्यों के निवासी भी इसके दायरे में आ जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने भी नागरिकों की निजता को उनका मौलिक अधिकार बताते हुए उनकी निजता को बनाए रखने की पैरवी की है। लेकिन सरकार कोर्ट के निर्देशों को भी ताक पर रखने पर आमादा है। उत्तराखंड सरकार का लोगों पर निगरानी का यह पैंतरा नया नहीं है। इससे पूर्व वह विवाह पंजीकरण लागू करने का असफल प्रयास भी कर चुकी है। वरिष्ठ अधिवक्ता ने बताया कि संविधान निर्माण के समय भी समान संहिता पर चर्चा हुई थी। लेकिन तब भी विशेषज्ञों ने देश की विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों में लोगों के निजी जीवन के अलग अलग पहलुओं को देखते हुए इस विचार को त्याग दिया था। उनका भी मानना था कि विभिन्नताओं से भरे इस देश में सबको एक ही डंडे से नहीं हांका जा सकता। लेकिन भाजपा की सरकार आज सबको एक ही तरह की जीवनशैली अपनाने को मजबूर कर रही है। यही सरकार कुछ समय सबको एक ही दृष्टि से सोचने को भी मजबूर करेगी। जिसके बाद देश में न कोई नया विचार पनपेगा और न ही लोकतंत्र बचा रहेगा। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि यह सरकार का कर्तव्य है कि वह इस बात को देखें कि सभी को शिक्षा और इलाज मिल रहा है, सभी के पास सम्मानजनक रोजगार हो और रहने के लिए घर और जमीन हो। भाजपा सरकार स्वयं को महिलाओं की हितैषी बोलती है तो वह बताएं कि उत्तराखंड में हिंसा से पीड़ित महिलाओं की सहायता के लिए खोले गए महिला शेल्टर होम क्यों बंद किए जा रहे हैं। सरकार को यदि वाकई महिलाओं की चिंता है तो वह उन लोगों की लिस्ट बनाकर, उनके ऊपर निगरानी रखे जो अपने घर में पत्नी, बहन, बेटियों व मां को पीट रहे हैं। वक्ताओं ने इस कानून को महिला विरोधी और जन विरोधी करार देते हुए कहा गया कि समाज और समुदाय में महिलाओं को सामाजिक न्याय, बराबर हक, भूमि पर हक और वन अधिकार मिलना चाहिए। इस कानून से भ्रष्टाचार, भेदभाव और अधिकारियों के मनमानी को बढ़ावा मिलेगा। यह आम जनता के बुनियादी मुद्दों से भटकाने का प्रयास है। सम्मेलन में भाजपा सरकार द्वारा जनता पर थोपी जा रही समान नागरिक संहिता को रद्द करने का प्रस्ताव पारित कर इसे सड़क और न्यायालय में चुनौती देने का संकल्प व्यक्त करते हुए 27 दिनों से आमरण अनशन पर कर रहीं डॉल्फिन कंपनी की महिला मजदूरों के संघर्ष का भी समर्थन किया गया।
*चंद्रकला का संबोधन*
“फासीवादी लोगों के सत्तारूढ़ होने के बाद लोकतंत्र के साथ ही अल्पसंख्यकों, दलितों और महिलाओं पर हमले बढ़े हैं”
*निर्मला बिष्ट का संबोधन*
“उत्तराखंड को हिंदुत्व की राजनीति की नई प्रयोगशाला बनाया जा रहा है। सरकार खुद नफरत की राजनीति को बढ़ावा दे रही है”
*तरुण जोशी का संबोधन*
“यह सरकार सामाजिक ताने बाने को छिन्न भिन्न करने के लिए परंपराओं से खिलवाड़ कर रही है। इतनी हिम्मत 1862 में अपने कानून लागू करते समय अंग्रेजों तक ने नहीं की थी। खास वर्ग को निशाना बनाकर उनका उत्पीड़न करने वाली ऐसी व्यवस्था का सभी को मिलकर विरोध करना चाहिए”
*मुकुल का संबोधन*
“यूसीसी की आड़ में सरकार मुसलमानों और महिलाओं का उत्पीड़न करना चाहती है। महिला हितों की बात करने वाली यह सरकार महिला श्रमिकों को न्यूनतम वेतन तक नहीं दिलवा पा रही है। यूसीसी मजदूरों की किसी समस्या का समाधान नहीं है। यह सम्मेलन यूसीसी के विरोध में पसरी खामोशी को तोड़ने का काम करेगा”
*पीपी आर्य का संबोधन*
“महिला हितों के सरकारी छलावे की पोल इसी से खुल रही है कि प्रदेश की आंगनवाड़ी कार्यकत्री तथा भोजनमाताएं अपनी दो जून की रोटी बचाने के लिये संघर्ष कर रहीनहैं लेकिन सरकार उनकी आवाज सुनने की जगह उन्हें अपमानित करने पर उतारू है। यूसीसी के प्रभावितों के बीच अभियान चलाकर यूसीसी का विरोध करने की जरूरत है”
*उपासना का संबोधन*
“सरकार भले ही यूसीसी को समता के नाम पर ला रही है। लेकिन इसके प्रावधान बताते हैं कि यह बैक डोर से समाज में अराजकता फैलाने का प्रयास है”
*शंकर गोपाल का संबोधन*
“सरकार मुस्लिम महिलाओं के उत्पीड़न का मुद्दा उछालकर यूसीसी को सामाजिक मान्यता दिलाने का प्रयास कर रही है। जबकि नेशनल फैमिली सर्वे की रिपोर्ट्स के अनुसार मुसलमानों में बहुविवाह करने वालों की संख्या 1.8 प्रतिशत है तो हिंदुओं में भी यह संख्या 1.4 प्रतिशत है। भाजपा सरकार खुद दोहरे मापदंड अपनाने वाली पार्टी है। हल्द्वानी कांड में घायल पुलिसकर्मियों से मिलने वाले मुख्यमंत्री उत्तरकाशी में हिंदू उत्पातियों के हमले में घायल पुलिसकर्मियों से नहीं मिलकर एक समुदाय के दंगे की खुली छूट व दूसरे समुदाय पर कार्यवाही कर सामाजिक बंटवारे को हवा दे रहे हैं”
*कैलाश जोशी का संबोधन*
“यूसीसी जैसे दोहरे मापदंड वाले कानून के खिलाफ लोगों को सड़कों पर उतरकर संघर्ष करना होगा। राम मंदिर निर्णय के आलोक में सीजेआई द्वारा दिए बयान से स्पष्ट है कि मौजूदा दौर में अदालतें भी कानून की जगह आस्था के अनुसार फैसले सुना रही हैं”
*प्रभात ध्यानी का संबोधन*
“भाजपा सरकार द्वारा प्रस्तावित यूसीसी लोगों को बांटने के लिए लाया जा रहा है”
*सम्मेलन में यह रहे मौजूद*
उत्तराखंड महिला मंच की निर्मला बिष्ट, चंद्रकला, चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल, भाकियू एकता उग्राहां के अध्यक्ष बल्ली सिंह चीमा, रचनात्मक महिला मंच की आसना श्रमयोग, वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के तरुण जोशी, महिला किसान अधिकार मंच की हीरा जंगपांगी, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के प्रभात ध्यानी, पीसी तिवारी, भाकपा माले के कैलाश जोशी, मजदूर सहयोग केंद्र के मुकुल, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के पीपी आर्य, इमके नेता सुरेन्द्र, उत्तराखंड लोक वाहिनी के राजीव लोचन साह, महिला एकता मंच की ललिता रावत, गोपाल लोधियाल, मौ. शफी, उमा भट्ट, सरस्वती जोशी, सुरेश लाल, गिरीश आर्य, जमन राम, मदन मेहता, उषा पटवाल, ललित उप्रेती, वीर सिंह, महेश जोशी, मुकेश जोशी, कौशल्या चुन्याल, किरण आर्य, किशन शर्मा।