जगमोहन रौतेला
कभी हल्द्वानी में दो सौ मीटर की पदयात्रा तो अब गैरसैंण में तीन घंटे का उपवास । सत्ता से बाहर हो जाने पर भी जनता व मुद्दों से छन करना नहीं छोड़ा । इन्हीं हरकतों से पता चलता है कि ये छद्म लड़ाईयॉ जनता के लिए नहीं , बल्कि अपना राजनैतिक अस्तित्व बचाने और कॉग्रेस में अपनी धड़ेबाजी को मजबूत करने के लिए हैं और कुछ नहीं । जनता को मूर्ख समझने का खामियाजा 2017 और 2019 में भुगत चुके हो , तब भी भरेब , राजनीतिक चालबाजियों , प्रपंच से बाज नहीं आ रहे हो ।
तीन घंटे का उपवास नहीं , धरना होता है । लगता है कि गैरसैंण की ” ठंड ” से आप भी डर गए । जितनी देर आप ” उपवास ” में गैरसैंण में अपनी पार्टी के समर्थक नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ बैठे , उतनी देर में तो अगर आप गैरसैंण में जन सम्पर्क करते तो वह भी पूरा नहीं होता । उसमें भी चार – पॉच घंटे से ज्यादा लग जाते । तीन घंटे के लिए किसी एक निश्चित स्थान पर बैठे रहना ” उपवास ” करना है तो पहाड़ के सैकड़ों लोग हर रोज सड़क किनारे ” उपवास ” करते हैं , जब उन्हें कहीं जाने के लिए बस , जीप नहीं मिलती । राज्य में हर रोज सैकड़ों तब भी ” उपवास ” में होते हैं , जब वे अस्पतालों , क्लिनिकों में डॉक्टर को दिखाने के इंतजार में चार – पॉच – छह घंटे तक बीता देते हैं ।
आपका यह ” उपवास ” तो गॉधीवाद का भी घोर अपमान है । गॉधी जी कई – कई दिनों तक नींबू – शहद – पानी के साथ उपवास पर रहते थे । उन्होंने अपने इस तरह के कार्यक्रमों को भी इसी वजह से कभी भी अनशन का नाम नहीं दिया । वे सरकार ( अंग्रेजी सरकार ) का विरोध करते हुए भी कहते थे कि मैं अपने अन्त:करण की शुद्धि और मन की शान्ति के लिए उपवास करता हूँ । गॉधी जी उपवास के दौरान अपने विरोधी (अंग्रेज सरकार ) के खिलाफ भाषण नहीं देते थे , बल्कि उस दौरान लिखने – पढ़ने का कार्य और ज्यादा करते थे ।
कॉग्रेस व इस पार्टी में राजनीति करने वाले लोग गॉधी जी पर अपना कापीराइट मानते हैं । किसी और लोगों का गॉधी जी पर बात करना कॉग्रेस को कभी भाया नहीं । इसी वजह से सच्चे गॉधीवादियों से भी कॉग्रेस व उसकी सरकारों को हमेशा चिढ़ रही । यह वर्ष गॉधी जी की 150वीं जयन्ती का भी वर्ष है । कम से कम इस साल तो ” तीन घंटे का उपवास ” कर के गॉधी जी के उपवास की धज्जियॉ उड़ाने व उसका मजाक बनाने जैसा कार्य ” अनजाने ” में ही सही , नहीं करते । वैसे आपकी अपनी पार्टी के ” उत्तराखण्ड के गॉधी ” भी आपके पक्के समर्थक हैं ? क्या उन्होंने भी आपको ” उपवास ” व धरने में अन्तर नहीं बताया ? ये कैसे ” गॉधी ” हैं आपकी पार्टी के ? जिन्हें यह तक नहीं पता कि ” उपवास ” होता क्या है ? इससे साफ होता है कि कितने छद्म वाले हैं आपके संगी – साथी और आपकी पार्टी के उत्तराखण्ड के गॉधी ? ऐसे लोगों को ” उत्तराखण्ड का गॉधी ” कह कर पुरी दुनिया के लिए आदर्श बन चुके ” महात्मा गॉधी ” का अपमान तो कम से कम न करना ।
यह तो भोजन लेने की प्रक्रिया का भी मजाक ही बनाना है । कौन व्यक्ति है जो हर पल चपर – चपर करता रहता है ? चिकित्सा विज्ञान भी सही पाचन के लिए एक बार खाना खाने के बाद कम से कम छह घंटे बाद ही खाना खाने को कहता है । इतनी जल्दी तो मधुमेह के रोगी भी खाना नहीं खाते हैं । जिन्हें थोड़ा – थोड़ा और जल्दी खाने की सलाह डॉक्टर देते हैं । सवेरे आठ बजे नाश्ता करने के बाद दोपहर का भोजन भी लोग लगभग एक – दो बजे के बीच ही दोपहर में करते हैं । तो क्या ऐसे सभी लोग हर रोज पॉच घंटे का उपवास करते हैं ? माननीय पूर्व मुख्यमन्त्री रावत जी अगर ऐसा है तो हर व्यक्ति हर रोज दिन में दो बार उपवास करता है । एक सवेरे नाश्ता कर लेने के बाद दोपहर के भोजन तक और फिर दोपहर का भोजन कर लेने के बाद रात्रि का भोजन करने तक ।
इस मामले में मीडिया का बचकानापन भी सामने आया है । जिसने बड़े महत्व के साथ इस धरने को ” उपवास ” कह कर प्रकाशित और प्रसारित किया । किसी ने हरीश रावत जी के इस राजनीतिक ” उपवास ” पर न तो कोई सवाल उठाया और उनसे इस बारे में सवाल पूछा । ये कौन सी पत्रकारिता कर रहे हो भाई ? सत्ताओं के साथ बने रहना और उससे सवाल न करना तो थोड़ी देर के लिए अब समझ भी आ जाता है , क्योंकि उससे कई काम करवाने भी होते हैं । पर अगर नेताओं से भी सवाल नहीं करोगे तो ” पत्रकारिता ” कैसे होगी ?
तीन घंटे का ” उपवास ” करने की खबर तो अखबारों के हर संस्करण में है , लेकिन उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के नेता त्रिवेन्द्र पंवार द्वारा अपने साथियों के साथ भराड़ीसैंण ( जहॉ विधानसभा भवन बना है ) में 24 घंटे के ” उपवास ” की खबर स्थानीय स्तर पर ही अखबारों ने प्रकाशित कर के निपटा दी है। राज्य के दूसरों संस्करणों से यह खबर पूरी तरह से ” गायब ” कर दी गई है । ऐसा क्यों ? शायद मीडिया के लिए भी कार्यक्रमों व आन्दोलनों का महत्व नहीं है , बल्कि उसके लिए महत्वपूर्ण ” नेता ” हो गया है । पूर्व मुख्यमन्त्री का ” तीन घंटे का उपवास ” महत्वपूर्ण है , बजाय कि एक क्षेत्रीय पार्टी के 24 घंटे के उपवास से । मु्दा जबकि दोनों का एक ही था । बेशक ” पूर्व मुख्यमन्त्री ” पद नाम बड़ा है । मीडिया का इस पद – नाम के प्रति आकर्षित होना सम्भव है , पर क्या आप दूसरे संगठन के कार्यक्रम को बिल्कुल भी नजरअंदाज कर देंगे?