बी. डी. सुयाल
वन्य जीवों के महत्व तथा उनसे होने वाली परेशानियों को नकारा नहीं जा सकता| नरभक्षण मानव- वन्य जीव संघर्ष का अहम मुद्दा है | पिछले कुछ महीनों में बाघ व तैंदुऔं के नर भक्षी होने की घटनाएं नैनीताल जिले के लोगों के जहन में अभी ताजा हैं| जंगल के किनारे बसे लोगों को काफी दहशत भरे दिन गुजारने पड़े| वन विभाग को नर भक्षी बाघ को चिन्हित करने व पकड़ने में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी | बाघों की 9 प्रजातियां मुख्य हैं, उनमें से रायल बंगाल टाइगर भारत में पाया जाता है|
भारतीय बाघ एक शातिर दिमाग़ प्राणी है जो एक योजना बद्ध तरीके से शिकार करता है| जरा भी शक शुभा होने पर यह काफी सतर्क हो जाता है और अपनी योजना को परिवर्तित कर देता है| साधारण तौर पर बाघ जंगली जानवरों का शिकार करना पसन्द करता है और मनुष्यों से दूर रहता है हालांकि अप्रत्याशित टकराव की परिस्थिति में अपने बचाव के उद्देश्य से इन्सानो को जख्मी कर सकता है| ऐसी घटनाओं के आधार पर बाघ को नर भक्षी नहीं माना जा सकता है, वन्य जीव कानून भी इसकी इजाजत नहीं देता| जब तक बाघ इन्सानो के शिकार को अपनी आदत न बना ले और उसके पास इन्सानो को शिकार बनाने के पुख्ता कारण मौजूद न हों उसे तकनीकी व कानूनी तौर नर भक्षी घोषित करने में कठिनाई होती है| महान शिकारी व प्रकृति प्रेमी जिम कॉर्बेट ने 1944 में प्रकाशित “मेंन ईटर्स आफ कुमाऊँ” नामक पुस्तक में 400 इन्सानो का शिकार एक ही बाघ द्वारा किए जाने का जिक्र किया है | माना जाता है कि जिम कार्बेट ने अपने जीवन काल में 31 नर भक्षी बाघों व 2 नर भक्षी तैंदुऔं का शिकार किया जो लगभग 1200 पुरूषों, महिलाओं व बच्चों की मौत के जिम्मेदार थे |
1972 में किए गए प्रथम अखिल भारतीय बाघ गणना में पूरे भारत वर्ष में केवल 1867 बाघ पाए गए जबकि इनकी संख्या 1947 में लगभग 40,000 आंकी गयी थी| इस अप्रत्याशित गिरावट का मुख्य कारण अवैध शिकार व जंगलौ के विनाश को माना गया है| केन्द्र सरकार ने बाघों के संरक्षण के उद्देश्य से 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर प्रारंभ किया था और राज्य सरकारों के सहयोग से देश के विभिन्न क्षेत्रों में टाइगर रिज़र्वस की स्थापना की थी | इन प्रयासों की वजह से बाघों की संख्या 1867 से बढ़ कर 2018 में 2967 हो गयी| जो देश के 52 टाइगर रिजर्व में विचरण करते हैं| उत्तराखंड 442 बाघौं के साथ देश में तीसरे स्थान पर है|कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान में बाघों की संख्या का घनत्व सबसे अधिक है|
बाघ पारिस्थितिकी तंत्र के सबसे उच्च पाइदान में विराजमान हैं और सम्पूर्ण आहार श्रंखला व पारितंत्र सेवाओं को प्रभावित करते हैं, हर बाघ अपने इलाके की पारिस्थितिकी में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है| विश्व में बाघौं की संख्या बहुत कम होने की वजह से प्रत्येक बाघ को बचाना महत्वपूर्ण हो जाता है| इसलिए बाघ को नर भक्षी घोषित करना और उसे चिन्हित कर खत्म करने का निर्णय बहुत जटिल, दोषरहित और समय लेने वाली प्रक्रिया होती है| नर भक्षी बाघ को पकड़ने व पुनर्स्थापित करने के हर संभव प्रयास किये जाते हैं,बाघ को शूट करना अन्तिम निर्णय होता है जब उसे बचाने के हर प्रयास बिफल हो जांय| इसीलिए प्रभावित लोगों को संयम बरतने की सलाह दी जाती है और सहयोग करने की उम्मीद की जाती है| इन परिस्थितियों में जन आक्रोश समस्या को हल करने के बजाय कठिनाईयां बढ़ा देता है| बाघ एक टेरिटोरियल जानवर है और आमतौर पर अपने निर्धारित इलाके के भीतर ही रहना पसंद करता है| यहाँ तक कि अपनी सीमा के अन्दर दूसरे बाघों का अतिक्रमण भी बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करता| इसलिए पेशाब या शरीर की गंध के जरिये या पेड़ों की छाल को अपने पंजौं से खुरचकर अपने इलाके की निशानदेही करता रहता है, ताकि दूसरे बाघ उसके इलाके में प्रवेश न करें|
बाघ शाकाहारी जानवरों का शिकार पसन्द करता है लेकिन मौके की नजाकत देख अन्य जानवरों का भी शिकार कर लेता है| दुर्बल, अपंग, अपाहिज या अक्षम होने या प्राकृतिक शिकार के अभाव की स्थिति में ही इन्सान को शिकार बनाता है| अक्सर दुर्घटना वश इन्सान इसकी चपेट में आ जाते हैं| जनसंख्या व पर्यटन बढ़ने की वजह से जंगलों में जैविक दबाव काफी बढ़ गया है| प्राकृतिक क्षेत्रों में अतिक्रमण हो चुके हैं, जंगली जानवरों के स्वतंत्र विचरण में कई बाधाएं आने लगी हैं | खेतों की सीमाऐं वन क्षेत्र से मिल गई हैं| ऐसे हालात में बाघ या अन्य जंगली जानवर सामान्य तौर पर विचरण करते हुए अनायास ही लोगों या उनके मवेशियों के सम्पर्क में आ जाते हैं और अक्सर अप्रिय घटनाएं घट जाती है| ऐसे में किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता है| ऐसी घटनाओं में लोग प्रशासन या वन विभाग की संल्पितता ढूढने का प्रयास करने लगते हैं| समस्या तब खडी़ होती है जब लोग मानने को तैयार न हों जबकि यह स्पष्ट है कि वन्य जीव व इन्सानों के बीच टकराव के लिए हम काफी हद तक स्वयं जिम्मेदार हैं|
उत्तराखंड में 2022 में 11 लोगों को बाघ ने शिकार बनाया है जबकि 2021 में सिर्फ 2 लोगों की मौत हुई थी और 2020 में कोई मौत नहीं हुई थी | यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है ,जब तक वन्य जीवों के क्षेत्र में अतिक्रमण , हस्तक्षेप और दोहन होता रहेगा| इन्सान को वन्य जीवों के सह अस्तित्व को स्वीकारना होगा और सावधानी पूर्वक साथ- साथ जीने की कला सीखनी होगी | प्राकृतिक घटनाओं के लिए वन विभाग को दोषी ठहराने की सोच को बदलना होगा| हमें वन कर्मचारियों की विना शस्त्र जंगलौं की सुरक्षा करने के प्रयास की सराहना करनी चाहिए| हालांकि वन्य जीव या वनों का संरक्षण स्थानीय नागरिकों के सहयोग के विना संभव नहीं है| इस लिए वनों के किनारे रहने वाले लोगों को हमेशा सावधान रहना होगा| बाघ के लिए राष्ट्रीय उद्यान की सीमाएँ कोई बंदिश नहीं पैदा कर सकती हैं, इसलिए बाघों का आवादी से सटे जंगलों में विचरण करना एक आम बात है|
हाल ही में फतेहपुर रेन्ज में बाघ द्वारा की गई नरभक्षण की घटनाएं अभी लोगों के दिमाग़ में ताजा हैं| वन विभाग द्वारा बाघ को चिन्हित कर पकड़ने की प्रक्रिया अभी जारी है, जबकि 17 दिसम्बर, 2022 को लगभग 8.30 बजे एक बाघ को अमृतपुर (रानीबाग) स्थित एच एम टी कालोनी के नजदीक मैंने अपनी पत्नी के साथ देखा और उसकी कुछ फोटो भी ली| इस इलाके में कई वर्षों से बाघ नज़र नहीं आया है जबकि यह क्षेत्र बाघों का प्राकृतिक हैविटैट है लेकिन अत्यधिक जैविक दबाव के कारण बाघों का स्वतंत्र विचरण इस इलाके में बहुत सीमित हो गया है| वैसे तो नजदीक के जंगलों में बाघ का दिखना कोई अप्रत्याशित घटना नही है फिर भी आवादी भरे क्षेत्र में बाघ का पाया जाना लोगों की दिनचर्या में काफी अवरोध उत्पन्न कर सकता है और नरभक्षी होने का खतरा पैदा कर सकता है| इसलिए स्थानीय लोगों और पर्यटकों को सतर्क रहने की जरूरत है| बाघों के आवादी के नजदीक पाऐ जाने की स्थिति में वन विभाग भी जनहित में चेतावनी जारी करता रहता है जिसे गम्भीरता से लेने की आवश्यकता है|