राजीव लोचन साह
इस वर्ष जब राज्य बने बीस वर्ष होने जा रहे हैं, उत्तराखंड राज्य आन्दोलनकारी अब कहाँ हैं और उनकी हैसियत क्या है। अपने ढंग के अनोखे जन आन्दोलन, जिसका चरमोत्कर्ष वर्ष 1994 में हुआ था, के बाद उत्तराखंड की जनता अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये अपना एक अलग राज्य लेने में सफल हुई थी। उस वक्त उत्तराखंड की जनसंख्या का अधिकांश ही आन्दोलनकारी था, क्योंकि समाज के हर तबके ने, आयु, लिंग, जाति, धर्म के भेद के बगैर राज्य आन्दोलन में भाग लिया था। उत्साह में आकर अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने को तत्पर लोगों ने तब यह नहीं सोचा था कि राज्य बनने पर उन्हें अपने लिये अलग से कुछ हासिल होगा। हरेक का सपना था कि सबके लिये खुशहाली आये। इसलिये चन्द लोगों को आन्दोलनकारी करार देना बहुत सही नहीं है। मगर सुविधा के लिये जो लोग जो अलग-अलग स्थानों पर नेतृत्वकारी भूमिका में थे, जो गिरफ्तार हुए या जो पुलिस से पिटे उन्हें आन्दोलनकारी मान लिया जाये। राज्य आन्दोलन के छब्बीस वर्ष बाद ऐसे लोग अब कहाँ हैं ? जाहिर है कि इन सालों में अनेक लोग या तो जिन्दा नहीं रहे होंगे या फिर अत्यन्त वृद्ध होकर निष्क्रिय हो चुके होंगे। मगर अभी भी ऐसे लोग हैं, जिनकी आयु अभी पचास साल से कम है। ऐसे लोगों का काम था कि राज्य आन्दोलन के मुद्दों को जिन्दा रखें, राज्य आन्दोलन के बाद नये-नये कष्टों में घिरती आम जनता की आवाज को मुखरित करें और अपनेे संघर्ष की परिणति के रूप प्राप्त राज्य को लूटने वालों के खिलाफ लड़ते रहने के लिये हमेशा तत्पर रहें। मगर ऐसा नहीं हो रहा है, क्योंकि शातिर राजनीतिज्ञ नारायण दत्त तिवारी द्वारा उनके लिये उनके सामने मान्यताप्राप्त आन्दोलनकारी का एक ऐसा चुग्गा फेंक दिया गया, जिसके लालच में वे अपना आत्मसम्मान ही खो बैठे। अब यदि वे कोई महत्वपूर्ण बात भी करें तो कोई उस पर ध्यान नहीं देता, न शासन-प्रशासन और न आम जनता। इस पर्वतीय राज्य के लिये यह बहुत ही खतरनाक बात हुई।
राजीव लोचन साह 15 अगस्त 1977 को हरीश पन्त और पवन राकेश के साथ ‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू करने के बाद 42 साल से अनवरत् उसका सम्पादन कर रहे हैं। इतने ही लम्बे समय से उत्तराखंड के जनान्दोलनों में भी सक्रिय हैं।