पंकज पांडे
यूं तो किसी की भी मौत गमजदा कर देती है, परंतु कोई अल्प आयु में ही इस दुनियां से छूट जाए तो गम और अधिक बढ़ जाता है। लेकिन फैज की लिखी यह लाइनें, कि,
“जिस धज से कोई मक़तल में गया वो शान सलामत रहती है.
ये जान तो आनी जानी है, इस जाँ की तो कोई बात नहीं”
उन चंद इंसानों पर फिट बैठती हैं, जो अपने जीवनकाल में कुछ उल्लेखनीय कर जाते हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कांडा में कार्यरत डॉक्टर समी उन्नेसा भी उन्हीं चंद लोगों में से एक है, जिस पर फैज की यह लाइनें उपयुक्त बैठती हैं।
वर्तमान में गदरपुर चिकित्सालय में कार्यरत डॉ० समी उन्नेसा का 48 वर्ष की आयु में 09 अक्टूबर को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में निधन हो गया।
बिहार के चंपारण में गरीब किसान परिवार में जन्मी समी उन्नेसा ने देहरादून के हिमालयन चिकित्सा संस्थान से चिकित्सा में स्नातक करने के उपरांत, साल 2004 से चिकित्सा के क्षेत्र में कदम रखा। शुरुआती 4 साल, देहरादून के ही निजी चिकित्सालय में नौकरी करने के उपरांत, साल 2009 में उनकी नियुक्ति जिला चिकित्सालय रुद्रपुर में हुई। जहां उन्होंने अपनी कार्यशैली की बदौलत लोगों का विश्वास अर्जित करना शुरू किया। कार्य के प्रति समर्पण और सेवा भाव की वजह से रुद्रपुर में भी उन्हें लोग जानने लगे थे। वहां जिला चिकित्सालय में औसतन प्रतिदिन 150 तक बच्चों की डिलिवरी होती थी, जिस वजह से उनका अनुभव और दक्षता बढ़ती गई।
साल 2014 में उनका तबादला बागेश्वर जनपद के दूरस्थ पिछड़े क्षेत्र में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कांडा में हो गया। वहां उन्होंने देखा कि चिकित्सालय होने के बावजूद लोग डिलिवरी के लिए जिला चिकित्सायय बागेश्वर या अन्य उच्च केंद्रों में जाना पसंद करते थे, इसे उन्होंने एक चुनौती के तौर पर लिया। तब तक सालाना, औसतन 50 से कम महिलाओं की डिलिवरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कांडा में होती थी। उनके आने के बाद साल दर साल यह औसत बढ़ते गया। वह चर्चाओं में तब आई, जब उन्होंने एक साढ़े चार किलो से अधिक वजनी नवजात का सामान्य प्रसव वहां कराया। सामान्यतः 4 किलो से अधिक वजनी बच्चे की सिजेरियन डिलिवरी को तरजीह दी जाती है, क्योंकि ऐसे मामलों की नॉर्मल डिलीवरी में जच्चा और बच्चा दोनों की ही जान को खतरा होता है। यह खबर अखबार से भी सुर्खियों में रही। धीरे-धीरे डॉ० समी की ख्याति का असर यह हुआ कि न केवल कांडा क्षेत्र बल्कि पिथौरागढ़ जनपद के बेरीनाग, थल, पाखू आदि क्षेत्रों से भी प्रसव के लिए महिलाएं कांडा आकर अपने रिश्तेदारों के वहां आने लगी। सुदूर और पिछड़ा क्षेत्र होने के कारण कई प्रसव पीड़िताओं और उनके साथ आए परिजनों को डॉ० समी के कमरे में ही रहना पड़ता, उनके भोजन का इंतेजाम भी वहीं करना पड़ता था।
अपने कार्य के प्रति उनके समर्पण, सेवाभाव और लोगों के बढ़ते भरोसे की पुष्टि आंकड़े भी करते हैं। जहां साल 2015-16 में 53 प्रसव चिकित्सालय में हुए थे, वहीं 2016-17 में 96, 2017-18 में 153 और 2018-19 यह संख्या 234 तक पहुंच गई थी।
चिकित्सा क्षेत्र में उनकी सेवा को उनके देखते हुए नागरिक मंच बागेश्वर द्वारा उन्हें वर्ष-2018 के नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया।
2019 में उनका तबादला फिर से उधमसिंह नगर जनपद में हो गया। जहां वर्तमान तक वह गदरपुर के राजकीय चिकित्सालय में कार्यरत थी।
2 अक्टूबर 2022 को आयोजित हुए नागरिक मंच बागेश्वर के ग्यारहवें वार्षिक स्थापना समारोह में वह बागेश्वर आने वाली थी। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। इस बीच अचानक उन्हें स्ट्रोक पड़ गया। जिसके चलते उन्हें दिल्ली के एम्स में एक मरीज के रूप में भर्ती होना पड़ा। लगभग 2 सप्ताह जिंदगी और मौत से जूझते हुए, कल शाम उन्होंने दम तोड़ दिया।
नैनीताल समाचार व नागरिक मंच बागेश्वर उनके परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करने के साथ ही डा० समी उन्नेसा को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
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उमेश विश्वास
डॉ समी के सेवाभाव और दक्षता को उत्तराखंड के लोग कभी नहीं भूलना चाहेंगे। उन्होंने चिकित्सक के पेशे के साथ ही अपने राज्य बिहार का नाम भी ऊँचा किया। ये बहुत दुखद है कि उन जैसी शख़्सियत असमय ही विदा हो गई। उनका निधन समाज के लिये अपूर्णीय क्षति है, उनके परिवार पर जाने क्या बीत रही होगी। उत्तराखंड के लोगों को उनके परिवार की हर प्रकार से मदद करनी चाहिए।