अजेयमित्र सिंह बिष्ट
जब मैं स्मृति पटल में स्वामी जी के सानिध्य में व्यतीत किए गए समय को उकेरता हूं तो मुझे अपने बचपन की स्मृतियों में एक झलक सबसे पहले नजर आती है जिसमें मैं, बब्बा (शमशेर सिंह बिष्ट ), ईजा (माताजी)और परिवारजनों के साथ कहीं सुदूरवर्ती हरी-भरी नदी के किनारे एक कुटिया में गेरूए वस्त्रों में बैठे एक सन्यासी के साथ वार्तालाप कर रहे हैं। जैसे- जैसे मैं बड़ा होता गया तब मैंने जाना कि वह सन्यासी सिर्फ बाहरी रूप से एक आम सन्यासी ना होकर (जैसे अन्य सन्यासी के बारे में हमारी धारणा होती है) आंतरिक रूप से भी सही मायने में परिपूर्ण एक महान आत्मा है ।बब्बा( पिताजी) के प्रगाढ़ संबंधों के कारण स्वामी जी से हमारे परिवार का एक घनिष्ठ नाता रहा। स्वामी जी , बब्बा का नाता ऐसा था कि आजन्म से रहा हो। स्वामी जी के बारे में लिखने के लिए तो बहुत कुछ है और उनके मानवता के लिए किए गए कार्य, मैं शब्दों में भी बयां नहीं कर सकता। दुनिया के लिए स्वामी अग्निवेश एक बहुत बड़ी शख्सियत रहे हैं और आम आदमी शायद उन्हें उनके वस्त्रों से या उनके समाज के प्रति कहे गए शब्दों से उनके व्यक्तित्व को रच दें लेकिन जो मुझे स्वामी जी को जानने का मौका इतनी नजदीकी से उनके साथ रहते हुए मिला वह शायद बहुत कम लोगों को मिल पाया हो। वह अक्सर कहां करते हैं कि जब बच्चा होता है तो हम उसको 11 दिन होते ही धर्म और मूर्ति पूजा से ज्ञान द्वारा बांध देते हैं लेकिन असल में हम उसे एक अच्छा इंसान बनाना भूल जाते हैं। आपके द्वारा कहे गए शब्द बार-बार याद आते हैं की मूर्ति पूजन से ज्यादा महत्वपूर्ण इंसान को इंसान समझना और अहमियत देना है ।अगर हम देखें तो भगवान तो कण-कण में बसता है चाहे वो मेरे अंदर हो या आपके सिर्फ आत्म अवलोकन की जरूरत है।
स्वामी जी का पहाड़ और उत्तराखंड से विशेष लगाओ 1970 के दशक से ही रहा बब्बा ( शमशेर सिंह बिष्ट) उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी से विशेष लगाव होने से स्वामी जी का पहाड़ उत्तराखंड आना जाना लगा रहता । पहाड़ की उन्नति, जल, जंगल ,जमीन और गरीब दलितों के उत्थान पर ही अधिकतर चर्चा का विषय रहता । संपूर्ण भारत में उत्तराखंड के दूरदराज इलाकों में दलितों, आदिवासियों ,किसानों ,बंधुआ मजदूरों, भूमिहीन मजदूर संगठनों आदि उत्पीड़ित गरीब जनों के बीच व्यापक रूप से आपने काम किया। इनके बीच रहकर हक- हकूको के लिए अनेकों लड़ाईयां लड़ी। उत्तराखंड के विभिन्न आंदोलनों में भी संघर्ष वाहिनी के साथ स्वामी जी का अहम योगदान रहा जिसमें वन बचाओ आंदोलन जो कि बाद में चिपको आंदोलन के रूप से जाना गया ,नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन ,उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन आदि प्रमुख रहे। सांप्रदायिक आधार पर देश के टुकड़े करने वाली ताकतों को शिकस्त देने के लिए हमेशा तत्पर रहे जिसमें मेधा पाटकर (नर्मदा बचाओ आंदोलन )शंकर गुहा नियोगी ,अब्दुल जब्बार खां ,वीपी सिंह ,शमशेर सिंह बिष्ट ,डॉ बनवारी लाल शर्मा , बी.डी. शर्मा आदि के साथ धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी व जनतांत्रिक मूल्यों के लिए हमेशा प्रतिबंध रहे। सामाजिक ,आर्थिक न्याय के लिए सांप्रदायिक सद्भाव के लिए पैदल यात्रा भी की गई ।
स्वामी अग्निवेश एक महान शख्सियत होने के बावजूद एक विनम्र ,सरल, मृदुभाषी, कोमल हृदय व्यक्तित्व रखते हैं।जब से मैंने उन्हें देखा और मिला अपने संरक्षक में एक पाया। मेरे विद्यार्थी जीवन से ही वह प्रेरणास्रोत रहे। उनके व बब्बा के संघर्षों और कार्यों से हमने नैतिक शिक्षा के साथ – साथ व्यवहारिक ज्ञान भी पाया जो कि आज के संदर्भ में और भी ज्यादा प्रासंगिक लगता है।
बब्बा और स्वामी जी अपने युवावस्था से ही चेतना के स्रोत बने रहे और कई आंदोलनों के प्रणेताओं में रहे और कई सामाजिक, राजनीतिक ,आर्थिक और भौगोलिक बदलाव भी जिनका परिणाम रहे ।
उम्र बढ़ने के बाद भी वे ऊर्जावान बने रहे जिससे कि नव युवकों को भी खूब ऊर्जा मिलती रही उनसे मिलने पर नव युवकों में भी एक नया जोश आ जाता और कुछ कर गुजरने की इच्छा शक्ति जागृत हो जाती। ज्ञान के भंडार से स्फूरित स्वामी जी हमेशा एक बेहतर समाज बनाने की ओर अग्रसर होते रहे हैं। उनका मानना है कि जितने अधिक हाथ बाल मजदूरी में लगते रहेंगे उतनी अशिक्षा व बेरोजगारी अधिक से अधिक बढ़ती रहेगी। अतः प्रत्येक बाल मजदूर वह गरीब को शिक्षित करके आत्मनिर्भर बनाना होगा तभी यह राष्ट्र निर्माण होगा।उनका प्रत्येक बाल युवा वर्ग से अंतरंग स्नेह झलकता रहता।हम लोग भी पारिवारिक रूप से जब भी उनसे मिलते वह हमेशा अपने पांव छूने से मना करके हाथ मिलाते या पीठ पर हाथ फेर कर अपना प्रेम दर्शाते । बब्बा और ईजा (माता जी ) जब भी उनसे मिलते हंसते हुए जय हो बहन जी कहकर, हाथ जोड़कर बब्बा से भी पीठ पर हाथ फेर कर मिला करते।
उनका स्नेह व्यवहार में भी उजागर होता है जब हम घनघोर दुख की घड़ी में बब्बा की बीमारी मैं उनके निवास स्थान ताज अपार्टमेंट ,नई दिल्ली में एम्स (हॉस्पिटल) के नजदीक होने के कारण अक्सर रुका करते जो कि सही मायने में हमारे लिए अपना घर ही रहा है। स्वामी जी का साथ और सहयोग हमेशा हमें मिलता रहा और घनघोर दुख की घड़ी में भी हम सब परिवार जनों का आत्म बल बढ़ाते रहे । यही कारण था कि बब्बा जल्द ही स्वस्थ्य नजर आने लगे।
बब्बा के घनिष्ठ मित्र होने के नाते स्वामी जी ने हमेशा हमें आत्मीयता से मदद की आज के इस घोर कलयुग में जहां लोग सगे संबंधियों को भी ठुकरा देते हैं स्वामी जी हमारे लिए देवता समान रहे हैं। आज जब बब्बा इस दुनिया में नहीं है तब भी स्वामी जी का हमारे प्रति व्यवहार उतना ही प्रेम और उनका बेटा कहके संबोधन बब्बा की याद दिलाता है ,सही मायने में हमारे लिए वह एक अभिभावक ही हैं । मेरा खुशनसीब ही रहा कि स्वामी जी के इतने करीब रह पाया और उनके साथ अमूल्य समय व्यतीत कर पाया । इतनी उम्र के बावजूद स्वामी अग्निवेश हमेशा कठिन पारिश्रमिक कार्यों में लगे रहे ,उनकी दिनचर्या को हमने करीब से जब देखा तो महसूस हुआ कि जब आप अंदरूनी रूप से ऊर्जा से परिपूर्ण हो तो उम्र की बाधा भी छोटी नजर आती है। भीषण गर्मी में भी जब वह सुबह घर से निकल जाया करते और शाम को ही वापस आते थे तो दरवाजा खोलते ही उनकी वह मुस्कान पूरे घर में उर्जा का संचार कर देती। करीब 2 महीना लगातार स्वामी जी के साथ रहते हुए मैंने पाया कि सबसे बड़ी पूंजी हमारा स्वास्थ्य और इंसानियत से भरा व्यवहार ही है जो सही मायने में हमें मनुष्य बनाता है। स्वामी जी के साथ हमारे संबंध जैसे अपने पिताजी के साथ एक मित्र के साथ दूसरे मित्र का बेरोकटोक किसी भी विषय पर चर्चा या आदान-प्रदान होता।उसी रूप में मैंने स्वामी जी के साथ रहे ।
स्वामी जी का निवास स्थान ताज अपार्टमेंट के द्वार हमारे लिए रात दिन खुले रहते और हम बेरोकटोक वहां आते जाते रहे। बब्बा की बीमारी में एम्स में इलाज के दौरान हम सभी उनके ही ताज अपार्टमेंट में ठहरते , माता जी का इलाज भी उनके निवास स्थान में रहते हुए हुआ। हर एक व्यक्ति के लिए भी उनके घर के द्वार हमेशा खुले रहते। यहां तक कि झारखंड में जुलाई 2018 में उन पर हुए जानलेवा हमले के बावजूद बिना किसी सुरक्षा बल के उनके निवास स्थान के द्वार हर जरूरतमंदों के लिए खुले रहते। वह हर गरीब व लाचार का सहारा व हमेशा देवता समान रहेंगे। आज इस वैश्विक महामारी व विपत्ति काल में जब पूरे विश्व और भारतवर्ष को एक निर्भीक नेतृत्व की आवश्यकता है ऐसे में स्वामी जी के अस्वस्थ होने के कारण निश्चित ही पूरे समाज को एक कमी महसूस हो रही है। उनके हंसते हुए चेहरे पर स्नेह की झलक मिलते ही व्यक्ति अपने कष्ट भूलने लगता है। जहां हमारा समाज धर्म,जाती के नाम पर आपस में बैर कर रहा है और इतना संकीर्ण हो गया है की भाई -भाई का दुश्मन बन जाता है, इस घोर विपदा में स्वामी जी का मार्गदर्शन और भी महत्वपूर्ण हो जाता ।आज जब स्वामी जी हमे अलविदा कर अनंत यात्रा में निकल गए है ,एक शून्य सा नजर आ रहा जिसकी भरपाई नामुमकिन है।निश्चित ही हमने समाज का एक प्रखर पहरी खो दिया । व्यक्तिगत रूप से एक अभिवावक हमसे जुदा हो गया है । आप अपने विचारो में सदा अमर रहेंगे ।