केशव भट्ट
बागेश्वर जिले के पिंडरघाटी के द्वाली में 50 से ज्यादा पर्यटक और स्थानीय लोगों के फसे होने की सूचना मिल रही है। वहीं सुंदरढूंगा घाटी में मैकतोली, भानूटी ग्लेशियर के आस पास ट्रैक पर गए चार पर्यटकों की मौत हो गई तो दो लापता बताए जा रहे हैं। यह जानकारी उनके साथ बतौर पोर्टर गए सुन्दरढूंगा से सुरेंद्र सिंह पुत्र हरक सिंह ने दी। उसने बताया कि एक घायल समेत चार लोग खाती गांव वापस लौट आए हैं। वहीं देर से हरकत में आए जिला प्रशासन ने पिंडारी की तरफ दो टीमें रेस्क्यू करने के लिए भेज दी हैं। कपकोट के एसडीएम परितोष वर्मा ने बताया कि सुन्दरढूंगा की तरफ भी एसडीआरएफ की टीम रवाना कर दी गई है। इसके अलावा मेडिकल टीम भी रवाना हो गई है।
उत्तराखंड में 17 अक्टूबर से 20 अक्टूबर तक बारिश ने जमकर कहर बरफाया है। आपदा से गढ़वाल, कुमाउं में अभी तक 60 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। बागेश्वर जिले के सुंदरढूंगा घाटी में गए पर्यटकों में से चार की मौत की अस्पुष्ट खबर आ रही है। बताया जा रहा है कि जिला आपदा विभाग को दो दिन पहले कलकत्ता से किसी महिला ने फोन कर बताया कि उसके परिजन और उनके मित्र सुंदरढूंगा घाटी में ट्रैक पर गए हैं, जहां उनके साथ कुछ दुर्घटना की सूचना उसे मिली है। महिला ने आपदा विभाग से इस बारे में उनकी मदद करने की गुहार भी लगाई, लेकिन उक्त महिला की फरियाद को हल्के में ही लिया गया तो उक्त महिला ने देहरादून मुख्यालय से गुहार लगाई। इस पर देहरादून मुख्यालय से कार्यवाही करने के निर्देश के बाद बागेश्वर जिला प्रशासन हरकत में आया और 20 अक्टूबर को देर सांय एक टीम को रेस्क्यू के लिए रवाना किया। हालात गंभीर होते देख आज रेस्क्यू करने के लिए जिला प्रशासन ने एक टीम फिर भेजी है और इसके साथ ही हेलीकॉप्टर से रेस्क्यू अभियान की कवायद भी शुरू कर दी है।
वहीं, हिमाल संस्था के अध्यक्ष रमेश मुमुक्षु ने बताया कि, ‘पिंडर घाटी में वर्षा के कारण पिंडारी ट्रेक के द्वाली और फुरकिया में स्थानीय लोगों के अनुसार ग्रामीण भेड़ वाले और ट्रैकिंग पर 25 से अधिक लोग 18 तारीख से फंसे हुए है। खाती गांव में कोई भी नेटवर्क काम नही करता। सैटेलाइट फोन खराब पड़ा है। उनका कहना है कि खाती गांव में मोबाइल सेवा को जल्द से जल्द पुख्ता करें ताकि सूचना का आदान—प्रदान सुचारू और तुरन्त हो सकें। अभी कोई भी मोबाइल काम नही करते। इसके साथ ही आपदा के लिए ग्रामीणों को ट्रेनिंग और सुविधा प्रदान की जाए ताकि अभी जो घटना घटी है, इसके लिए प्रशासन का इंतजार न करना पड़े।’
लेकिन..! कुंभकरणी नींद में सोये प्रशासन और कतिपय नेताओं से ये उम्मीद करना बेमानी है कि वो, जनता की पीड़ा को कभी समझेंगे.