जगमोहन रौतेला
प्रख्यात भौतिक विज्ञानी व कुमाऊँ विश्वविद्यालय के पहले कुलपति डॉ. डीडी पंत के जन्म शताब्दी समारोहों की श्रंखला में हल्द्वानी के मेडिकल कॉलेज के सभागार में गत 13 अक्टूबर 2019 को कार्यक्रम का आयोजन किया गया. वक्ताओं ने कहा कि डॉ. पंत जैसे व्यक्तित्व कभी कभार ही पैदा होते हैं. उन्होंने कुमाऊँ विश्वविद्यालय को जिस तरह से एकादमिक क्षेत्र में ऊँचाईयों पर पहुँचाया, वह आज भी एक उपलब्धि है. डॉ. पंत को अपने देश व समाज से बहुत ही प्यार था, इसी कारण से उन्होंने अमेरिका में अपना भविष्य तलाशने की बजाय भारत में ही रहना पसन्द किया.
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महापौर डॉ. जोगेन्द्र पाल सिंह रौतेला ने कहा कि डॉ. पंत हमारी विशिष्ट पहचान थे. उनका कुमाऊँ विश्वलिद्यालय से जुड़ा रहना ही हमारे लिए गौरव की बात रही है. उन्होंने अपने निर्देशन में अनेक विद्यार्थियों को उच्च कोटि के शोध कार्य करवाए. उनके अनेक विद्यार्थी आज देश के अनेक उच्च कोटि के संस्थानों में वैज्ञानिक हैं और कई देश के विश्वविद्यालयों में पढ़ा रहे हैं. एक उच्च कोटि का भौतिक विज्ञानी होने के बाद भी उनकी उत्तराखण्ड के विकास को लेकर अपनी एक अलग सोच थी.
प्रो. शेखर पाठक ने उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि डॉ. पंत नैनीताल के डीएसबी कॉलेज में भौतिक विषय के संस्थापक रहे. उन्होंने प्रख्यात वैज्ञानिक प्रो. सीवी रमन के निर्देशन में भौतिकी में अपना शोध पूरा किया. प्रो. रमन ने उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें भविष्य का वैज्ञानिक घोषित किया था. बाद में अपनी प्रतिभा के कारण ही उन्हें एक फेलोशिप के लिए अमेरिका जाने का अवसर मिला. वहॉ शोध करने के दौरान उन्हें अमेरिका के अनेक उच्च कोटि के संस्थानों ने अपने यहॉ नौकरी करने का अनुरोध किया. पर डॉ. पंत ने अमेरिका में अच्छी सुविधाओं वाली नौकरी करने की बजाय अपने देश और इपनी मातृभूमि उत्तराखण्ड लौटना स्वीकार किया. अपने इसी प्रण के कारण उन्होंने कुमाऊँ विश्वविद्यालय के सहारे यहॉ की उच्च शिक्षा को एक नया आयाम दिया. डॉ. पाठक ने डॉ. पंत के जीवन के कुछ अलग पहलुओं के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि वे फुटबाल के अच्छे खिलाड़ी थे. उन्हें क्रिकेट देखना भी बहुत पसन्द था. इसके अलावा ताश खेलना भी उनको अच्छा लगता था. इसके अलावा उन्हें जब भी वक्त मिलता वे साहित्य की विभिन्न विधाओं की पुस्तकें पढ़ना नहीं भूलते थे.
प्रो. गिरिजा पाण्डे ने कहा कि डॉ. पंत को समझना और जानना अपने पूरे समाज के समझने और जानने की तरह है. उनके शताब्दी समारोह के बहाने हम पूरे पहाड़ को भी पूरी समग्रता के साथ समझ सकते हैं. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. कविता पान्डे ने कहा कि भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में उनके द्वारा किए शोध कार्यों को हमेशा याद रखा जाएगा. पंतनगर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. बीएस बिष्ट ने कहा कि डॉ. पंत जैसे लोग बहुत ही कम होते हैं, जो हर तरह के कार्य बड़ी ही दक्षता के साथ कर लेते हैं. वे कुशल प्रशासक (कुलपति और उत्तर प्रदेश में उच्च शिक्षा विभाग के निदेशक के तौर पर), बेहतरीन अध्यापक, प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी होने के साथ ही उत्तराखण्ड की चिंता करने वाले एक राजनैतिज्ञ भी थे. ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है. वे एक ही समय में इतनी सारी भूमिकाओं का निर्वाह कैसे कर रहे थे ? यह भी आज शोध का एक विषय हो सकता है.
नैनीताल समाचार के सम्पादक राजीव लोचन साह ने नैनीताल में उनके साथ बिताए दिनों को याद करते हुए कहा कि एक भौतिक विज्ञानी होने के बाद भी तत्कालीन उत्तर प्रदेश में उत्तराखण्ड की बदहाली भी उनकी चिंताओं में शामिल रहा. यही वजह है कि जब 24 जुलाई 1979 को मंसूरी में ” पर्वतीय जन विकास सम्मेलन ” का आयोजन किया गया तो डॉ. पंत उसमें शामिल होने के लिए वहॉ पहुँच गए. बैठक में उनके न चाहते हुए भी उन्हें वहॉ गठित क्षेत्रीय राजनैतिक पार्टी उत्तराखण्ड क्रान्ति दल का अध्यक्ष चुन लिया गया. वे उत्तराखण्ड के आर्थिक व सामाजिक पिछड़ेपन को लेकर चिंतित जरूर थे, लेकिन राजनीति में उनकी बहुत ज्यादा रूचि नहीं था. यही कारण था कि जिस क्षेत्रीय राजनैतिक दल के वे संस्थापक अध्यक्ष बन गए थे, उससे ही उनका जल्दी ही मोहभंग भी हो गया था.
One Comment
Chandrashekhiar Tewari
Shandaar aur saarthak ayojan. Badhaai.