चारु तिवारी
सीमांत गांधी अब्दुल गफ्फार खान भारत विभाजन के बाद पेशावर में ही रहे। वे जब भारत आये तो प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने खुशी जाहिर करते हुये कहा- ‘आपने बहुत अच्छा किया, आप हम सबसे मिलने आये।’ गफ्फार खां ने उत्तर दिया- ‘मैं आपसे नहीं, चन्द्रसिंह गढवाली से मिलने आया हूं।’ महात्मा गांधी जी ने कहा था- ‘मुझे एक और चन्द्र सिंह गढवाली मिल गया होता तो भारत कभी का स्वतंत्र हो गया होता।’ इन दो महान नेताओं के वक्तव्यों से चन्द्र सिंह गढवाली के महत्व को समझा जा सकता है।
उत्तराखंड की राजनीतिक-सामाजिक चेतना के दो महत्वपूर्ण ऐतिहासिक पड़ाव हैं। एक 23 अप्रैल,1930 जब गढ़वाली सैनिकों ने पेशावर में निहत्थे पठानों पर गोली चलाने से इंकार कर राष्ट्रीय आंदोलन को न केवल ताकत दी, बल्कि ज़ुल्म के खिलाफ खड़े होने का साहस भी दिया। क़ौमी एकता की जो मिसाल गढवाली सैनिकों ने दी उसे नजीर माना जाता है। दूसरी ओर 30 मई, 1930 को तिलाडी में टिहरी राजसत्ता ने अपने हकों के लिये इकट्ठी अपनी ही निहत्थी जनता पर गोलियां बरसाई। इन दोनों घटनाओं का जिक्र एक साथ इसलिए करना जरूरी है क्योंकि जहां एक ओर चन्द्र सिंह गढवाली के नेतृत्व में गढवाली सैनिक दुनिया में सौहार्द और भाईचारे का संदेश दे रहे थे, वहीं उन्हीं गढ़वाली सैनिकों के राज्य में राजा उन्हें गोली से भून रहा था।
इन घटनाओं ने हमारे लिये संघर्ष का एक नया रास्ता तैयार किया। आजादी के आंदोलन में भी और बाद में भी। यह अलग बात है कि हम सब लोगों का उस सच से भी साक्षात्कार हुआ कि जिन लोगों ने अपनी निहत्थी जनता पर गोलियां चलाई वे लगातार आजाद भारत में हमारे प्रतिनिधि रहे। आज भी उन सत्ताओं के साथ खड़े हैं जो जल, जंगल और जमीन से लोगों को अलग करने की नीतियां बना रहे है दूसरी तरफ वीर चन्द्रसिंह गढवाली की वह धारा जो लगातार यहां के संसाधनों को बचाने की लड़ाई लड़ रहे थे वे कहीं नहीं हैं। खुद चन्द्र सिंह गढवाली का आजाद भारत और अपनों के बीच में क्या मूल्यांकन हुआ यह समझने के लिए उनकी यह चिट्ठी काफी है-
सेवा में,
माननीय मुख्यमंत्री महोदय
उत्तर प्रदेश सरकार , लखनऊ
पूज्य महोदय,
1- मेरी आर्थिक हालत बहुत खराब हो गई है। मेरे पास कोटद्वार भाबर के मल्ला सुकरौड में 30 बीघा जमीन बिना सिंचाई की है, जो बिल्कुल आमदनी रहित व कम है। अगर इसमें भी किसी साझीदार (दिहाडी) को बैठाना चाहूं तो कोई राजी नहीं होता, क्योंकि न तो सिंचाई का प्रबंध है और न उस पर अब तक धनाभाव के कारण खोद-खाड कर पाया हूं। इसके अलावा इस जमीन पर दो कुटुंबों का पालन-पोषण भी नहीं कर सकता। अगर मैं खुद खेती करना चाहूं तो मैं और मेरी स्त्री की उम्र, स्वास्थ्य अब श्रम करने के लिये जवाब दे चुके हैं। मेरे चार बच्चे 12, 8 और दो वर्ष के हैं। बड़ी लड़की कक्षा 8 में पढ़ती है और छोटे प्राइमरी में हैं।
2- आमदनी के नाम पर मुझे 16 रुपये पेंशन मिलती है, जो जमीन की लगान के, डंगरों की चराई वगैरह ऊपरी खर्च में व्यय हो जाया करती है।
3- मलेरिया बुखार से मेरा कुटुंब बिल्कुल पीड़ित है, उनके लिये दवाई व खुराक की कमी है। दून व फल तो क्या नमक-मिर्च भी नसीब नहीं है।
4- मेरे ऊपर 1400 रुपये का कर्ज हो चुका है। साहूकार तकाजा लगाये बैठे हैं। इसको मैंने उपरोक्त नई तोड़ जमीन को आबाद करने व झोपड़ी आदि बनाने, बैल-खेती के औजार वगैरह खरीदने में खर्च किया।
अब मेरी दशा निम्नलिखित है-
1- झोपड़ी वर्षा से टूट चुकी है, जो बाहर पड़ता वही भीतर आ रहा है।
2- कपड़ा, बर्तन जर्जर हो चुके हैं। खाना पकाने के बर्तनों में कई छेद हो चुके हैं। एक बैल मर गया था, उसके स्थान पर दूसरा खरीदा, वह भी जवाब देने वाला है। गढ़वाल में अन्न का अकाल है। मैं भी उसका शिकार हूं। इसलिए मैं आपकी शरण में आया हूं। आप मेरी यथोचित सहायता करें, तो मेरा आखिरी जीवन सुख से व्यतीत हो सकेगा। आप जो भी उचित हो, सहायता दें।
भवदीय
चन्द्र सिंह गढवाली
ग्राम- धुर्वपुर, खास भाबर, कोटद्वार, गढ़वाल
पेशावर विद्रोह के नायक चन्द्र सिंह गढवाली का 20 सितंबर, 1954 को लिखा पत्र यह समझने के लिये काफी है कि इतिहास की एक इबारत लिखने वाले इस मनीषी ने किस तरह जनता के बेहतर भविष्य के लिये अपना सबकुछ न्यौछावर किया। आज उनकी जयंती है। ऐसे युग पुरुष को कृतज्ञ श्रद्धांजलि।
पेशावर विद्रोह के नाम से हम जिस ऐतिहासिक घटना को जानते हैं उसके पीछे आजादी की उत्कंठा थी। गढवाली सैनिकों को 1930 में इनकी बटालियन को पेशावर जाने का हुक्म हुआ, 23 अप्रैल, 1930 को पेशावर में किस्साखानी बाजार में खान अब्दुल गफ्फार खान के लालकुर्ती खुदाई खिदमतगारों की एक आम सभा हो रही थी। अंग्रेज आजादी के इन दीवानों को तितर-बितर करना चाहते थे, जो बल प्रयोग से ही संभव था। कैप्टेन रैकेट 72 गढ़वाली सिपाहियों को लेकर जलसे वाली जगह पहुंचे और निहत्थे पठानों पर गोली चलाने का हुक्म दिया। चन्द्र सिंह भण्डारी कैप्टेन रिकेट के बगल में खड़े थे, उन्होंने तुरन्त सीज फायर का आदेश दिया और सैनिकों ने अपनी बन्दूकें नीचीं कर ली।
चन्द्र सिंह ने कैप्टेन रिकेट से कहा कि ‘हम निहत्थों पर गोली नहीं चलाते’ इसके बाद गोरे सिपाहियों से गोली चलवाई गई। चन्द्र सिंह और गढ़वाली सिपाहियों का यह मानवतावादी साहस अंग्रेजी हुकूमत की खुली अवहेलना और राजद्रोह था। उनकी पूरी पल्टन एबटाबाद(पेशावर) में नजरबंद कर दी गई, उनपर राजद्रोह का अभियोग चलाया गया। हवलदार 243 चन्द्र सिंह भण्डारी को मृत्यु दण्ड की जगह आजीवन कारावास की सजा दी गई, 16 लोगों को लम्बी सजायें हुई, 39 लोगों को कोर्ट मार्शल के द्वारा नौकरी से निकाल दिया गया। सात लोगों को बर्खास्त कर दिया गया, इन सभी का संचित वेतन जब्त कर दिया गया। यह फैसला मिलिट्री कोर्ट द्वारा 13 जून, 1930 को ऎबटाबाद छावनी में हुआ। बैरिस्टर मुकुन्दीलाल ने गढ़वालियों की ओर से मुकदमे की पैरवी की थी। चन्द्र सिंह गढ़्वाली तत्काल ऎबटाबाद जेल भेज दिये गये, 26 सितम्बर, 1941 को 11 साल, 3 महीन और 18 दिन जेल में बिताने के बाद वे रिहा हुये। ऎबटाबाद, डेरा इस्माइल खान, बरेली, नैनीताल, लखनऊ, अल्मोड़ा और देहरादून की जेलों में वे बंद रहे और अनेक यातनायें झेली। नैनी सेन्ट्रल जेल में उनकी भेंट क्रान्तिकरी राजबंदियों से हुई। लखनऊ जेल में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से भेंट हुई।
जेल से रिहा होने के बाद कुछ समय तक वे आनन्द भवन, इलाहाबाद रहने के बाद 1942 में अपने बच्चों के साथ वर्धा आश्रम में रहे। भारत छोड़ो आन्दोलन में उत्साही नवयुवकों ने इलाहाबाद में उन्हें अपना कमाण्डर इन चीफ नियुक्त किया। डाॅ कुशलानन्द गैरोला को डिक्टेटर बनाया गया, इसी दौरान उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया, नाना जेलों में कठोर यातनायें दी गई, 6 अक्टूबर, 1942 को उन्हें सात साल की सजा हुई। 1945 में ही उन्हें जेल से छोड़ दिया गया, लेकिन गढ़वाल प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। जेल प्रवास के दौरान उनका परिचय यशपाल से परिचय हुआ और कुछ दिन उनके साथ वे लखनऊ में रहे। फिर अपने बच्चों के साथ हल्द्वानी आ गये। जेल प्रवास के दौरान वे आर्य समाजी हो गये, इस बीच उन्होंने क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट विचारों को अपनाया और 1944 में कम्युनिस्ट कार्यकर्ता के रुप में सामने आये, 1946 में चन्द्र सिंह ने गढ़वाल में प्रवेश किया, जहां जगह-जगह पर जनसमूह ने उनका भव्य स्वागत किया।
कुछ दिन गढ़वाल में रहने के पश्चात वे किसान कांग्रेस में भाग लेने लुधियाना चले गये और वहां से लाहौर पहुंचे, दोनों जगह उनका भारी स्वागत हुआ। टिहरी रियासत् की जनक्रान्ति में भी इनकी सक्रिय भूमिका रही है। नागेन्द्र सकलानी के शहीद हो जाने के बाद गढ़वाली ने आन्दोलन का नेतृत्व किया। कम्युनिस्ट विचारधारा का व्यक्ति होने के कारण स्वाधीनता के बाद भी भारत सरकार उनसे शंकित रहती थी। वे जिला बोर्ड के अध्यक्ष का चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन सरकार ने उनपर पेशावर विद्रोह का सजायाफ्ता होने के आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया। सामाजिक बुराईयों के उन्मूलन के लिये वे सदैव संघर्षरत रहे, 1952 में उन्होंने पौड़ी विधान सभा सीट से कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से चुनाव लडा, लेकिन कांग्रेस की लहर के आगे वे हार गये।उत्तराखण्ड के विकास की योजनाओं के लिये उन्होंने अपनी आवाज उठाई और बाद के वर्षों में पृथक उत्तराखण्ड राज्य के समर्थन से लेकर विभिन्न सामाजिक और राजनैतिक गतिविधियों में उन्होंने हिस्सेदारी की।
पेशावर विद्रोह में हवलदार चन्द्र सिंह भण्डारी के अलावा निम्न सिपाहियों को लम्बी सजायें हुई-
1- हवलदार 250 नारायण सिंह गुसांई
2- नायक 224 जीत सिं रावत
3- नायक 387 भोला सिंह बुटोला
4- नायक 906 केशर सिंह रावत
5- नायक 1176 हरक सिंह धपोला
6- लांस नायक 1623 महेन्द्र सिंह नेगी
7- लांस नायक 1804 भीम सिंह बिष्ट
8- लांस नायक 2017 रतन सिंह नेगी
9- लांस नायक 2088 आनन्द सिंह रावत
10- लांस नायक 2238 आलम सिंह फरस्वाण
11- लांस नायक 2299 भवान सिंह रावत
12- लांस नायक 2698 उमराव सिंह रावत
13- लांस नायक 3164 हुकुम सिंह कठैत
14- लांस नायक 4204 जीत सिंह बिष्ट
15- लांस नायक 1069 सुन्दर सिंह बुटोला
16- लांस नायक 2472 खुशहाल सिंह गुसाई
17- लांस नायक 2436 ग्यान सिंह भण्डारी
18- लांस नायक रुपचन्द्र सिंह रावत
19- लांस नायक 3215 श्रीचन्द सिंह सुनार
20- लांस नायक 3326 गुमान सिंह नेगी
21- लांस नायक 3564 माधो सिंह नेगी
22- लांस नायक 3607 शेर सिंह असवाल
23- लांस नायक 3637 बुद्धि सिंह असवाल
24- लांस नायक 3791 जूरासंध सिंह असवाल
25- लांस नायक 3818 राय सिंह नेगी
26- लांस नायक दौलत सिंह रावत
27- लांस नायक 4267 डब्बल सिंह रावत
28- लांस नायक 4323 रतन सिंह नेगी
29- लांस नायक 4383 श्याम सिंह सुनार
30- लांस नायक 4603 मदन सिंह नेगी
31- लांस नायक 4619 खेम सिंह गुंसाई
निम्न लिखित को मिलेट्री कोर्ट मार्शल द्वारा नौकरी से निकाल दिया गया-
1- लांस नायक 551 पाती राम भण्डारी
2- लांस नायक 709 पान सिंह दानू
3- लांस नायक 779 राम सिंह दानू
4- लांस नायक 1071 हरक सिंह रावत
5- लांस नायक 1300 लक्ष्मण सिंह रावत
6- लांस नायक 1246 माधो सिंह गुसांई
7- 1477 चन्द्र सिंह रावत
8- 1478 जगत सिंह नेगी
9- 1673 शेर सिंह भण्डारी
10- 2196 मान सिंह कुंवर
11- 2281बचन सिह नेगी
निम्नलिखित को नौकरी से डिस्चार्ज किया गया-
1- सूबेदार त्रिलोक सिंह रावत
2- जय सिंह बिष्ट
3- हवलदार 105 गोरिया सिंह रावत
4- हवलदार गोविन्द सिंह बिष्ट
5- हवलदार प्रताप सिंह नेगी
6- नायक 234 राम शरण बडोला
7- हवलदार प्रताप सिंह नेगी
हमने ‘क्रियेटिव उत्तराखंड-म्यर पहाड़’ को ओर से वीर चन्द्रसिंह गढवाली पर पोस्टर प्रकाशित किया था।
संदर्भ: वीर चन्द्र सिंह गढवाली, लेखक- राहुल सांकृत्यायन, मेरा पहाड़।
फोटो साभार: सरफरोशी की तमन्ना