नीलिमा माथुर
पर्यटन का ज़िक्र होते ही उसे घेरे हुए कई नाम दिखने लगते हैं, यथा जिम्मेदार पर्यटन, टिकाऊ पर्यटन, इको पर्यटन आदि आदि। पर्यटन के चारों ओर अथाह साहित्य रचा गया है, परन्तु पर्यटन के मनोविज्ञान और गरीबी के साथ इसके सम्बन्ध पर बातचीत हुई हो, ऐसा बहुत कम हुआ है।
दीप (परिवर्तित नाम) सरकारी स्कूल में पढ़ने वाला एक बहुत ही होनहार विद्यार्थी था। हमेशा प्रथम रहने वाले दीप का रुझान कम्प्यूटर और सूचना तकनीक की पढ़ाई की ओर था। परन्तु आय के अत्यधिक सीमित साधनों के कारण उसकी माँ घुली जा रही थी। उसकी दो बच्चियों की शादी होनी थी और भी अनेक जिम्मेदारियाँ थीं। दीप की आई.टी. की पढ़ाई के लिए कई तरह के जतन किए गए।
एक दिन दीप और उसकी माँ को एक जानकारी मिली कि जो गरीबी रेखा के नीचे हैं और जिनके पास सफेद राशन कार्ड है, उनके लिए होटल मैनेजमैंट के कोर्स में एक सीट है। यह कोर्स छः माह का था। दीप ने यह कोर्स पूरा किया। लौटने पर दीप को एक पर्यटक आवास गृह में मैनेजर का काम मिला। दीप की माँ इसी गैस्ट हाउस के मालिक के घर पर खाना बनाया करती थी। एक पर्यटक नगरी में एक माँ के लिए यही एक रास्ता हो सकता था और साथ ही यह कमाई/आजीविका का साधन भी था। सूचना प्रौद्योगिकी में दीप का जो भविष्य हो सकता था, अब उसका कोई अर्थ नहीं था। उसके भविष्य के रास्ते बन्द हो चुके थे।
महेश (परिवर्तित नाम), 10वीं की बोर्ड परीक्षा में दो बार अनुत्तीर्ण हो चुका था। मुक्त विद्यालय में प्रवेश के प्रयत्न भी असफल रहे। महेश एक योग्य कलाकार था। उसकी अंगुलियों में कला की नैसर्गिक योग्यता थी। कला की शिक्षा के लिए किए गए प्रयास भी असफल रहे। कोई नहीं जानता कि उसके दिमाग में क्या चल रहा था, पर उसकी आधी-अधूरी शिक्षा उसके राह का रोड़ा थी।
बहुत ज्यादा समय नहीं गुजरा कि महेश ने अपने आपको उस जगह पाया, जहां पर्यटकों के लिए तम्बू लगाए जाते थे। मिलने वाली रकम ठीक ठाक थी। उसने एक साइकिल खरीद ली। पहाड़ों के लिए साइकिल एक बहुत अच्छा साधन नहीं होती, क्योंकि इसे चलाने में बहुत ज्यादा ताकत लगती है।
महेश की आकांक्षाएं उछाल मार रहीं थीं। उसने एक मोटर साईकिल खरीद डाली। अब उसे वेतन के अतिरिक्त और पैसे की आवश्यकता थी, ताकि वह लिया गया कर्ज चुका सके और इसके लिए पर्यटन में अत्यधिक संभावनाएं भी थीं।
घूमने आए पर्यटक महेश की आवश्यकता और कमाई के साधन थे और अब आंखों पर चश्मा, सर पर कैप, मोटरसाइकिल पर सवार महेश पर्यटकों को पर्यटन के लिए मशहूर स्थानों पर ले जाता है। इन महत्वपूर्ण पर्यटक स्थलों पर गांजे (ओपियम) का लेन-देन आम बात है। महेश के मित्र इस नशे की ओर आकर्षित अवश्य हैं, पर अभी तक महेश के गांजे की ओर झुकाव की कोई सूचना नहीं है। मगर सुना है कि आजकल वह घर बहुत देर से लौटता है। उसका क्या होगा ? भविष्य ही बताएगा।
विमलेश भी पर्यटन के इसी क्षेत्र में कार्यरत है। उसके लिए इन पर्यटक स्थलों पर शराब, गांजा एक आम बात है। उसको एक पर्यटक से 500 रु. प्राप्त होता है और अगर दो ग्राहक मिल जाएं तो बात ही क्या है। घर को देने के लिए उसके पास पर्याप्त पैसा होता है। सभी खर्चे पूरे करने के बाद उसके पास कुछ खिर्ची फिर भी बची रहती है।
विमलेश पी कर घर जाता है तो उसके माता पिता उस पर चिल्लाते हैं, पर उसका हाथ ऊपर ही रहता है। वह कहता है कि मैं तुम्हें पैसा देता हूं और मैं और अधिक कमाऊंगा। पर इससे घर में तनाव बढ़ता गया। स्थितियां बहुत अधिक खराब हो गईं और जब विमलेश के पिता को लगा कि अब स्थितियां नियंत्रण से बाहर हो गईं हैं तो उन्होंने एक दिन विमलेश को पीट दिया।
दूसरे दिन गले में फंदा डाले, पेड़ से लटकी विमलेश की लाश मिली।
ये इस पर्यटक शहर के कुछ लाजिमी उदाहरण हैं। ग्राहक और तुरन्त पैसा कमाने के महाजाल में ये लड़के एक के बाद एक फंसते चले जाते हैं। इन सब का मानसिक और मनोवैज्ञानिक आधार वो परिवार तैयार करते हैं जो पीढ़ियों से गरीबी के चंगुल में जकड़े हैं। यहां एक आँगनवाड़ी कर्मचारी ने एक बार कहा, ‘‘तुरन्त लाभ कमाना इन लोगों की समस्या है। ये भविष्य को बहुत दूर तक नहीं देखते। पता नहीं ये कैसे मनुष्य होते जा रहे हैं ?’’
यहां पर मनोवैज्ञानिक/मानसिक स्वास्थ्य की भूमिका सामने आती है। लड़के टेलिविजन में देखे गए हीरो की नकल करते हैं। उनकी अकड़, उनके चश्मे, बालों का स्टाइल……सब कुछ में इन्हीं की नकल होती है। पर अब इनका स्थान स्मार्टफोन लेने लगा है, जिसके लिए गरीब बी.पी.एल. परिवारों के बच्चे प्रति मोबाइल लगभग दस हजार रुपए खर्च कर रहे हैं।
जब ये लड़के किसी ग्राहक का इन्तजार कर रहे होते हैं, तब व्हाट्सएप और यूट्यूब के वीडियोज देखने और एक दूसरे को भेजने में संलग्न रहते हैं। ये बड़े-बड़े सपनों की दुनिया है और इसके ऊपर नजदीक के बड़े शहरो से आए ग्राहक अपनी चमचमाती कारों और विलासितापूर्ण जिन्दगी के प्रदर्शन में कोई हिचकिचाहट नहीं बरतते हैं।
इन सबके पीछे कई मिश्रित कारण हैं, जिन्हें समझना बहुत कठिन है। यह जिन्दगी को बहलाए-फुसलाए जाने की, महत्वाकांक्षाओं की एक बहुत तेज यात्रा है। दीप, महेश, विमलेश जैसे जवान लड़के इन सबका शिकार बनते हैं। भविष्य में इनके अकल्पनीय नतीजे निकलते हैं। इन दूरस्थ इलाकों में रहने वाले ये युवक महज 14 से 19 वर्ष के बीच होते हैं। ये इस आयु वर्ग की जनसंख्या का 14 प्रतिशत हैं, जो आजकल के इन नए पर्यटन केन्द्रों से जुड़े हुए हैं।
(मूलतः ‘सण्डे गार्जियन’ में प्रकाशित। अंग्रेजी से दिनेश उपाध्याय द्वारा अनूदित)