लेखक : प्रदीप पाण्डे
अब देखिये, कितनी उमंग और तरंग के साथ करणी सेना रणभूमि में कूदी और देखते-देखते तमाम लोग इसके साथ चलने लगे। क्या नेता, क्या मंत्री, क्या मुख्यमंत्री और क्या…….हाँ..हाँ प्रधानमंत्री तक। और फिर मीडिया भी कूद गया। वह कभी स्कूल की किताबों में आपने पढ़ा होगा, ‘‘चल पड़े जिधर दो डग डगमग, चल पड़े कोटि पग उसी ओर।’’ खैर, हम कितने ही मन्दबुद्धि सही, हमें भी यह समझ में आ गया कि अपनी आन-बान के लिये जान लगा देना सबसे बड़ी बात है, भले ही घर में खाने को न हो। अब इसी आन-बान के लिए तो महाराणा प्रताप ने घास की रोटी तक खाना स्वीकार किया।
जब से करणी सेना ने फिल्म ‘पद्मावती’ का ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ के अंदाज में विरोध किया, मैं इस संगठन का दूसरे नंबर का सबसे बड़ा फैन हो गया हूँ। पहले नंबर पर भक्त जनों का हक कायम रहे, मैं उसे छीनना नहीं चाहता। इस सेना ने हमें सिखलाया कि आन, बान और शान दरअसल कहते किसे हैं। ‘पद्मावती’ आन्दोलन के माध्यम से इस सेना ने हमें समझाया कि बेट्टा, शिक्षा, स्वास्थ्य, भूख और बेरोजगारी, औरतों और दबे कुचले लोगों पर अत्याचार जैसे छोटे-मोटे मुद्दों पर अपनी ताकत मत खर्च करो। ये घटिया और बेमतलब मुद्दे हैं। हमें ऐसे मामूली मुद्दों को दरकिनार करना चाहिए और कोशिश करनी चाहिये कि जनता का ध्यान ऐसी घटिया बातों की ओर न जाये। जब इज्जत का मामला हो, जैसे कि यह ‘पद्मावती’ फिल्म का मामला आया तो इसे रोकने में अपना तन, मन और जितना सम्भव हो धन भी लगा देना चाहिये। अब मैं करणी सेना का मुरीद हो गया हूँं और आगे से उसी के बताये रास्ते पर चलने की सोच रहा हूँं।
अब देखिये, कितनी उमंग और तरंग के साथ करणी सेना रणभूमि में कूदी और देखते-देखते तमाम लोग इसके साथ चलने लगे। क्या नेता, क्या मंत्री, क्या मुख्यमंत्री और क्या…….हाँ..हाँ प्रधानमंत्री तक। और फिर मीडिया भी कूद गया। वह कभी स्कूल की किताबों में आपने पढ़ा होगा, ‘‘चल पड़े जिधर दो डग डगमग, चल पड़े कोटि पग उसी ओर।’’ खैर, हम कितने ही मन्दबुद्धि सही, हमें भी यह समझ में आ गया कि अपनी आन-बान के लिये जान लगा देना सबसे बड़ी बात है, भले ही घर में खाने को न हो। अब इसी आन-बान के लिए तो महाराणा प्रताप ने घास की रोटी तक खाना स्वीकार किया।
अभी हरियाणा के एक नेता ने एलान किया कि जो भी इस फिल्म के निर्देशक का शीश और हीरोइन की नाक काट कर लाएगा वे उसे 10,00,00,000 (जी हाँ, आपने ठीक पढ़ा दस करोड़) रुपये देंगे। मेरा अंदाजा है और वह सही ही होगा कि ये नेता जी खुद ही बड़े वीर हैं। हमारे सारे ही नेता होते हैं। किसी भी दिन का अखबार देख लीजिये, वह उनकी शौर्य गाथाओं से भरा होगा। तो ये नेताजी खुद भी यह काम कर सकते थे। निर्देशक का सिर कलम कर सकते थे और हीरोइन की नाक। इस तरह वे अपने दस करोड़ रुपये भी बचा सकते थे। लेकिन नहीं। उनकी इच्छा न सिर्फ अन्य लोगों को मौका देने की थी, बल्कि आदर्शवाद की प्रेरणा देने की भी थी। देने को तो वे यह पुरस्कार नायाब खोज करने वाले किसी वैज्ञानिक, पूरी जिन्दगी किसी मकसद के लिये समर्पित कर देने वाले महान समाज सेवक, खेल जगत में शानदार उपलब्धियाँ हासिल करने वाले किसी खिलाड़ी या संस्कृति के क्षेत्र में किसी कलाकार या ऐसे ही किसी विशिष्ट व्यक्ति को भी दे सकते थे। उस दशा में यह कदाचित दुनिया के सबसे बड़े पुरस्कारों में से एक बन जाता। पर उससे हासिल क्या होता ? सवाल तो आन, बान और शान का है। हर ऐरे-गैर के सामने यों ही पैसा फेंक कर बर्बाद कर दिया जाता तो उस आन-बान का क्या होता ?
उल्लू की दुमों का क्या है ? वे तो कुछ न कुछ कहते रहते हैं। कुछ नामुराद कह रहे हैं कि जब फिल्म रिलीज ही नहीं हुई, किसी ने देखी ही नहीं तो विरोध किस बात का ? भई वाह, क्या कहने ? कल तुम कहोगे कि भगवान को जब देखा ही नहीं तो फिर उसकी पूजा क्यों ? पहले भगवान को देख कर आओ फिर पूजा करना ? या फिर कहोगे कि पाकिस्तान का विरोध क्यों ? पहले वीसा-पासपोर्ट लेकर पाकिस्तान हो आओ, फिर आ कर विरोध करना। अरे, यह कोई बात हुई ! अरे अणु-परमाणु किसी ने देखे हैं ? नहीं देखे। फिर हम क्यों मानते हैं कि ये होते हैं ? अरे, कल जब इतने लोगों को लगा कि जे.एन.यू. में राष्ट्रविरोधी नारे लगे तो सच ही होगा। जो कह रहे हैं कि नारों वाला वह वीडियो डाक्टर्ड था, उस में छेड़छाड़ की गई थी, उन्हें कहने दो। इतने बड़े उद्देश्य के सामने ऐसे बेहूदा लोग रुकावटें तो डालते ही हैं। आज इतने सारे लोगो को लग रहा है कि ‘पद्मावती’ में कुछ गलत है तो वह बिल्कुल ठीक है। ये इतिहास-वितिहास वाले क्या जानें ? उन्हें बकने दो। आस्था के सामने कला, संस्कृति, इतिहास की क्या हैसियत ?
खैर, करणी सेना ने जो ऐतिहासिक पहल की है, उसके बाद से अब हमारी आन, बान और शान में जबर्दस्त वृद्धि होगी। करणी सेना की शानदार सफलता से प्रेरणा लेकर अब जाति और सम्प्रदाय अपनी-अपनी सेनायें बनायेंगे। जल्दी ही हमारे देश में सिख सेना, शिया सेना, सुन्नी सेना, जाट सेना, यादव सेना, गुज्जर सेना, तमिल सेना, तेलुगू सेना, अहोम सेना, उड़िया सेना, गोरखा सेना, कुमाऊँनी सेना, गढ़़वाल सेना आदि-आदि सैकड़ों सेनायें होंगी, जो अपनी आन, बान और शान के लिये अपने प्राण न्यौछावर करने को तैयार होंगी। उनके अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र होंगे, जहाँ वे यह तय करेंगे कि कौन सी किताब छपनी चाहिये, कौन सा नाटक प्रदर्शित किया जाना चाहिये, कैसी फिल्म बननी चाहिये, पाठ्य पुस्तकों में क्या पढ़ाया जाना चाहिये और क्या नहीं पढ़ाया जाना चाहिये। उनके द्वारा क्लियरेंस दे दिये जाने के बाद ही ये काम किये जा सकेगे। वे दिन गये, जब प्रेमचन्द जैसे लेखक और सत्यजित रे जैसे फिल्मकार होते थे और अपनी मनमर्जी समाज पर थोपते थे। अब हमारी आन, बान और शान को नीचा दिखाने की कोई भी कोशिश बर्दाश्त नहीं की जायेगी।
तो आप भी मेरे साथ आइये और जोर से नारा लगाइये… करणी सेना की जै..!