संजीव भगत
यह प्रचलित मुहावरा है। देश के कोने-कोने से प्रवासी लोग वापस आ रहे हैं तो उन्होंने बाहर की दुनिया देखी है,जिन्दगी की तमाम तकलीफ़ों और सुख सुविधाओं को नजदीक से महसूस किया है। इन लोगों से कुछ उम्मीद तो की जानी चाहिए । इन्होने दुनियादारी में जो हासिल किया है उसका लाभ पहाड़ी गाँव को कैसे मिले ? इनकी सकारात्मक उर्जा का कैसे उपयोग किया जाय??
बातें बहुत हो रही हैं बातों का क्या ? लेकिन बात से बात निकलेगी और दूर तक जायेगी।
मेरा मानना है कि ये सारे लोग अपने जनप्रतिनिधियों से सवाल पूछने का साहस करें। सांसद , विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, ब्लाक प्रमुख, जिला पंचायत सदस्य,ग्राम प्रधान और क्षेत्र पंचायत सदस्य से रोज सवाल करें। विकास के सवाल,स्कूलों के अस्पतालों के सवाल। ये सवाल हमारे नेताओं को बेहतर काम करने के लिए प्रेरित करेंगे।
सवाल वो लोग नहीं पूछते जिनकी जिन्दगी आसानी से कट रही है या उन लोगों ने अपनी जिन्दगी को इस तरह से ढाल दिया है कि सवाल पूछना ही भूल गये हैं।
जब हाथ खाली हों पेट का लाॅकडाउन हो तो एक चिंगारी तो निकलनी ही चाहिए। जब बहुत सारे लोगों के हाथ सवालों के साथ उठेंगे तो समाधान भी जरूर निकलेगा।
कोरोना के बाद आज नहीं तो कल बहुत बजट आयेगा ही। मनरेगा का बजट बड़ चुका है। काम के साथ-साथ सारे लोग इस बजट के खर्च की निगरानी करें ज्यादा शिकायत की जगह इस बात का प्रयास करें कि सरकारी पैसे का 100% सही उपयोग हो सके। इस पैसे की बंदरबाट न हो।
अपने इलाके के अधिकारियों के सम्पर्क में रहे उनसे भी सवाल करें और बेहतर काम के लिए प्रयास करें।ऐसा काम जो जमीन पर दिखाई दे।
सरकार की मोटी मोटी फाइलों के विकास के कोई मायने नहीं। एक बात और सबसे जरूरी मनरेगा से खडन्जे, नाली, सीसी निर्माण की जगह खेती को उपजाऊ बनाने, फलदार पेड़ लगाने,पानी का संरक्षण की योजनाएं बनाने में पैसा खर्च हो। जिससे भविष्य में भी आमदनी हो।
इस पैसे के सही उपयोग से पहाड़ो की नयी तस्वीर भी बन सकती है।
अगर ये तस्वीर कुछ बेहतर हुई तो यहाँ से रोजगार के लिए भागने वाले लोगों की तादाद कुछ कम जरूर होगी।