शंकर दत्त बर्थवाल
मानव वन्य जीव संघर्ष अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य एक नजर में
कारण कुछ भी हों लेकिन मानव वन्य जीव संघर्ष पूरे विश्व मे बहुत तेजी से बड रहा है। इसकी घटनाएं पहले की तुलना में अर्थात जीवाश्म ईधन आधारित औद्योगिक युग की तुलना में 10 गुना अधिक हो गया है। मानवजनित दबाव, प्राकृतिक संसाधनों पर जरूरत से अधिक दबाव ने मानव-वन्यजीव संघर्ष को अधिक संवेदनशील बनाया है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार मानव-वन्यजीव संघर्ष की स्तिथि के बारे में जब पूछा गया तो, (64%) सरकारों ने माना कि यह संघर्ष उनके देश में एक “प्रमुख” और “गंभीर” चिंता का विषय है।
सबसे अधिक प्रभावनिम्न आय वाले देशों (86%) और अफ्रीका के उत्तरदाताओं (72%) ने किया। मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं देशों की प्रतिक्रियाएं गंभीर हैं, 73% देश इस बात से सहमत थे कि मानव-वन्यजीव संघर्ष बहुत तेजी से बढ़ रहा है और आने वाले समय में ये और गंभीर हो सकता है। निम्न-मध्यम 74%और उच्च-मध्यमआय 78%देशों ने बढ़ रहे संघर्ष का समर्थन किया। लैटिन अमेरिका में 73%; और कैरिबियन, एशिया और यूरोप के लगभग 67% देश के सरकारों ने मानव-वन्यजीव संघर्ष के मुख्य कारक, जैसे कि वन्य जीवों के आवास विखंडन या परिवर्तन, वन्यजीव और मानव आबादी में बदलाव, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाएँ के कारण संघर्ष में अधिकता का समर्थन किया।
डाउन टू अर्थ पत्रिका के एक लेख में जिक्र किया गया है की दुनिया के शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि 2050 तक दक्षिण अमेरिका में, स्तनपायी वन्य जीवों की संख्या में 33 फीसदी, उभयचर में 45 फीसदी, सरीसृप में 40 फीसदी और पक्षीयों में 37 फीसदी की गिरावट आने का अनुमान है। अफ्रीका में, स्तनपायी समृद्धि में 21 फीसदी और पक्षी समृद्धि में 26 फीसदी की गिरावट का अनुमान है।
इस गिरावट के कुछ नमूने हमने पिछले कुछ वर्षों में देखे हैं। जैसे , 2019 में श्रीलंका में जंगली हाथियों के कारण 121 लोग मारे गए तथा मानव-वन्यजीव संघर्ष के परिणामस्वरूप 405 हाथी मारे गए। तंजानिया में हर साल शेर के आक्रमण से लगभग 60 लोग मारे जाते हैं, और मनुष्यों लगभग 150 शेरों को मार देते हैं। एशिया और अफ्रीका में हर साल 80,000 से 138,000 लोग सांप के काटने से मारे जाते हैं। दुनिया का लगभग 7% से 15% तक फसलें प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से वन्य जीव संघर्ष के चपेट मे आ जाता है। ये मानव वन्य जीव संघर्ष को समझने के लिए छोटे से आकडे हैं। iucn और wwf का मानना है की स्तिथि इससे और अधिक खराब है और आने वाले समय में ये और बिगड़ जाएगी जो ना केवल जैव विविधता के दृश्य से खराब होगी बल्कि ये पूरे विश्व के कुल जीडीपी को प्रभावित करेगा।
मानव वन्य जीव संघर्ष भारत में स्थिति
पिछले 2 दशकों मे भारत मे स्तिथि बहुत गंभीर हो गई है। आकड़ों में हम बढ़ते बाघों की संख्या गिनाते हैं या बढ़ते हरे क्षेत्र की बात करते हैं। हमे वन प्रबंधन के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सराहा गया है। किन्तु जमीनी आकडे और स्थानीय समुदायों विशेष रूप से संरक्षित वनों के पास रहने वाले लोग के अनुभव कुछ और हैं। लोगों का कहना है कि अजीवीका और सुरक्षा की नजर से हम लोगों का जीना मुश्किल हो गया है। इसकी पुष्टि भारत सरकार के अकड़ों भी कर रहे हैं। इनके अनुसार हर साल बाघों के हमलों में 35 लोगों की मौत हो जाती है. वहीं, तेंदुओं के हमलों में 150 और जंगली सूअरों के हमलों में भी इतने ही लोग मारे जाते हैं.
छत्तीसगढ़ में पिछले 11 सालों में 595 लोगों की मौत हो चुकी है. केरल में मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण 5 सालों में 460 लोगों की मौत हो चुकी है. पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में मानव-बाघ संघर्ष के चलते हर साल 50 से 100 लोगों की मौत होती है. भारत में मानव-हाथी संघर्ष में हर साल 400 लोगों की मौत हो जाती है.
मानव वन्य जीव संघर्ष और उत्तराखंड
एक स्थानीय समाचार में छपे इस विवरण से हम उत्तराखंड में हो रहे मानव वन्य जीव संघर्ष को जान सकते हैं। वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड में साल 2024 के दौरान अब तक कुल 406 संघर्ष की घटनाएं हुई. इन घटनाओं में साल भर में 342 लोग घायल हुए. इसमें 64 लोगों की मौत हुई. जुलाई और अगस्त महीने में सबसे ज्यादा 11-11 लोगों ने जान गंवाई, जबकि वन्यजीव संघर्ष में सितंबर महीने के दौरान सबसे ज्यादा 70 लोग घायल हुए. मानव वन्यजीव संघर्ष के लिहाज से औसतन हर दिन 1 से ज्यादा मामले सामने आये हैं पर्वतीय जनपदों में सबसे ज्यादा गुलदार का आतंक दिखा है. मानव वन्यजीव संघर्ष के आंकड़े: उत्तराखंड में साल 2024 के दौरान प्रत्येक महीने संघर्ष के आंकड़े चिंताजनक स्थिति में दिखाई दिये. आंकड़ों के अनुसार जनवरी महीने में 6 लोगों की मौत हुई. 16 लोग घायल हुए. फरवरी महीने में भी 6 लोगों की मौत और 34 लोग हुए घायल. इसी तरह मार्च में एक व्यक्ति की मौत और 16 घायल हुए. अप्रैल में भी पांच लोगों ने जान गंवाई. 17 लोग घायल हुए. मई महीने में चार की मौत हुई, जबकि 30 घायल हुए. जून में 7 की मौत, 25 घायल, जुलाई महीने में 11 की मौत और 51 लोग घायल हुए. इसी तरह अगस्त महीने में 11 की मौत और 48 लोगों को वन्यजीवों ने घायल किया. सितंबर महीने में सात लोगों की मौत हुई. इन घटनाओं में 70 लोग घायल हुए. अक्टूबर महीने में पांच लोगों की मौत, 26 घायल हुए. नवंबर महीने में एक व्यक्ति की मौत हुई और 9 लोग घायल हुए.पिछले 24 सालों में उत्तराखंड में मरने वालों के आंकड़ों में दोगुना अंतर आया है. साल 2000 के दौरान औसतन सालाना 30 लोगों की मौत का आंकड़ा 2024 में करीब 60 तक जा पहुंचा है. मानव वन्य जीव संघर्ष से घायलों की तादाद चार गुना तक बढ़ी है. साल 2000 के दौरान 55 से 60 का औसतन आंकड़ा अब 2024 में 250 से 300 तक पहुंचा.
स्थानीय स्थिति: उत्तराखंड के सल्ट विकास खंड (जिला अल्मोड़ा )
पिछले कुछ वर्षों से खेती बहुत काम हो गई है। घर से जो बहुत नीचे खेत थे ओ तो हमने पहले ही छोड़ दिए थे। घर के नजदीक के खेतों मे जो खेती कर रहे ही उन्हे जानवर खत्म कर देते हैं। बड़ी मुश्किल से बड़ों मे कुछ सब्जी हो जाती है। बंदर सुंअर हिरण सब खेत खोद दे रहे हैं। अब तो बंदर हम लोगों को भी काट दे रहे हैं। खेती करना मुश्किल हो गया है।
— सुरेन्द्र सिंह, सल्ट
हमने अपने बच्चों को स्कूल से निकाल कर शहर पढ़ने भेज दिया है। गाँव से स्कूल 3 km दूर है। हमने कई बार बाघ रास्ते मे देखा है। हमारे नजदीक के गाँव मे एक महिला को रास्ते मे बाघ ने मार दिया तब से हम डरने लग गए।
— धना देवी, जमरिया, सल्ट
हमारे गाँव का एक लड़का घर में पूजा आयोजन के लिए घर आया था उसकी अभी अभी नौकरी लगी थी। रात को सोते वक्त उसे सांप ने कट लिया। नजदीकी अस्पताल में इलाज ना मिलने के कारण उसे नजदीकी शहर रामनगर ले जाया गया वहां उसकी मौत हो गई। अब हमें अपने बच्चों को गाँव भेजने मे डर लगता है।
— मदन सिंह, देवायल सल्ट
खेतों और रौला-गधेरों की ओर जाने वाले रास्तों मे झड़ियाँ हो गई हैं। गाँव के नजदीक जंगल जैसा लगता है। छोटे बड़े बहुत जानवर इन झाड़ियों मे छुपे रहते हैं और जब मौका मिले फसलों और लोगों पर झपटते हैं।
— प्रयाग दत्त, थला, वन सरपंच
स्थानीय जन संगठन रचनतामक महिला मंच के नेत्रत्व मे मानव-वन्यजीव संघर्ष में सरकार के सक्रिय निर्णय लेने के लिए महिलाओं ने आंदोलन किया और अपनी कुछ मांगों को लेकर सरकार से सहमति बनाई। लेकिन श्रमयोग में हमें लगता है ये अभी नाकाफ़ी है। इस मुद्दे पर गंभीर अध्ययन कर एक ठोस लोक नीति बनाने की जरूरत है। जो नीति समुदाय और वन्य जीवों के लिए सह-जीवन वातावरण को सहज बनाए।
— विजय ध्यानी, ग्राम प्रधान और टीम सदस्य श्रमयोग
भारत सरकार के मानव वन्य जीव संघर्ष के प्रबंध के लिए उपाय
आजादी के पहले से ही वन्य जीव प्रवंधन का कार्य चल रहा है। जैसे वन्यजीवों के आवासों को बचाने के लिए संरक्षित क्षेत्र बनाए गए हैं; वन्यजीवों की मौजूदगी के बारे में लोगों को बताने के लिए चेतावनी प्रणाली लगाई गई है; वन्यजीवों से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करने के लिए मुआवज़ा योजनाएं चलाई जा रही हैं; वन्यजीवों के शिकार पर पाबंदी लगाई गई है; वन्यजीवों के अवैध व्यापार और तस्करी को रोकने के लिए कदम उठाए गए हैं. वन्यजीवों की प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाने के लिए राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य बनाए गए हैं; जैव-क्षेत्रीय रिजर्व कार्यक्रम के तहत जैव मंडल रिज़र्व बनाए गए हैं; वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, वन संरक्षण अधिनियम, टाइगर परियोजना, राष्ट्रीय वन्य जीव कार्य योजना जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं.
विषय जानकारों का मानना की समय के साथ मानव और वन्य जीव दोनों का व्यवहार बदल रहा है। तकनीकी युग ने पारिस्थितीकि की आयामों को जाने अनजाने छेड़ा है और इसके परिणामों पर कोई ठोस अनुसंधान भी नहीं हुआ है या हो रहा है। ठोस अनुसंधान आकड़ों के अभाव में नीतियों में भी परिवर्तन 100 साल पुराने अनुभवों के आधार पर हो रहे हें।
विश्व स्तर पर मानव वन्य जीव संघर्ष के प्रबंध के लिए उपाय
हर देश का अपना मानव वन्य जीव संघर्ष प्रबंध का एक तंत्र है। इसमें है देश के सकल घरेलू उत्पाद का एक हिस्सा जाता है। इसके अतरिक्त डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंटरनेशनल,(WWF International ) आईयूसीएन,(IUCN) डब्ल्यूसीएस, (WCS) फॉना एंड फ्लोरा इंटरनेशनल, (FFI) और कंजर्वेशन इंटरनेशनल।(Conservation international)UNEP जैसे संगठन बड़े स्तर पर कार्य कर रहें है।
अगर हम दुनिया भर में मानव वन्य जीव प्रबंधन की बात करें तो दुनिया भर मे वैज्ञानिक रूप से नीति विकास में योगदान देने के लिए, IUCN संचालित एक विशेषज्ञ समूहHuman-Wildlife Conflict & Coexistence Specialist Group (HWCCSG) का गठन किया गया है।
यह संगठन वैज्ञानिक आधार पर पेपर और सूचना दस्तावेज तैयार कर नीति और तकनीकी सलाह प्रदान करके अंतर्राष्ट्रीय नीति-निर्माण को सहयोग करता है। वैश्विक जैव विविधता ढांचे के देख रेख हेतु समन्वय का कार्य करता है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन के लिए दुनिया भर की सरकारों के मुख्य निर्णय केंद्रों के साथ संपर्क कर राष्ट्रीय नीति विकास हेतु सुविधा प्रदान करता है।
हर साल 4 सितंबर को संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रीय वन्यजीव दिवस मनाया जाता है। यह अमेरिका भर में लुप्तप्राय प्रजातियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और वन्यजीवों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को प्रोत्साहित करने और उसपर विचार करने का एक मौका है।
इतना प्रबंधन तंत्र के बाद भी हर वर्ष मानव वन्य जीव संघर्ष बढ़ता जा रहा है। कारण और विकल्प क्या है।
हमारी जानकारी में क्या विकल्प है।
विषय विशेषज्ञों का मानना है कि मानव-वन्यजीव संघर्ष का मुख्य कारण वन्यजीवों के लिए उपलब्ध आवास में कमी है। WWF का अनुमान है कि पृथ्वी का केवल 26% हिस्सा ही मनुष्यों से रहित है, जिसमें वन्य जीव अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते हैं। मानव लगातार भूमि उपयोग पैटर्न में बदलाव कर शहरी विस्तार, औद्योगिक उद्देश्यों और कृषि के लिए भूमि घेर रहे हैं । जैसे-जैसे हमारी दुनिया मानव सवकेंद्रित होकर भूमि उपयोग बदलते रहेगा लोगों और वन्यजीवों के बीच मुठभेड़ें अधिक से अधिक आम होती जाएंगी, जो संघर्ष के उच्च स्तर तक पहुंच सकता है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष को पूरी तरह से खत्म करना संभव नहीं है, क्योंकि ये हमारे पािरस्थितिकी तंत्र का एक मुख्य कारक है जिससे खाद्य जाल संरक्षित रहता है। किन्तु मानव अपने अधिक सुविधाओं के लालच मे संसाधनों का अधिक दोहन कर पारस्थितिकी तंत्र का संतुलन खराब कर देता है। अब मानव वन्य जीव के लिए सुनियोजित, एकीकृत दृष्टिकोण से लोगों और जानवरों के बीच सह-अस्तित्व पारस्थितिकी प्रबंधन को बढ़ाना होगा। ऐसे दृष्टिकोणों के लिए सहभागी अनुसंधान और निगरानी पर काम करने की आवश्यकता होती है, जो मजबूत लोक नीति और स्थानीय समुदायों की भागीदारी द्वारा पूर्ण हो सकता है।
सह-अस्तित्व पारिस्थितिकी प्रबंधन को हम एक लोक कथा के द्वारा समझ सकते हैं।
पोते ने दादा जी से आग्रह किया की उसे खेलने के लिए पेड़ से लकड़ी चाहिए। पोते के कहने पर दादा जी पेड़ से लकड़ी तोड़ने लगे , उनके पास कोई हथियार न था, बस हाथ से लगे थे तोड़ने। ये देख पोते को दादा जी को सहयोग करने की सूझी और वो घर से कुल्हाड़ी ले आया और दादा जी को कुल्हाड़ी से पेड़ काटने को बोला। किन्तु दादा जी ने कुल्हाड़ी से पेड़ काटने को मना कर दिया। पोते ने प्रश्न किया आप कुल्हाड़ी क्यों नहीं प्रयोग करते ? दादा जी ने कहा अभी ये पेड़ और में बराबरी का संघर्ष कर रहे हें। लेकिन मेरे हाथ मे कुल्हाड़ी आते ही ये कमजोर और में ताकतवर हो जाऊंगा फिर में संघर्ष नहीं इसके ऊपर अत्याचार करूंगा। एक और बात अगर मेरे दादा जी ने इन पेड़ों पर अत्याचार किया होता तो तुम्हारे खेलने के लिए ये पेड़ यहां नहीं होता। दादा जी सह अस्तित्व पोते को समझा रहे थे।
इसका एक उदाहरण दक्षिणी अफ्रीका में कावांगो ज़ाम्बेजी ट्रांसफ़्रंटियर संरक्षण क्षेत्र में देखा जा सकता है, जहाँ मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन के लिए एक एकीकृत सह-अस्तित्व पारस्थितिकी प्रबंधन के कारण पशुधन हत्याओं में 95% की कमी आई है, जिसके परिणामस्वरूप 2016 में शेरों की एक भी हत्या नहीं हुईं जबकि उससे पहले वर्षों मे 2012 और 2013 में कम से कम 17 शेर मारे जाते थे। इस पहल से पहले से खतरे में पड़ी शेरों की आबादी को फिर से बढ़ने में मदद मिली।
हाथियों को कभी-कभी इसलिए मार दिया जाता है क्योंकि वे कभी-कभी फसलें खाते हैं। केन्या में मासाई मारा नेशनल पार्क के आस-पास के इलाकों में, हमने हाथियों की गतिविधियों पर नज़र रखकर हाथियों के साथ संघर्ष को कम करने में मदद की है ताकि स्थानीय लोगों को उन क्षेत्रों के बारे में जानकारी मिल सके जहाँ हाथी सबसे ज़्यादा जाते हैं। झुंड में कुछ हाथियों को ट्रैकिंग कॉलर पहनाकर, हम मारा क्षेत्र में इन विशाल स्तनधारियों की संख्या और गतिशीलता के रुझानों के बारे में जान रहे हैं। इससे बेहतर प्रबंधन और कम हानिकारक घटनाएँ हो रही हैं
सह-अस्तित्व पारस्थितिकी प्रबंधन वन –लोक प्रबंधन का व्यापक दृश्यकोण है। इस दृश्यकोण में हम मानव और वन्य जीव को अलग करके नहीं अपने उत्तरजीविता का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं। इस जल, जंगल, जमीन, जन, जैव विविधता एक दूसरे के उत्तरजीविता सहयोगी है; इस संकल्प के साथ नीति बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। उत्तराखंड का वन पंचायत, नार्वे का लोक आधारित प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, यूरोप का रूम फॉर दी रिवर (राइन नदी को साफ करने की योजना) भी इसका एक उदाहरण हैं।
इस तरह से मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने से न केवल जैव विविधता और प्रभावित समुदायों के लिए अवसर और लाभ पैदा हो सकते हैं, बल्कि समाज, सतत विकास, उत्पादन और समग्र वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी लाभ हो सकता है।
फोटो इंटरनेट से साभार