इस्लाम हुसैन
मैं भारत में महात्मा गांधी का पहला आश्रम साबरमती आश्रम बोल रहा हूं । गुजरात के अहमदाबाद में, साबरमती नदी के किनारे 1917 में महात्मा गांधी ने मुझे तब बनाया गया जब वे दक्षिण अफ्रीका से लौटकर भारत में अपना ठिकाना खोज रहे थे। साबरमती नदी के किनारे, ऐसी जगह खोजी उन्होंने की जिसकी एक तरफ अहमदाबाद की जेल है और दूसरी तरफ श्मशान घाट । महात्माजी ने मुझे समझाया था : गुलाम देश में एक सत्याग्रही का दो ही ठिकाना होना चाहिए सत्याग्रह करते हुए जेल जाना ; या लड़ते हुए शहादत पाना।
इतना ही नहीं, महात्माजी ने मुझे जन्म के साथ ही कुछ दूसरी बातें भी सिखाई – पढ़ाई थीं। उन्होंने जो सबसे बड़ी बात मुझे सिखाई थी वह मैं आज भी भूला नहीं हूं, और वह बात थी कि सादगी से रहना, सच बोलना और सत्ता से नहीं डरना हर सच्चे इंसान का धर्म है। 1930 में, जब गांधीजी मुझे छोड़कर हमेशा के लिए दांडी यात्रा पर निकल गए तब भी वह इन्हीं तीन मूल्यों को की रक्षा के लिए निकले थे, जाते-जाते मुझसे कह गए कि इन तीन मूल्यों को न भूलना, ना देश को भूलने देना ।
मैं आज आप से बोल रहा हूं तो इसलिए कि महात्माजी के सिखलाए इन तीनों मूल्यों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं ! मुझे ऐसा लग रहा है जैसे देश की आत्मा कुचली जा रही है। महात्माजी का नाम लेते हुए, देश को महात्माजी से अलग व उल्टी दिशा में ले जाया जा रहा है । मैं देश की ऐसी बदहाली का मूक दर्शक बना नहीं रह सकता। इसीलिए आपसे कहने आया हूं कि भाइयो मेरे साथ आंखें खोल कर देखो, और मेरी आवाज में आवाज मिलाकर बोलो।
सरकार मुझे नया, बड़ा और आधुनिक बनाना चाहती है। वह मुझे नए कपड़े पहनाना चाहती है। वह मेरी साज-संवार पर 1200 करोड रुपये खर्च करना चाहती है ताकि संसार की आलीशान इमारतों में मेरी भी गिनती हो; मुझे देखने और मौज मजा कर अपनी थकान उतारने लाखों लोग यहां आएं, लाखों आएंगे तो करोड़ों की कमाई होगी। महात्माजी ने मुझे सिखलाया था कि देश के करोड़ों- करोड़ किसान-मजदूर; छोटा धंधा-पानी करने वाले; छोटी आमदनी से अपना घर परिवार चलाने वाले; नौकरी-पेशा करने वाले तभी इज्जत से जी सकते हैं और ईमान की रोटी खा सकते हैं जब जीवन में सादगी होगी, जब सच बोलने का वातावरण हो और जब लोक सत्ता की सनक का प्रतिबाद करते हों, इसीलिए तो महात्माजी ने मुझे ऐसी सादगी से, ऐसी शांत जगह पर बनाया और यहीं से देश की आजादी की पुकार लगाई, देश ने मेरी सादगी में शान देखी, मेरी शांति में शक्ति का अनुभव किया और मेरी पुकार सुनकर आजादी की वेदी पर अपना बलिदान किया। मैं गूंगा-बेजान आश्रम नहीं, आजादी का बलिदानी सिपाही बन गया। महात्माजी ने मुझे सिखाया : आजादी का मतलब है कि इस देश का आम आदमी जैसे रहता है वैसे रहना ; एक अच्छा व सच्चा आदमी जैसा होना चाहिए, वैसा वनना, वे खुद ऐसी ही थे, और हमें ऐसा ही बनना चाहते थे।
अब वह यह सरकार मुझ पर फैशन लाद रही है। मैं इसलिए आपसे बोलने आया हूं कि मुझे बोलने से रोका जा रहा है। मैं बोलना चाहता हूं सादगी की बोली, मैं बताना चाहता हूं सच्चाई और समानता का बापूजी का रास्ता, लेकिन मेरी आवाज को 1200 करोड रुपयों की चमक-दमक में दबाया जा रहा है । मैं चाहता हूं कि मेरा दरवाजा उसी तरह खुला रहे जिस तरह महात्माजी ने उसे खोल कर रखा था । देश के हर कोने से, हर तरह के लोग बे-रोक-टोक यहां आएं, यहां की शांति, सादगी, पवित्रता व आदर्श जीवन-शैली की पहचान लेकर जाएं, मैं जानता हूं कि हम सब महात्मा गांधीजी भले ना बन सकें लेकिन मैं चाहता हूं कि सारे हिंदुस्तानी व सारी दुनिया के लोग मेरे पास जब भी आएं तब यह तो जान सकें कि महात्माजी कैसे थे, कैसे रहते थे और कैसे रहने से हिंदुस्तान का व संसार का भला हो सकता है, मुझे बापूजी जैसा बनाया वैसा बनने से ही देश जहरीली हवा व पानी से, गैर-बराबरी के हिंसक समाज से, युद्धों से लहू-लुहान व आतंकवाद से क्षत-विक्षत संसार से मुक्त हो सकता है ।
मैं आपसे कहने आया हूं कि हमें आपस में लड़ने वाला, एक-दूसरे से डराने वाला, भय, लालच व क्रूरता को हथियार बना कर हमें कुचलने वाला वह विकास दरअसल विकास नहीं, विनाश है। सरकार मेरी यह आवाज बंद करना चाहती है और इसीलिए वह मुझे वैभव के पर्दे में छिपा देना चाहती है , वह चाहती है कि महात्माजी जैसे थे, उस रूप में उन्हें ना देख सकें, न पहचान सकें, वह हमारे सानने अपना गांधी पेश करना चाहती है जो दूसरा दूसरा कुछ भी हो, हमारा गांधी नहीं हो सकता है। मैं आपसे कहने आया हूं कि हमने महात्मा जी केसरी की हत्या की, उनके विचारों की हत्या की और अब उनकी स्मृतियों की भी हत्या करना चाहते हैं। मैं इसके खिलाफ आवाज लगाने आपके पास आया हूं, मैं चाहता हूं कि आप सब जहां है वहीं से बोलें कि महात्माजी की स्मृतियों से कोई भी खेले, यह हमें मंजूर नहीं है। हमारा गांधी जैसा था वैसा ही हमारे पास रहने दो ! गांधी रहेंगे तो आशा रहेगी कि हम गिर कर भी उठेंगे, मर कर भी जी सकेंगे, अपना देश नया बना सकेंगे ।
आइए हम एक आवाज में कहें गांधी विचार के जितना पास आ सकते हो, आओ लेकिन गांधीजी के स्मृति-स्थानों से दूर ही रहो। आप सब मेरी आवाज में आवाज मिलाकर केंद्र सरकार से अनुरोध कीजिए कि मैं जैसा हूं, मुझे वैसा ही रहने दें, यहां जागरण-यात्रा मुझे भी, आपको भी और सत्ता को भी जगा रही है, सत्य सुनना व सत्य पर चलना हम सबकी जरूरत है अन्यथा सत्याग्रह का महात्माजी का रास्ता खुला ही है ।
मेरा साथ गांधी स्मारक निधि, गांधी शांति प्रतिष्ठान, सर्व सेवा संघ, सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान, सर्वोदय समाज, राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय, नई तालिम समिति, राष्ट्रीय युवा संगठन, महाराष्ट्र सर्वोदय मंडल, गुजरात के गांधीजन सभी हैं। 17 अक्टूबर से सेवाग्राम आश्रम में सर्वधर्म प्रार्थना एवं संकल्प के साथ मेरी यह यात्रा शुरू हुई है, मैं आज आपके पास पहुंचा हूं, यहां से अकोला, फिर नंदूरा, फिर एदलाबाद, फिर फैजपुर, खिरोदा, अमलनेर, धुले, नंदुरबार, बारडोली, सूरत होते हुए अहमदाबाद पहुंचूंगा। 24 अक्टूबर को अहमदाबाद की परिक्रमा करते हुए मैं अपने स्थान साबरमती पहुंच जाऊंगा। वहां आप सबके साथ सर्वधर्म प्रार्थना होगी, सरकार को सद् बुद्धि मिले, ऐसी कामना के साथ गोष्ठी, जन संवाद एवं जन संपर्क का कार्यक्रम होगा, जब मैं यात्रा पर निकला हूँ, तब आप क्या करेंगे ? यात्रा में मेरी आर्थिक मदद कीजिए, यात्रा का सन्देश, मेरी यह बात अधिकाधिक लीगों तक पहुंचाइए और आपमें से जो भी आ सकें, 24 अक्टूबर को अहमदाबाद आइए, मुझे आप सबके साथ से शक्ति मिलेगी।