रमदा
आप खुद से भी जानते हैं और मैंने भी आपको विस्तार से बताया था कि किस तरह “जी-20” के उप-समूहों में से एक की बैठक के लिए रामनगर की परिधि के एक छोटे से हिस्से पर सफाई-सजावट और नागरिक सुविधाओं का एक “आभासीय-विम्ब” तैयार किया गया था ताकि विदेशी प्रतिनिधियों के सामने एक शानदार छवि प्रस्तुत हो. बैठक तो निबट गयी किन्तु जाने-अनजाने नगर को एक सौगात भी मिली.
लखनपुर चौराहे से लेकर कोसी-बराज तक के एक तकरीबन 150 मीटर के हिस्से पर सुबह 05 से 07 और शाम 06 से 08 की अवधि के लिए तत्कालीन जिलाधिकारी श्री धिराज गर्ब्याल द्वारा मोटर-यातायात प्रतिबंधित कर दिया गया ताकि सुबह-शाम भ्रमण करने वाले लोगों को सुविधा हो. इस हिस्से में, भले ही थोड़ी सी दूरी तक ही सही, यातायात का बंद हो जाना विशेषतः बच्चों और बुजुर्गों के लिए बड़ी राहत का सबब बना और स्केटिंग/साइकिलिंग/बोर्ड-स्केटिंग करते किशोर, बच्चे और बीच सड़क पर बिंदास चलते लोगों और बुजुर्गों को देखना बहुत अच्छा लगता है खास तौर पर इसलिए कि इस तरह की व्यवस्था भारतीय कस्बों में प्रायः नहीं होती और न ही यह कहीं सरकार-बहादुर और उसके कारकुनों की सोच में होता है. लोगों ने जिलाधिकारी और स्थानीय जन-प्रतिनिधियों की प्रशंसा में कोई कसर भी नहीं की. इतना ज़रूर था कि यदि इस प्रतिबन्ध को बैराज के दूसरे सिरे और कोसी रोड की ओर जाने के लिए बने छोटे पुल तक बढ़ाया गया होता तो प्रतिबंधित सड़क की लम्बाई तकरीबन 250 मीटर की हो जाती और उसी पर तीन चार चक्कर में शांति से एक किमीo भ्रमण की सुविधा हो जाती. इस तरह के सुझाव पर जन-प्रतिनिधियों का कहना था कि उन पर पहले ही निजी स्वार्थों का बहुत दबाव है कि इतना भी क्यों बंद किया गया है ?
अब जो भी रहा हो यह प्रतिबन्ध चलता रहा और आम-आदमी को सुविधा भी हुई, कुछ दिन पहले चर्चा थी कि सप्ताह में शुक्र-शनि और रविवार तीन दिन यह प्रतिबन्ध नहीं रहेगा. सद्बुद्धि की कृपा से ऐसा हुआ नहीं और लोगों ने राहत की सांस ली किन्तु कल रविवार 25 जून को इस प्रतिबंधित क्षेत्र में धड़ल्ले से वाहन चले और बताया गया कि अब रविवार को यह प्रतिबन्ध नहीं रहेगा. हो सकता है कि प्रशासन के पास, इस प्रतिबन्ध को रविवार के दिन हटा देने का कोई ठोस कारण हो किन्तु चिंता इस बात की है कि एक दिन से शुरू होकर धीरे-धीरे यह सिलसिला सातों दिनों तक न बढ़े क्योंकि “वोट-जीवी” निजी स्वार्थों के कब्ज़े में बड़ी आसानी से आ जाते हैं ऊपर से वह जिलाधिकारी भी स्थानान्तरित हो गए हैं जिनकी कलम से यह सुविधा आम-आदमी को मिली थी.
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इसी बराज़ के साथ लगे सिंचाई विभाग की “बाढ़ नियंत्रण कक्ष” कही जाने वाली शानदार इमारत के साथ विकसित किये गए दो पार्कों का भी एक प्रकरण आपकी नज़र करने का मन है. एक पार्क में बच्चों के लिए कुछ झूले जैसे उपकरण लगाये गए और एक “ओपन-जिम” भी बनाया गया. रामनगर जैसे कस्बे, जहां पार्क जैसी सुविधाओं का नितांत अभाव है, को सिंचाई विभाग ने एक ऐसी शानदार सौगात दी जो लोकप्रिय हुई. बच्चों और महिलाओं की ज़बरदस्त भीड़ से ये हर शाम भरे रहते थे.
कोविड के दौर में इन्हें बंद होना ही था और बंद हुए भी.
इन दोनों पार्कों का जी-20 की बैठक की तैयारियों के दौरान, एक तरह से, पुनर्निर्माण हुआ है. नई कुर्सियां लगाईं गई, फेंसिंग को शानदार स्वरुप दिया गया, “ओपन-जिम” के उपकरण सुधारे गए और “गजीबो” भी एक तरह से नए कर दिए गए. यह सब मार्च के अंतिम सप्ताह तक हो चुका था किन्तु अज्ञात कारणों से इनके गेटों पर ताले हैं और हर शाम इनके भीतर जाने की इच्छा रखने वाले बच्चों और लोगों की आँखें इन तालों को देख कर उदास होती हैं. सवाल इतना सा है कि अगर लोगों को इनसे वंचित ही रखना था तो इन्हें बनाये/ सुधारे जाने का क्या मंतव्य रहा होगा ?