आज प्रो. गोविन्द लाल साह के देहान्त को एक माह पूरा हो गया।
प्रो. सुरेश चन्द्र सती
दिनाँक 6 जुलाई 2020 सायं छः बजे अचानक मेरी नजर डां जी.एल. साह के घर से आए व्हाटसेप संदेश पर पडती हैं। जिसमें लिखा था कि-‘‘हम सब बी.डी. पाण्डे अस्पताल में हैं। ब्लड प्रेशर बहुत हाई हो गया है। बोल नहीं पर रहें है। परन्तु शरीर में हरकत है। यह पढ़ने के बाद मैं तुरन्त बी.डी पाण्डे अस्पताल की ओर निकल पड़ा। जहाँ एक प्राइवेट वार्ड में डा. साह जी का उपचार चल रहा था। उस समय वहाँ पर उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सरिता साह थी। वहाँ अपने मित्र की स्थिति को देखकर मैं स्तब्ध रह गया। मैं काफी देर वहाँ बैठा रहा और मुझे बताया गया कि उन्हें प्राॅस्टेट कैंसर की शिकायत है, जिसका इलाज चल रहा है। इसी में उनके कमर तथा शरीर में दर्द की शिकायत बढ़ने लगी थी। उनका सोचना था कि शायद यह स्कूटर से गिरने की वजह से है, जिसके लिए उन्होंने हल्द्वानी में डाॅक्टर को भी दिखाया था, परन्तु 5 जुलाई की रात जब उनकी तबियत ज्यादा खराब हो गई और रक्तचाप भी काफी बढ़ गया तब उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। वह खाना भी नहीं खा पा रहे थे। अंततः नली द्वारा भोजन देने की सलाह दी गई। वह कुछ समय तक अचेत अवस्था में रहे। इन सब बातों को सुनकर बुरा जो जरुर लग रहा था, परन्तु इस आशा के साथ कि शायद धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। मैं उस रात उनकी पत्नी से विदा लेकर चला आया कि कल फिर आऊँगा। परन्तु नैनीताल की बारिश व व्यस्तता के कारण मैंने मंगलवार को फोन किया तो फोन लगा नहीं। बुधवार दिनाँक 8 जुलाई 2020 को चेतन ने सूचित किया कि ‘‘पापा नहीं रहे। आज सुबह ही उनका देहांत हो गया”। यह सुनकर मैं सन्न रह गया। कुछ देर तक तो कुछ समझ ही नहीं आया।
श्री गोविन्द लाल साह जी मूलतः बागेश्वर के निवासी थे मेरी मुलाकात 80 के दशक में हुई थी जब वे तल्लीताल तारालौज कैन्ट में निवासी करते थे। मैं अपना शोधकार्य कर रहा था और वे डी. एस.बी. महाविद्यालय के भूगोल विभाग में सन् 1976 से मानचित्रकार के रुप में कार्यरत थे। साह जी बड़े ही मृदुभाषी व आकर्षण व्याक्तित्व के धनी थे। जो एक बार उनके सम्पर्क में आता था तो उनका मित्र बन जाता था। मैं भी उनसे अछूता नहीं रहा। उन्होंने मानचित्रकार रहते हुए प्रो. धनसिंह जलाल के निर्देशन में अपना शोधकार्य पूरा किया। इसी बीच सभी मानचित्रकारों को यू.जी.सी. द्वारा प्रवक्ता की मान्यता दे दी गई। इस प्रकार वे प्रवक्ता से उपाचार्य और फिर आचार्य के पद तक पहुँचे। आचार्य बनने के बाद डा. साह जी ने विश्व विद्यायल में अनेक जिम्मेदारीयों का निर्वहन किया, जिसमें विश्वविद्यालय के परीक्षा नियन्त्रक कार्य भी शामिल है। उन्होंने विभिन्न समीतियों जैसे-सहायक प्रौक्टर, सहायक छात्र कल्याण अधिष्ठाता के रुप में भी कार्य किया।
सन् 2000 में प्रोफेसर बनने के उपरान्त उन्होंने उत्तराखण्ड सरकार के अनुदान से विभाग के लिए जी.आई. सी. सुदुर संवेदन भैगोलिक प्रणाली की प्रयोगशाला स्थापित करने का कार्य किया। जिससे भूगोल विभाग के विद्यार्थी लाभान्वित हो रहे हैं। उनका नैनीताल के पर्यावरण और नैनी झाील से अत्यन्त लगाव था। वे जब भी मेरे साथ घूमते थे इस विषय में चर्चा किया करते थे। नैनीताल की भौगोलिक स्थिति एवं विभिन्न घटनाओं को उन्हें विस्तृत ज्ञान था। इसी आधार पर उन्होंने नैनीताल शहर के ऊपर ‘नैनीताल-समय का फेलिडोस्कोप’ नामक पुस्तक लिखी जिसमें नैनीताल से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारियाँ समावित हैं। इस पुस्तक को लिखते समय वह समय-समय पर मुझे अवगत करते रहते थे और जानकारियों का आदान-प्रदान करते रहते थे।
डा. साह जी ‘नैनीताल समाचार’ में एक स्थाई काॅलम-‘हमारा भूगोल’ लिखते थे। जिसमें उत्तराखण्ड के ग्रामीण स्तर तक की भौगोलिक व सामाजिक स्थिति का विवरण होता था। जो मेरा प्रिय काॅलम हुआ करता था। उनके लेखन कार्य से प्रभावित होकर नगर की और ईकाइयों ने भी उनसे नैनीताल एवं नैनीताल से सम्बन्धित कुछ और पुस्तकों का लेखन कार्य करवाया। जिसका उन्होंने बड़ी सफलतापूर्वक संपादन किया। डा. साह ने पर्यावरण व भूगोल से जुड़े होने के कारण एन.जी.ओ. ‘‘चिया” (सैन्ट्रल हिमालयन इनवायरमैंट एयोसिएशन) में भी बढ़—चढ़ कर हिस्सा लिया और अपना सक्रिय योगदान दिया। यह उनकी योेग्यता ही थी, जिसने नगर के साह-चौधरी समाज को संगठित कर एक अच्छी दिशा प्रदान की।
डा. साह जी के एक पुत्री व एक पुत्र हैं। पुत्री ज्योति साह भारतीय प्रशासनिक सेवा से आयकर आयुक्त के पद पर गुजरात में तथा पुत्र चेतन, होटल मैनजमैंट की डिग्री के साथ विदेश में कार्यरत हैं। डा. साह की तरह उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सरिता साह भी अत्यन्त सरल एवं मृदुभाषी हैं जो माध्यमिक शिक्षा परिषद से सेवानिवृत हैं। जबकि डा. साह वर्ष 2012-13 में सेवानिवृत्त होकर नगर के कई सामाजिक कार्यो में सक्रिय योगदान देते आ रहे थे। हालांकि डा. साह जी का टनकपुर से बागेश्वर तक रेलवे लाइन बनाने की परियोजना केन्द्र सरकार के विचारधीन है। साथ ही हिलसाइड सेफ्टी कमेटी के सदस्य के तौर पर नगर की समस्याओं के समाधान हेतु उनके सुझावों की अहम भूमिका रहती थी।
8 जुलाई 2020 का लगभग 68 वर्ष की उम्र में कुमाऊँ के कर्मठ व्यक्ति डा. साह ने सुबह 5.30 बजे इस दुनिया से सदा के लिए अलविदा कह दिया। यह भी एक अजब संयोग था कि उनक निधन से पूरा शहर ही अश्रुपूरित नहीं हुआ बल्कि आकाश में भी तेज बारिश थी। मानो देवता भी अपने आँसू नहीं सभाँल पाए। साह जी का मरना एक अपूर्णनीय क्षति है। परन्तु उनके किए हुए कार्यों और उनको हमेशा याद किया जाएगा। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे। यही मरीे कामना है।
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