चन्दन घुघत्याल
उत्तराखंड के रण बाँकुरे
जन आंदोलनकारी थे,
निराश्रय को आसरा देते ,
जन की आवाज बनते थे ,
तानाशाही फैसलों का वह ,
तार्किक प्रतिवाद करते थे ,
शमशेर एक विचार थे ,
उत्तराखंड के आधार स्तम्भ थे।।
जीवन समर्पित करा जिसने ।
धूप छांव ना देखा,
पदयात्रा पर निकल निकल कर
अलग राज्य का दावा ठोका।।
आराम हराम है कहने वाले ,
पहाड़ी को दावेदार बताने वाले ,
जल जंगल जमीन बचाने वाले;
नसों में क्रांति भरने वाले ,
गरम खून को दिशा देने वाले
जन नायक श्री बिष्ट ही तो थे।।
गांव गांव घूम घूम कर
अस्कोट से आराकोट पदयात्रा में
साथियों में उत्साह भरने वाले ,
जनगीतों में आंखर देने वाले,
चने गुड़ की जुगाली करने वाले,
आत्म संतुष्ट, धीर गंभीर,
चिंतनशील श्री बिष्ट थे।।
अपना पानी अपना जंगल
अपनों का तिरस्कार क्यों ?
यह यक्ष प्रश्न उठाने वाले
उत्तराखंड के शेर थे।।
राज्य की परिकल्पना को
मजबूत पंख लगाने वाले,
पहाड़ी राज्य की राजधानी
पहाड़ में हो , कहने वाले ,
राज्य जननायक वही थे।
समाज हेतु जीने वाले छात्र नेता बने ,
कौड़ियों के भाव पहाड़ी न बिके,
हरे भरे पेड़ न कटे ,
नदियों के श्रोत न सुखें
बाप न शराबी बने –
बच्चे की स्याही न सूखे
उत्तरखंडियत सर्वत्र पनपे,
हुँकार भरने वाले श्री बिष्ट थे।।
आंदोलनकारी कठिन डगर के राही,
शोषितों के सदा रहे हमराही ,
धारा बिपरीत गोता लगाते सही ,
योद्धा सम लड़ लड़ पहचान बनायी।
आंचलिकता से अलग, एकता की अलख जगाई।
श्री बिष्ट ने उत्तराखंडियत पनपायी।।
गांधीवाद के दम पर हर मांग मनवायी
शोषकों को नाक की धूल चटवायी।।
लूटने वालों को छठी का दूध याद दिलाई।।
श्री शमशेर ने उत्कृष्टता दिखाई ,
हम सबों के दिलों में एक लौ जलाई।।