दिनेश मानसेरा
मैं जमरानी बांध विरोधी नही किन्तु कई सवाल मेरे भीतर है कि जमरानी बांध को केंद्र ने मंजूरी तो देदी पर इसके बनने के बाद भावर में पानी की समस्या भी सुलझ जाएगी किन्तु इस के साथ ही यहां गौला नदी से निकलने वाले रेता बजरी,डम्पर,स्टोन क्रेशर मजदूरी कारोबार का क्या होगा?उत्तराखंड के नैनीताल जिले में प्रस्तावित जमरानी बांध के निर्माण के बाद जो बेकारी यहां लाखो लोगो के साथ होने वाली है इसका अनुमान अभी किसी को नही है।
तीन महीने के लिए गौला नदी में खनन बन्द होने पर पूरा भावर यानि हल्द्वानी लालकुआं का कारोबार ठप्प हो जाता है।हकीकत तो यही है कि हल्द्वानी की बसावट ही गौला नदी की वजह से हुई।
तीस साल से मैं भी पत्रकारिता कर रहा हूँ मुझसे पहले के पत्रकार साथी भी इस मुद्दे को देखते समझते रहे है,नई पीढ़ी के पत्रकार,नेताओ के लिए ये विषय रोचक हो सकता लेकिन मैं कहता आया हूँ कि जमरानी बांध तकनीकी कारणों से,भगौलिक,आर्थिक कारणों से नही बन सकता।ये कोई विकास पुरुष रहे नारायण दत्त तिवारी और पर्वतपुत्र रहे केसीपन्त की राजनीतिक लड़ाई नही थी जो ये बांध नही बना।
दरअसल इसका शिलान्यास भी राजनीतिक ही था,जो उस वक्त भावर की पेयजल किल्लत इसके पीछे बड़ा कारण था,एक वक्त जब नारायण दत्त तिवारी के साथ एक हमारीमुलाकात हुई तो उन्होंने कहा था कि गौला नदी को अंग्रेजों ने नही बांधा, प.गोविंद बल्लभ पंत ने नही बांधा, तो मैं कैसे बांध सकता हूँ.?.सिल्ट..?.कह कर वो चुप हो गए, उनका इशारा था कि गौला नदी में बह कर आने वाली रेता बजरी पत्थर का क्या होगा?सरकार को आज भी इससे करोड़ो की आय होती है,गौला नदी किनारे सभ्यता बसी है,लाखो लोगो के लिए रोजगार बनी हुई है..
इसके अलावा हमारी बात एक बार जमरानी बांध परियोजना के एक अभियंता अधिकारी से भी हुई जिन्हें बाद में टिहरी ट्रांसफर कर दिया गया था,उनका कहना था कि जमरानी बांध न बनने के कुछ तकनीकि कारण गिनाए। जमरानी इलाके में शिवालिक की कच्ची पहाड़ियां है जोकि बांध की दीवार और डूब क्षेत्र में पानी के वज़न को रोक नहीं पाएंगी। जितने भी गढ़वाल में बांध बने है वो हिमालयन बेल्ट में है, शिवालिक कच्चा पहाड़ है,ऐसा जमरानी के पास आमिया इलाके मे दरकी पहाड़ी से साबित हो गया है।
(हिमालयी बेल्ट में बनी मनेरी भाली,श्रीनगर हाइड्रो प्रोजेक्ट में भरी गाद ने जो कहर ढाया वो अब जमरानी बांध के लिए सच साबित होता।) एनडी तिवारी की बात यहां भी गौर करने की है। जमरानी बांध योज़ना में विद्युत उत्पादन अधिकतम 27मेघावाट है केंद्र या राज्यसरकार इस पर बीस हज़ार करोड़ का खर्च, घाटे का सौदा मानती आयी है। सरकार इसमे इतना पैसा लगा नही सकती,निवेशक के लिए ये घाटे का सौदा है,इसके बावजूद केंद्र ने ये प्रोजेक्ट मंजूर किया है जोकि संशय पैदा करता है।
गौला नदी सरकार को हरसाल तीन सौ करोड़ का राजस्व देती है ,करीब दस हज़ार डम्पर,ट्रक और दो लाख लोग गोला नदी के खनन से रोजी रोटी खाते है हल्द्वानी, से लेकर किच्छा का व्यापार चक्र, गोला नदी चलाती है बांध बनने से ये सारा कारोबार चौपट हो जायेगा।जब गौला तीन महीने के लिए बन्द होती है तो कई शहरों का आर्थिक चक्र थम जाता है।
मेरा कई राजनेताओ से सवाल रहा कि रेता बजरी?जवाब मिलता है कि वो तो बांध से आती रहेगी ये सुन कर कभी कभी हैरानी होती हैकि सिल्ट निकालने के लिए बांध द्वार खोलेंगे तो क्या मंजर होगा, क्या बाढ़ होगी?9 किमी झील और 130 मीटर ऊंचे बांध के पानी का वेग क्या ये हर साल छोड़ेंगे,अभी जितना पानी आरहा है वो खर्च हो जाता है रहा सवाल बारिश के पानी का उसके साथ ही रेता रोड़ी पत्थर आता है जोकि रोजी रोटी देता है।
कुमाऊं में गोला नदी ही ऐसी क्यों है? जिसे तराई में भी बांधा नहीं गया ,जबकि नानक सागर,गुलरभोज ,तुमरिया ,बैगुल,भोर जैसे बड़े बड़े जलाशय पूर्व में पहाड़ की नदियों पर ही बने बने ,वज़ह थी गोला नदी बारह मासी पानी वाली नदी है जिसमे आने वाला बोल्डर ,सिल्ट ,रेता ,बजरी ,जिसे जमरानी में रोक गया तो एक साल में ही बाँध भर जायेगा।
अब सवाल है कि भावर यानि हल्द्वानी की पेयजल समस्या के समाधान का?नारायण दत्त तिवारी ने अपने विजन से यहां जापानी रिंग मशीनों से ट्यूब वेल खुदवाए जिससे जमीनी पानी गहराई में मिल गया ,अब ये ट्यूबवेल एक सामान्य योजना का हिस्सा बन गए है।
भावर,हल्द्वानी की पेयजल दिक्कतों को दूर करने का इसका सीधा उपाय ये था कि लालकुआं से भूजल या फिर गुलरभोज जलाशय से पानी लिफ्ट करके हल्द्वानी लाया जाये जिसपर सौ करोड़ का खर्चा भी नहीं आएगा और पानी की समस्या का समाधान भी हो जायेगा।पानी लिफ्ट करने की योज़ना पिथौरागढ़ अल्मोड़ा जैसे पहाड़ी इलाके में कामयाब भी रही है।
एक समाधान ये भी था कि गौला का पानी यदि बांधना ही है तो उसे जमरानी की बजाय,लालकुआं के आसपास बांधा जाए ताकि रेता बजरी भी निकलती रहे और पानी भी मिलता रहे।दुर्भाग्य ये रहा कि इस पर कभी न तो हमारे नेता न ही हमारे नौकरशाह संजीदा हुए,कुछ विधायक तो ऐसे है जिनकी राजनीति भी जमरानी बांध से चमकी और वो अब इससे मुंह नहीं मोड़ सकते।
मैंने खुद कई बार जमरानी परियोजना स्थल का जाकर अध्ययन किया,मिट्टी नमूनों की सुरंगों को देखा,आसपास की दरकी,अमिया की पहाड़ियों को भी देखा जोकि बेहद कच्ची है।
बरहाल जमरानी बांध बयानों में ही बनता रहेगा..ऐसा मेरा निजी विचार है।