उमेश तिवारी ‘विश्वास’
उद्योगपति माल्या के तहख़ाने का माल देखकर, छापेमारी से पूर्व की विजिट में पधारे मंत्री की आँखे चुंधिया गईं;
“वाह सर आपके किंग फिशर ने तो काफ़ी कुछ बटोर कर रखा है !”
“अरे मालिक पंछी की चोंच को क्योँ बदनाम करते हैं..बटोरने को तो लंबे-लंबे हाथ और सबका साथ चाहिए।”
“ही..ही..ही ! ये ठीक कहा श्रीमान..पर आपने सोने की ईंटों के साथ ये पुरानी जेबघड़ी क्यों धर रखी है ?”
“ये समय की प्रतीक है सर, ये संपत्ति जो आज मेरी है, कल आपकी जेब में हो सकती है।”
“ओह.. तो इसलिए जेबघड़ी ! मगर मुझे इस घड़ी से कोई महापुरुष याद आ गया था श्रीमान।”
“सर यादों का क्या ! मुझे आपको देखकर अपना स्कूल का एक साथी याद आ जाता है जो मेरे टिफ़िन से तंदूरी चिकन शेयर किया करता था।”
” हा हा हा तो आप स्कूल भी नॉन-वेज ले जाते थे ?”
“अरे सर वाटर बोटल में बियर भी होती थी..कुछ फ़ैन मेरी टीनएज लाइफ़ पर ‘किंग कॉमिक्स’ निकाल रहे है, आप पढ़ना..आपको मज़ा आएगा। आइए हम लोग पहले लंच कर लें।”
“अरे ये क्या किंग साब, आप इन पुराने तश्तरी-कटोरे में भोजन करेंगे ?”
“जी..मैं दो हज़ार नौ से इन्ही में खा रहा हूँ। ..आप लीजिए ..बाई द वे, खाने की टेबल पर ये चाँदी की कटलरी आपकी एयर लाइन का सोविनियर है, ले जाना न भूलियेगा।”
“बुरा न मानें तो आपको एक व्यक्तिगत राय देना चाहता हूँ किंग साब ..?”
“अरे क्या बात करते हैं सर !..आप आदेश करें, अध्यादेश लाएं.. पर हम बिना पेमेंट की एडवाइज नहीं लेते..”
“ही..ही..ही ! सेंस ऑफ ह्यूमर भी कमाल का है आपका..चलिए पेमेंट भी आ जायेगी। छापा कल शाम पड़ेगा, उससे पहले आप यहाँ का आधा सामान हमारे गोदाम में रखवा लें।”
“वाह..! सो नाईस ऑफ यू सर, ताला अपना लगा लें या आप भिजवाएंगे ? या हम ताला लगाकर एक चाभी आपको भेज दें ?”
“ही.. ही ! अरे श्रीमान हम तो मात्र चौकीदार हैं, ताला आपका, सामान आपका ..पर इतने मालदार होकर भी आपकी सादगी देखकर हैरानी ज़रूर होती है..”
“आप मेरे गले से झूलते इस गोल शीशों वाले चश्मे और मेरी पुरानी चप्पलों से हैरान हैं ना ? दरअसल ये मेरे राष्ट्रवाद के प्रतीक हैं। आपको बताऊं, स्कूल के दिनों में एम के गाँधी का बड्डे मना रहे थे तो हमारे हाउस मास्टर ने उनके फुटस्टेपस पर चलने वग़ैरा को कहा था। बड़ा होने पर हमने गाँधी का ये चश्मा, प्लेट-कटोरी, वाच और ये चप्पलें न्यूयॉर्क की नीलामी में तेरह करोड़ का ख़रीद लिया।”
“ओह तो वो घड़ी, प्लेट-बाउल..?”
“जी सर…! वो सब एम के गाँधी का ओरिजिनल है। उनका क्या है, अब आपका ही है…हाँ इससे याद आया, साब ने बैंक को फ़ोन करवाना था।”
“अरे साब हमें तो सबका विश्वास जीतना है, बात हो गई है सर ! बैंक अपने क़ायदे-क़ानून अमेंड कर रहे होंगे।”
“जी शुक्रिया सर।”
“अरे सर शर्मिंदा न करें .. हाँ, गाँधी का ये सामान हम आपसे उधार लेकर यूज़ करना चाहें तो..?”
“ये भी कोई डिमांड है सर ! एयर लाइन सोविनियर के साथ ये भी पैक करवा देते हैं.. पर ये वापस आ जाये।”
“जी, जी बिल्कुल पर इसे अलग से पैक करवा दें। दरअसल, हमारी एक सहयोगी मैडम हैं, उनकी संस्था गाँधी जी के पुतले पर गोली चला कर पुण्यतिथि मनाती है…पुतला काफ़ी भद्दा होता है जिससे मीडिया वालों को पूछना पड़ता है कि पुतला किसका है ? आपका कलेक्शन देखकर आईडिया आया कि पुतले को ओरिजिनल बिलोंगिंग से सजा दें तो मीडिया के लिए अच्छा अट्रेक्शन हो जाएगा और संस्था को वाइड कवरेज मिल जाएगी..”
“वाह क्या ख़ूब सोचा सर जी !..आप कहें तो गोड्से जैसी पिस्तौल भी मँगवा दें..?”
“हा..हा.. हा..! आप तो कहीं से ओरिजिनल नत्थू राम भी निकाल देंगे.. कुछ मैडम को भी जुगाड़ने दीजिए, उनको ख़र्चा भी दिखाना होता है।”
काफ़ी देर तक ही..ही..ठी..ठी के बाद जब मंत्री विदा हुआ तो किंग ने जेब से सिगरेट निकाल कर सुलगा ली। गहरी कश लेकर छोड़ी तो मुँह बेसाख़्ता निकला ‘हे राम’।