अतुल सती
7 फरवरी की आपदा से गुजरे अभी ढाई माह ही हुआ है कि उत्तराखण्ड के इसी क्षेत्र में इसी घाटी में भारत चीन सीमा के निकट एक और हादसा हो गया । 23 अप्रैल की दोपहर को उसी रैणी से लगभग 70 – 72 किलोमीटर आगे, जहां 7 फरवरी को आपदा की शुरुआत हुई थी, सुमना में, हिमस्खलन हुआ है । जिसकी चपेट में सीमा सड़क संगठन के मजदूरों का एक कैम्प आ गया । जिसमें 402 मजदूर थे । अभी तक के समाचार प्राप्त होने तक 18 लोगों के शव बरामद हो चुके हैं । 8 मजदूर घायल हैं । जिनमें 2 गम्भीर बताए जा रहे हैं ।
समाचारों में लगातार इस घटना को ग्लेशियर का खिसकना कहा जा रहा है दरअसल यह हिमस्खलन अथवा ऐवलांच की घटना है । यदि यह सच में ही ग्लेशियर के खिसकने की घटना होती तो हादसा बहुत बड़ा होता । हिमस्खलन ताजी कच्ची बर्फ के किसी तात्कालिक परिस्थिति से खिसकने की परिघटना है ।
जहां यह हादसा हुआ है यह एक पतली गार्ज नुमा घाटी है जो सदियों में नदी के कटाव से बनती गयी है । यहां घाटी के दोनो ओर सीधी चट्टान है । जिसे काटकर नदी के साथ- साथ चीन सीमा तक सड़क बनाने का कार्य काफी समय से चल रहा है । नदी के ऊपर एक पुल है, वहां पानी का स्रोत नजदीक है , इस कारण मजदूरों ने यहां अपना कैम्प लगाया । इस बार जाड़ों में उतनी बर्फ भी नहीं गिरी । इसलिए इस स्थान को निरापद समझा गया । जबकि पूर्व में ऐसा हादसा यहां हो चुका था । जिसमें आई. टी .बी .पी .के जवान हिमस्खलन की चपेट में आये थे । पिछले तीन चार दिनों से लगातार बारिश व बर्फबारी के चलते मौसम खराब था । ताजी बर्फ की परत पुरानी जमी बर्फ पर चढ़ती गयी होगी । वही बर्फ की परत नीचे आते मिट्टी को मलवा साथ बहाते लाई होगी । मजदूरों के कैम्प अस्थाई किस्म के टिन शेड मात्र थे । जो इसके नीचे आकर ध्वस्त हो गए ।
इस स्थान से कुछ दूरी पर भारतीय सेना का बेस कैंप है । घटना दोपहर को हुई , जिससे मजदूर दौड़ कर तत्काल सेना कैम्प में सहायता को गए और सेना की तुरन्त सहायता मिलने से अधिकांश मजदूर बचाए गए । कुछ दिनों से हुई लगातार बर्फबारी के चलते मुख्य सड़क मार्ग बंद हैं । इसलिए जोशीमठ की तरफ से सहायता पहुंचाना असम्भव था । यह रास्ता अभी तक भी बंद ही है । सीमा सड़क संगठन के कमान अधिकारी का कहना है कि जोशीमठ से 70 किलोमीटर मलारी, से आगे रास्ते में जगह जगह 20 से लेकर 25 फिट बर्फ है , जिससे सुमना तक सड़क मार्ग से पहुंचना अभी भी सम्भव नहीं हुआ है । 24 तारीख से मौसम ठीक होने पर हवाई सेवा से राहत कार्य किया जाने लगा है । यह भी बताया गया है कि 378 के करीब सुरक्षित मजदूरों को सेना ने अपने कैम्प में आश्रय दिया था । जिन्हें अब नीचे की तरफ अन्य स्थान पर शिफ्ट किया जा रहा है ।
मजदूरों के लिए अभी तक सरकार की तरफ से किसी प्रकार के मुआवजे की घोषणा नहीं हुई है । सीमा सड़क के अधिकारी का जरूर यह कहना है कि मजदूरों को उनके उचित बीमा राशि व अन्य फंड दिए जाएंगे । इनमें अधिकांश मजदूर झारखंड से हैं । झारखंड सरकार की तरफ से भी अभी तक कोई बयान या संवेदना प्रकट नहीं कि गयी है । सम्भव है सूचना का अभाव इसका कारण रहा हो । अथवा गरीब मजदूरों के जीवन का मोल ही क्या है ।
दिल्ली विश्वविद्यालय में भूगर्भशास्त्र के प्रोफेसर डा. नरेश राणा से जब इस घटना के संदर्भ में बात हुई तो उनका कहना था कि हिमालयी क्षेत्रों में यह सामान्य होती रहने वाली घटनाएं हैं ।यहां पूर्व में भी ऐसी घटनाएं होती रही हैं । यह एक तरह से भूस्खलन की तरह ही है । मानवीय क्षति होने से घटनाएँ गम्भीर हो जाती हैं ।
सीमा सड़क संगठन ही यहां सीमा क्षेत्र में सड़क निर्माण के लिए जिम्मेदार है । यह क्षेत्र सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील है । भौगोलिक दृष्टि से भी यह क्षेत्र संवेदन शील है । पूरी घाटी बंदूक की नाल की तरह एक गार्ज की शक्ल में है । मानवीय गतिविधियां कमजोर और लगातार विकसित होते हिमालयी विस्तार के साथ टकरा कर खतरनाक परिस्थिति बना रहा है । सरकार महत्वाकांक्षी भारत माला योजना के तहत इस क्षेत्र में डबल लेन सड़क बना रही है । जहां एक तरफ सर्वोच्च न्यायालय में चारधाम यात्रा सड़क( आल वेदर रोड़ ) की चौड़ाई 7 मीटर अथवा 10 मीटर रखने को लेकर रक्षा मंत्रालय व सर्वोच्च न्यायालय की बनाई डा. रवि चोपड़ा कमेटी के बीच नीतिगत और वैचारिक टकराव है । सरकार इस सड़क को भविष्य में चार लेन करने के मंसूबे रखती है । इसी आशय से नए सिरे से भूमि अधिग्रहण की तैयारी है
मानवीय हस्तक्षेपों के विरुद्ध प्राकृतिक घटनाएं लगातार चेतावनी स्वरूप सामने आ रही हैं । जिसमें जन धन की हानि तो है ही साथ ही पर्यावरण पारिस्थितिकी का भी नुकसान हो रहा है । विकास व पर्यावरण के मध्य के द्वंद्व में संतुलन स्थापित किये बगैर न तो इन घटनाओं से बचा जा सकेगा न हीं इन कठिन कठोर परिस्थितियों में जीवन बसर करते हिमालयी लोगों के जीवन को कुछ बेहतर सुविधाजनक बनाने के प्रयास में सफलता हासिल हो पाएगी ।
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