संजय चौहान
मुखौटा इंजीनियर ‘धर्मलाल’ के बेजोड हस्तशिल्प कला का हर कोई है मुरीद, उत्तराखंड ही नहीं सात समंदर पार इंग्लैंड तक मुखौटों को दिलाई नयी पहचान।
आज सृष्टि के सबसे बडे वास्तुकार और इंजीनियर भगवान विश्वकर्मा की जयंती है। उन्होंने सृष्टि की रचना करने में परम पिता ब्रह्मा जी की सहायता की थी। भगवान विश्वकर्मा ने ही सबसे पहले संसार का मानचित्र बनाया था और स्वर्ग लोक, श्रीकृष्ण की नगरी द्वारिका, सोने की लंका, पुरी मंदिर के लिए भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्तियों, इंद्र के अस्त्र वज्र आदि का निर्माण किया भी भगवान विश्वकर्मा नें किया था। ऋगवेद में जिसका पूर्ण वर्णन मिलता है। आज विश्वकर्मा दिवस पर आपको रूबरू करवाते हैं उत्तराखंड के सदूरवर्ती जनपद चमोली के जोशीमठ विकासखंड की ऊर्गम घाटी के पहाडी इंजीनियर धर्म लाल से …
हाथ में जमीन न हो तो कोई गम नहीं। जिसके पास कला का हुनर है उसके हाथों से कुछ भी दूर नहीं रह सकता। जी हां इन पंक्तियों को सार्थक कर दिखाया है धर्म लाल नें। जिन्होंने बेजान लकडियों पर बेजोड हस्तशिल्प काष्ठ कला से जीवंत कर दिया। 57 वर्षीय धर्म लाल विगत 40 सालों से काष्ठकला को बचाने में जुटे हैं। धर्म लाल के पास न तो कोई इंजीनियरिंग की डिग्री है, न कोई डिप्लोमा और न ही कोई उच्च शिक्षा की डिग्री लेकिन उन्होंने उत्तराखंड की हस्तशिल्प काष्ठकला को सात संमदर पार विदेशों तक पहुंचाया है। जहां उनकी कला को देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह गया था।
57 वर्षीय धर्म लाल को बचपन से ही हस्तशिल्प से लगाव था। उन्हें हस्तशिल्प काष्ठ कला का हुनर विरासत में अपने परिवार से मिला। उनके परिवार में कई पीढि़यों नें काष्ठकला को आगे बढ़ाने का काम किया। धर्म लाल विगत 40 वर्षों से काष्ठकला के माध्यम से ही अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा है। महज 15-16 वर्ष की छोटी उम्र से ही धर्म लाल नें हस्तशिल्प काष्ठ कला का काम करना शुरू कर दिया था। धर्म लाल पहाड़ों में परंपरागत खोली, रम्माण के मुखौटे, घरों के लकड़ी के जंगले, लकड़ी के भगवान के मंदिर, मूर्तियां बनाकर स्थानीय बाजार में बेचता है, लेकिन बदलते दौर में स्थानीय बाजार में उनकी मांग ना के बराबर है। बावजूद इसके धर्म लाल उत्तराखंड की काष्ठकला को बचाने में जुटा रहा। धर्म लाल को हस्तशिल्प कला के लिए विभिन्न अवसरों पर दर्जनो सम्मान मिल चुके हैं। 2016 में उन्हें उत्तराखंड शिल्प रत्न पुरस्कार भी मिल चुका है। जबकि 2017 में भारत सरकार के इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट एंड प्रमोशन ऑफ हैंडीक्रॉफ्ट योजना के तहत चयनित होने के बाद धर्म लाल ने इंग्लैंड के बर्मिघम में आयोजित ऑटोमन इंटरनेशनल फेयर 2017 में लकड़ियों की वस्तुओं की प्रदर्शनी लगाई थी। जहां धर्म लाल ने अपने हाथों से तराशे लकड़ी के पशु-पक्षी, मुखौटा, केदारनाथ मंदिर का प्रदर्शन किया था। धर्म लाल कहते हैं कि सात समंदर पार विदेशियों ने भी उत्तराखंड की इस कला की सराहना की थी। उन्हें इस बात की खुशी है कि उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहाड़ की काष्ठकला का लोहा मनवाया। ऊर्गम घाटी में हर साल लगने वाले गौरा देवी मेले में धर्म लाल अपने मुखौटा व अन्य उत्पादों की प्रदर्शनी लगाते हैं। विगत दिनों दीपक रमोला के प्रोजेक्ट फ्यूल ने भी धर्म लाल की बेजोड हस्तशिल्प कला पर एक शानदार डाॅक्यूमेंट्री बनाई थी, जिसे लोगों ने बेहद सराहा था..
वास्तव में देखा जाए तो पहाड़ में हुनरमंदो की कोई कमी नहीं है। यहां एक से बढकर एक बेजोड़ हस्तशिल्पि है। लेकिन बेहतर बाजार और मांग न होने से इन हस्तशिल्पियों को उचित मेहनताना नहीं मिल रहा है। ऊर्गम घाटी के सामाजिक सरोकारों से जुड़े युवा रघुवीर नेगी कहते हैं कि आर्थिक तंगी की वजह से उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों के बेजोड़ हस्तशिल्पि आज बेहद मायूस है जिस कारण से हस्तशिल्प कला दम तोडती नजर आ रही है। जरूरत है ऐसे हस्तशिल्पियों को प्रोत्साहित करने की और हरसंभव मदद करने की।