नैनीताल समाचार की शुरूआत से इससे जुड़े देवेन मेवाड़ी को एक पखवाड़े के भीतर पहले साहित्य अकादमी पुरस्कार और फिर वनमाली विज्ञान कथा सम्मान से सम्मानित किये जाने की घोषणा हुई है। नैनीताल समाचार परिवार की ओर से मेवाड़ी जी को बधाई। यहाँ पढ़ें कॉलेज में उनके घनिष्ठ साथी रहे सुविख्यात लेखक डॉ. लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’ का आलेख। -संपादक
साहित्यिक जिंदगी हम दोनों ने साथ ही शुरू की थी. उम्र में वह मुझसे बाल-भर बड़ा था, कद में कुछ इंच बड़ा मगर साहित्यिक हलकों में मैं उससे सीनियर था. सकुचाया-शरमाया सा वह साइंस के लड़कों के साथ घूमता कभी दिख जाता था. मेरी अपेक्षा उसके दोस्त भी अलग दीखते थे, और उस ज़माने में विज्ञान पढ़ने वाले लड़कों का जो रुतबा था, उन्हीं की तरह वह भी कॉलेज का खास छात्र था.
जिस घटना ने हमें मिलाया वह खब्तियों का ग्रुप था, जिसका नाम मैंने ‘क्रैंक’ रखा था. पहले ‘क्रैक’ रखा था, मगर विज्ञान वाले बात घुमा कर नहीं, शब्द की अभिधा-शक्ति में विश्वास करते हैं, इसलिए हमारे भौतिक-विज्ञानी प्रधानाचार्य ने उसे ‘क्रैंक’ बना दिया. वह साइंस का ज़माना था, हर पेरेंट का सपना अपने बच्चों को साइंस साइड में दाखिला दिलाना होता था, चाहे बच्चे की अभिरुचि उसमें हो या नहीं. उस ज़माने में हाईस्कूल में आते ही विज्ञान, कला और वाणिज्य में से किसी एक क्षेत्र का चयन करना होता था; हर पेरेंट अपने बच्चे को साइंस साइड दिलाने के लिए जोर-शोर से तन-मन-धन की थैली खोल देता था. होता भी यही था, विज्ञान का विद्यार्थी बनते ही बच्चा खुद को तीस-मार-खां समझने लगता था, आम बच्चों से खुद को काट लेता था क्योंकि विज्ञान की पढाई इंग्लिश में होती थी, उसे बाकी बच्चों की अपेक्षा दुगुनी पढ़ाई करनी होती थी, लैब के दस्ताने पहने आठवे पीरियड तक कॉलेज में हाज़िर रहना होता था और जब तक वो घर लौटते, नैनीताल में शाम की धुंध फैलने लगती थी. आर्ट्स साइड के हम लड़के तब तक अशोक या केपिटोल में मैटिनी शो देखकर या ‘क्रिकेट’ में फुटबाल, हॉकी का अभ्यास कर रहे होते. हम तिरछी आँख से उनकी ईर्ष्या को नज़र-अंदाज़ करते हुए उन्हें उन्हीं की वैज्ञानिक-दुनिया में और गहरे डूबने में मदद करते.
कॉलेज की किशोर उम्र में जो संस्कार ढाल दिए जाते हैं ता-जिंदगी उनका असर रहता है और उनकी काट कभी विकसित नहीं होती. मेरे कई दोस्त हैं,जिन्हें परिस्थिति-वश विज्ञान के विषयों को छोड़कर आर्ट्स के विषय लेने पड़े; जिसका उन्हें सारी जिंदगी मलाल रहा. दो-एक ऐसे भी थे जिन्हें भावुकतावश हिंदी लेनी पड़ी, जिस निर्णय का उन्हें हमेशा आत्महंता-अहसास होता रहा. कुछ लोग ऐसे भी थे जो लिटरेचर के रूप में अंग्रेजी लेना चाहते थे, विडंबना देखिये, उन्हें हिंदी का काला मुंह देखना पड़ा, और उस ज़माने में डॉ. गंजू या डॉ.माया राम के प्रोक्टर रहते विषय बदलना संभव नहीं था.
बाल-साहित्य के क्षेत्र में पहली बार प्रतिष्ठित साहित्य-अकादमी सम्मान उन्ही देवेन्द्र मेवाड़ी ‘क्रैंक’ को दिया गया जो मेरे समय में साइंस के विद्यार्थी थे; और विद्यार्थी भी ऐसे-वैसे नहीं, सतत जिज्ञासु छात्र,जो एनसीसी के फौजी अनुशासन से लेकर हिंदी लेखन की दुनिया तक बेझिझक गोते लगा सकते थे. यही कारण है कि जब मैंने इस सम्मान की घोषणा सुनी तो मेरी पहली प्रतिक्रिया थी कि यह सम्मान उन्हें काफी पहले मिल जाना चाहिए था. फिर भी तिकड़मी राजनीति के इस दुर्भाग्यपूर्ण दौर में दिल्ली की नज़र नैनीताल के क्रैंक पर पड़ना छोटी बात नहीं है. देवेन ने मात्रा और गुणवत्ता दोनों लिहाज़ से बड़ा लेखन किया है. ठीक है कि वह स्वयंभू कॉलेजी बड़बोले आचार्यों की तरह अलमारियों में कैद मोटे-मोटे ग्रंथों के प्रणेता नहीं हैं, जिन्हें कोई नहीं पढ़ता. देवेन के लेखन को बड़ी मात्रा में पाठक खरीदकर पढ़ते हैं; इससे भी बड़ी बात यह है कि उनकी किताबें बच्चे पढ़ते हैं. उन्हें सुनते हैं, गुनते हैं और उनके रोचक किस्सों की वजह से ही नयी पीढ़ी के बच्चों में वैज्ञानिक चेतना का संस्कार अंकुरित हुआ है. हिंदी में इस तरह का कोई शिक्षक फ़िलहाल मौजूद नहीं है; और यह सम्मान उनके इसी योगदान के लिए देश की सबसे बड़ी अकादमी ने उन्हें दिया है. यहाँ सम्मान से देवेन नहीं, स्वयं अकादमी सम्मानित हुई है.
7 मार्च, 1944 को जन्मे देवेन्द्र मेवाड़ी 1963 में बीएस सी में प्रवेश लेने के लिए नैनीताल के ठाकुर देवसिंह बिष्ट राजकीय महाविद्यालय में आये थे. हमारा परिचय तभी का है. बाद में जब मैंने हिंदी से एमए और उसने वनस्पति विज्ञान से एमएससी किया, हमारी दोस्ती गहराती चली गई और हम लोगों के बीच एक मूक समझौता हुआ कि हम साहित्य और विज्ञान के बीच खींच दी गयी छद्म दीवार को ध्वस्त करके हिंदी समाज को विज्ञान की वास्तविक चेतना के बीच ले जायेंगे. हिंदी के दूसरे विज्ञान-लेखकों से अलग उसने भाषा का सहज रूप अपने लेखन में उतारा. उसके लेखन में पारिभाषिक शब्दावली का जंजाल नहीं है, वैज्ञानिक उपलब्धियों का आतंकित करने वाला ज्ञान-भंडार भी नहीं है और न इतना सरलीकरण कि विषय की मूल वैज्ञानिकता ही हाशिये में चली जाए. जरूर वहां डॉ. डीडी पंत के हिंदी व्याख्यानों की तरह का तरल प्रवाह नहीं है, मगर केएस वल्दिया की हिंदी जैसी भावाकुलता भी वहां नहीं है जो सुनने में तो अच्छी लगती है लेकिन ज़िन्दगी की भाषा नहीं है. देवेन की भाषा बच्चों-किशोरों के बीच झटपट घुल जाने वाली, अंकुरित होते संस्कारों की भाषा है. बच्चे और किशोर ज़िन्दगी के जिस मोड़ पर होते हैं, वहां इसी तरह की भाषा और अभिव्यक्ति की दरकार होती है. हिंदी समाज भाषा के मामले में जिस दोगले संस्कार का शिकार है, जिसके अंतर्गत वह विज्ञान की अस्मिता अंग्रेजी के बिना स्वीकार करने के लिए किसी भी कीमत पर तैयार नहीं है, ऐसे में देवेन का विज्ञान लेखन ऐसा वरदान है जिससे आनेवाले वक़्त में हिंदी की विज्ञान-भाषा का पौधा भरे-पूरे वृक्ष के रूप में विकसित होगा.
हमारे बीच से निकले इस क्रैंक को राष्ट्रीय उपलब्धि अपनी योग्यता से हासिल करने के लिए अनेकानेक शुभकामनाएँ. उम्मीद है यह सिलसिला आगे बढ़ता चला जायेगा.
2 Comments
deven mewari
अभी अचानक यह लेख पढ़ने को मिला। मित्र बटरोही और ‘नैनीताल समाचार’ का बहुत आभार।
बटरोही से मेरी मुलाकात नैनीताल में डीएसबी कालेज के प्रांगण में एनसीसी की एक परेड के दौरान हुई थी। उसने पूछा था- “तुम देवेन मेवाड़ी हो? कहानियां लिखते हो?” मेरे “हां” कहने पर उसने कहा- “परेड के बाद मिलना।”
मैं परेड के बाद मिला। उसने कहा- ” मैं भी कहानियां लिखता हूं। मेरी कुछ कहानियां छप भी चुकी हैं। मिलते रहना, हम लोग कहानियों के बारे में बातें करते रहेंगे। एनसीसी में तो मैं ऐसे ही आ गया। छोड़ दूंगा। मुझे तो कहानियां लिखनी है।”
जल्दी ही हम गहरे दोस्त बन गए। खूब कहानियां पढ़ते, उन पर चर्चाएं करते। मेरी कहानियां भी कहानी, माध्यम, उत्कर्ष आदि साहित्यिक पत्रिकाओं में छपने लगीं। लिखने,पढ़ने और दोस्ती की एक लंबी दास्तान है हमारी।
याद करने के लिए बहुत प्यार।
डॉ. भूपेंद्र बिष्ट
देवेन मेवाड़ी को साहित्य अकादमी बाल पुरस्कार और वनमाली विज्ञान कथा सम्मान मिलने पर पहाड़ प्रफुल्लित है. इस बीच उनकी “छूटा पीछे पहाड़” किताब आ गई तो मुदित भी.
बटरोही जी ने मेवाड़ी के क्रैंक affiliation का विवरण देकर इस गर्वित प्रकरण को और रोशन कर दिया है.
अपेक्षा यह है कि क्रैंक्स पर अलग से पूरा लिखा जाय और उसमें एक एक सदस्य ( चित्रकार मोहम्मद सईद भी रहे तो, उन पर भी ) के बारे में विस्तार से बताया जाय.