सरोज आनंद जोशी
देश की आर्थिक ढांचे की तस्वीर यानि बजट 2022 का ब्लू प्रिन्ट अब जनता के सामने हाजिर है। आज भारत की राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मे कुछ भी सुर्खियां में हों, पर सरकार के सामने सबसे बड़े मुद्दे और जो सबसे अधिक चिंतन मंथन के जो अनिवार्य विषय है वो हैं रोजगार, कोरोना के बाद की अर्थव्यवस्था, जीडीपी और किसान।
इन्फ्रास्ट्रक्चर और ये बजट :
इस बजट मे आजादी के 100 साल मे भारत के दृष्टिकोण को निर्धारित , आधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर, सार्वजनिक निवेश समानान्तर व्यवस्थाएं के साथ की रूपरेखा की बात की गई है यानि पीपीपी मॉडल की सीमा के साथ ।
इस बजट में भारत मे आजादी के बाद 75 वर्ष से भारत के 100वर्षों यानि 25 साल को ‘अमृत काल’ में अगले 25 वर्ष में अर्थव्यवस्था को दिशा देने के लिए बुनियाद तैयार करने और उसकी रूपरेखा प्रस्तुत करने का प्रस्ताव किया गया है। जिसमे एक प्राथमिकता “पीएम गतिशक्ति’ को आर्थिक वृद्धि और सतत् विकास की दिशा में एक पद्धति बताया गया है इस पद्धति का संचालन सात इंजनों से होता है जोकि इस प्रकार हैं – सड़क, रेलवे, एयरपोर्ट्स, पत्तन, सार्वजनिक परिवहन, जलमार्ग और लॉजिस्टिक अवसंरचना। ये सातों इंजन एक साथ मिलकर के अर्थव्यवस्था को आगे ले जाएंगे यही अर्थव्यवस्था इन्ही इंजनों के आगे बढ़ेगी।
2014 से ही इस सरकार का ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर’ पर जोर रहा है जो कहीं न कहीं धरातल में भी दिखता है, देश के राजमार्गों का काम , यहाँ उत्तराखंड चार धाम सड़क परियोजना और आल वेदर रोड , हालांकि हिमालयी क्षेत्र होने के कारण उत्तराखंड के भूगर्भ वैज्ञानिक एवं समाजशास्त्री पहाड़ों मे अधिक विनिर्माण को यहाँ की प्रकृति के विरुद्ध बताते हैं।
‘नई इन्फ्रास्ट्रक्चर नीति’ जिसकी व्याख्या इस बजट मे की गई है। बजट भाषण से साफ झलकता है कि ये परियोजनाएं दीर्घकालिक हैं और पीपीपी मॉडल यानि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप यानि निजीकरण के साथ-साथ।
किसान और ये बजट :
पिछले एक वर्ष से किसानो के मुद्दे राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों मे रहे, खासकर एक साल तक चले किसान आंदोलन को लेकर और इस सरकार ने पहले बजट से आज तक हर बजट मे किसानों की आय दुगुनी करने की बात बार बार दोहराई है , पिछले बजट मे जब वित्त मंत्री ये बात दोहरा रही थी तब हमारे कृषि बाहुल्य तराई क्षेत्र मे एक लीटर डीजल की कीमत 66.59 रुपये थी और पहली तिमाही के आखिर तक प्रति लीटर डीजल की कीमत लगभग 10% बढ़कर 72.70 रुपये हो गई थी , जबकि अप्रैल, मई, जून यह तिमाही खरीफ की फसल का समय होता है, कृषि बाहुल्य क्षेत्रों मे किसान के ट्रेक्टर और हार्वेस्टिंग मशीनें डीजल से ही चलती हैं , गेंहू और धान की एमएसपी मे वृद्धि तो हुई पर अधिकतम 5 से 7% तक , और डीजल के दाम 10% बढ़ गए, सरसों के दामों मे अवश्य अच्छी खासी बढ़ौतरी तो हुई पर इस साल जनवरी की बेमौसमी बारिश ने सरसों की फसल को भी धो ही डाला है।
ऐसे हालातों मे किसान की आय कैसे दुगुनी होगी ये सोचनीय विषय है , कीटनाशको मे 18% जीएसटी है बजट मे न तो किसानों से जुड़े उत्पादों मे जीएसटी घटाने की बात की है न हीं तेल के दामों मे राहत की खबर आने वाली है, किसानों की खातों मे डाली जाने वाली नाममात्र की राशि क्या आय मे शामिल है ? ऐसे मे किसानों की आय दुगुनी कैसे होगी ये बड़ा सवाल है।
सरकार ने बजट मे ऑर्गैनिक खेती बढ़ाने की बात की हैं पहाड़ों मे अभी भी ऑर्गैनिक खेती की जाती है पर बिगत वर्षों मे इंसानी पलायन, आबादी घटने और जानवरों की आबादी खासकर बंदर और सुवर की आबादी बढ़ जाने के पहाड़ों मे कृषि बदहाली से गुजर रही है जो पलायन से प्रत्यक्षतः जुड़ी है।
अर्थव्यवस्था और ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस :
सरकार ने हर बजट में ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की बात कही है इसका मतलब है उधमियों को , उनके उधम के लिए सुगमता सहजता प्रदान करना, सरकारी व्यवहारिकताओ अनावश्यक झंझटों से मुक्ति दिलाना, इस बजट मे भी सरकार ने वही बातें दुहराई और कहा कि हम स्टार्टअप और नए उधमियों को प्रोत्साहित करेंगे पर जमीनी स्तर पर देखा जाये तो जीएसटी ने अपने 4वर्ष पूरे कर लिए लेकिन अभी तक भी प्रणाली सुचारु रूप से कार्य नहीं कर पायी है , कुछ न कुछ बदलाव इसमे हर रोज हो रहे हैं और सबसे बड़ी बाधा है जीएसटी को संचालित करने वाली वेबसाईट ठीक से काम नहीं करती तकनीकी खामियाँ , अधिकाधिक अपडेट आ जाने से अधिकांश समय सरकारी नियम कानूनों के अनुपालन मे चला जाता है और आज 4 साल बाद भी जीएसटी पोर्टल मे कई तकनीकी खामियाँ मौजूद है।
आयकर पोर्टल सबसे अधिक सुगम था पिछले साल जून मे बिना पूर्व परीक्षण के अचानक पोर्टल बदल गया , और आज 7 महीने के बाद भी नया इनकम टैक्स पोर्टल ठीक से काम नहीं कर रहा है , इसलिए जो ऑडिट सितंबर तक पूरे हो जाने थे वो आज जनवरी के बाद भी पूरे नहीं हुए हैं , सबसे बड़ा नुकसान तो सरकारी राजस्व का भी हुआ है , जो कर निर्धारण से राजस्व सितंबर तक आ जाना था वो छः माह तक बिलम्बित हो गया है पूरे देश मे जीएसटी और आयकर सेवा देने वाले टैक्स पेशेवर बहुत परेशान रहे तो साथ में संबंधित उद्यमी भी, ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ से सबसे अधिक जरूरत तकनीकी खामियों की दूर करने की है सरकारी नियमों मे प्राविधिक अनुपालन को कम किया जाना चाहिए, उसे सुगम बनाया जाना चाहिए, अभी सरलीकरण के नाम पर छोटी कंपनियों के वैधानिक अंकेक्षण की अनिवार्यता को हटाने की बात भी चल रही है, जबकि ये कदम ‘ऐज ऑफ डूइंग बिजनस’ की अवधारणा के एकदम खिलाफ है, कंपनी अंकेक्षण लेखों का स्वस्थ परीक्षण है जिससे पारदर्शिता बढ़ती है और यह व्यापार की स्थिति की वास्तविक परिणामों की सच्ची तस्वीर भी प्रस्तुत करता है, वो भी बहुत कम लागत पर, वैधानिक अंकेक्षण न होने पर व्यापार किस दिशा मे जा रहा हैं इसका भान नहीं हो पाएगा और इस अनिवार्यता के बिना उद्यम के दिशाहीन होने की अधिक संभावनाए हैं
इसके बजाय कंपनी अधिनियमों मे अनुपालन कार्य प्रपत्रों की कमी, सरकारी शुल्क को कम करने से उधमी को अधिक सुविधा होगी और जीएसटी अन्य सरकारी कानूनों का सरलीकरण, ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ का मूल मंत्र बन सकता है हालांकि सरकार ने इस दिशा मे काम भी किए हैं।
जीडीपी अर्थव्यवस्था के सबसे बड़ी चुनौती है कि देश के आखिर खरीददारी कैसे बढ़े ? ऊपर से कोरोना के बाद ये बहुत से श्रोत कम हो गए हैं फिर बाजार मे पैसे का फ़्लो कैसे बढ़ाया जाये जिससे कि जीडीपी को गति प्रदान की जा सके इसके लिए सबसे बड़ी जरूरत होती है ‘सुरक्षा और विश्वास’ की, खरीद फरोख्त बाजार निवेश तभी बढ़ता है जब निश्चितता की स्थिति हो कोरोना महामारी के बाद जो गति थी उसमे विराम अवश्य लगा है, पर सरकारों के लिए सबसे अधिक जरूरत जनता मे विश्वास बनाए रखना और लोगों को सुरक्षा की गारंटी देने की हैं, जिन देशों की जीडीपी मजबूत है उनका ये मॉडल है “सामाजिक सुरक्षा”
रोजगार और ये बजट :
कोरोना महामारी के पहले से ही देश में बेरोजगारी ने आँकड़े सरकार की नींद हराम करने के लिए काफी थे, फिर कोरोना काल मे बहुत अधिक छटनियाँ हुई, नई भर्तीयों मे भी रोक लगी हुई है , ऐसे मे बड़ी चुनौती युवाओ को रोजगार उपलब्ध करना है । इस बजट भाषण मे वित्त मंत्री ने कहा कि “आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए 14 क्षेत्रों में उत्पादकता से जुड़े प्रोत्साहन से जो उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रिया प्राप्त हुई है, इनमें 60 लाख नई नौकरी सृजित करने और अगले 5 वर्ष के दौरान 30 लाख अतिरिक्त नौकरी सृजित करने की क्षमता है।
ये आगे देखने वाली बात होगी कि इस तरह रोजगार सर्जित होंगे, रेलवे को पीपीपी मॉडल मे देने की पूरी तैयारी है, ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती रोजगार की है रेलवे मे नौकरियाँ रोजगार को बढ़ाती थी, पर नया पीपीपी मॉडल की एक सीमा सरकार के साथ जुड़े ‘प्राइवेट पार्टनर’ की प्रतिबद्धता की भी है कि निवेश के बाद वो प्रारम्भिक स्तर पर कितना मानव संसाधन पर विनियोग का रिस्क वहन सकता है , जबकि सरकार सामाजिक जिम्मेदारी के रूप मे अधिक जोखिम ले लेती थी जिससे रोजगार के क्षेत्र मे अधिक संभावनाए रहती थी।
प्रत्यक्ष कर
बात उस माध्यम वर्ग की जो प्रत्यक्ष कर मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है , उसे इस बजट मे कोई खास राहत नहीं दी सिवाय दीर्घकालीन पूजिगत लाभकर मे 5% छूट के ,सहकारी सिमितियों को थोड़ा कर से राहत जरूर दी है , स्टार्ट अप के टैक्स फ़ायदों को एक बर्ष के लिए बढ़ाया गया है।
पहली बार क्रिप्टो करन्सी पर 30% कर देने का प्रावधान किया गया है इसका सीधा मतलब है कि क्रिप्टो करन्सी वैध हो जाएगी।
उत्तराखंड के लिए क्या सम्भवना हो सकती है
हम लोग यूरोप की तर्ज मे पिछले 110 साल से पहाड़ों मे ट्रेन का सपना सजाए बैठे हैं 60 के दशक के बजट उसके बाद की सरकारों सहित वर्तमान की मोदी सरकार के बजट मे भी बागेश्वर रेल परियोजना का जिक्र किया पर वो सपना अभी तक सपना ही रह गया इस बजट मे उस परियोजना का जिक्र तो नहीं किया पर क्या नई 400 वंदे भारत ट्रेनों मे हमारी टनकपुर बागेश्वर रेल भी शामिल होगी ये देखने वाली बात होगी।
उत्तराखंड मे टूरिज़्म बढ़ावा देने के लिए एक अवसर ये बन सकता है कि यहाँ रोपवे के निर्माण की अपार संभावनाओ के साथ दुर्गम क्षेत्रों को स्वास्थ्य से जोड़ने की अनिवार्य आवश्यकता भी है इस बार बजट भाषण मे 60 किमी की लंबाई के 8 रोपवे परियोजनाओं को पीपीपी मॉडल में कार्यान्वित करने की बात कही गई है जो हमारे राज्य के लिए कुछ संभावना बन सकती है पर इस अवसर को क्या हमारी राज्य सरकार भुना पाएगी ये बड़ा सवाल है।
नदियों के उद्गम का प्रदेश कहे उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों मे जहां सबसे बड़ी आबादी के शहरी क्षेत्र हैं, खासकर पिथौरागढ़ अल्मोड़ा जिला मुख्यालयों मे जहां पीने से साफ पानी की भारी किल्लत है जहां स्वच्छ नदियों के पेय जल की धाराओ को नलों से जोड़ने की आभारभूत जरूरत है वहाँ इस बजट भाषण मे ‘हर घर नल से जल’ ये योजना कारगर साबित हो सकती है।
केन्द्रीय बजट मे सरकार ने अपना काम तो कर दिया है पर सबसे अधिक जिम्मेदारी यहाँ के स्थानीय जनता की है कि वो स्थानीय मुद्दों समस्याओ पर विमर्श, चिंतन-मनन करे, संघीय ढांचे का मतलब समझे और अपनी प्रवृति के अनुसार केवल राष्ट्रीय मुद्दों की हवा मे न रहे और अपने प्रदेश पर गंभीरता से सोचें तभी प्रदेश का विकास संभव हो पायेगा।
सरोज आनंद जोशी सी.ए.