राजीव लोचन साह
तीन साल पहले वे भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में थे। आज वे दक्षिणी अमेरिका के सबसे बड़े देश के राष्ट्रपति हैं। पहले भी दो बार ब्राजील के राष्ट्रपति रह चुके और लेफ्टिस्ट वर्कर्स पार्टी के नेता लुईज इनेशियो लूला दा सिल्वा की सत्ता में वापसी लैटिन अमेरिका की समसामयिक राजनीति की एक सबसे आश्चर्यजनक परिघटना है। लूला, जैसा कि उन्हें प्यार से बुलाया जाता है, ने 50.9 प्रतिशत वोट प्राप्त कर सत्ता में आसीन, 49.1 प्रतिशत मत प्राप्त करने वाले बोल्सोनारो को शिकस्त दी। हालाँकि पिछले पाँच वर्षों में नीतियों में दक्षिणपन्थी रुझान लाने वाले बोल्सोनारो ने भी चुनाव में पर्यवेक्षकों की अपेक्षा से बेहतर प्रदर्शन किया। इस चुनाव में दो छोरों पर दो मुद्दे थे। एक ओर अति राष्ट्रवाद और मुक्त बाजार की नीतियों का घालमेल तथा दूसरी ओर सामाजिक उदारवाद में लिपटे सहभागितापूर्ण व टिकाऊ विकास का वादा। अन्ततः ब्राजील के मतदाताओं ने महसूस किया कि लूला के साथ जाना बेहतर है और एक बार वे सुप्रीम कोर्ट से भ्रष्टाचार के आरोपों से दोषमुक्त हुए तो उन्हें वापस सत्ता सौंप दी। पिछली बार लूला जब सत्ता में थे, तो उन्होंने अपनी नीतियों से लगभग अढ़ाई करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला। उन्होंने विकास और जन कल्याण की नीतियों पर केन्द्रित करते हुए कोऑपरेटिव मॉडल चुना और सह अस्तित्व का रास्ता अपनाते हुए शक्तिशाली अभिजात वर्ग से सीधे टकराने से परहेज किया। बाकी दुनिया से अलग दक्षिण अमेरिका के देशों में इस वक्त वामपंथ की बयार चल रही है और लूला को भी ऐसे माहौल में काम करने में आसानी होगी। हालाँकि पिछले पाँच साल में ब्राजील भी काफी बदला है और अपनी जनता की अपेक्षायें पूरी करना लूला के लिये आसान नहीं होगा। कोरोना काल में बोल्सोनारो के कुप्रबन्ध ने 33 लाख लोगों को गरीबी में धकेल दिया। इस वक्त, जब इटली मे ज्योर्जिया मेलोनी के नेतृत्व में नई सरकार के गठन से योरोप में दक्षिणपंथ के उभार के संकेत मिल रहे हैं, लूला का राष्ट्रपति बनना एक अच्छी खबर है।