देवेश जोशी
उत्तराखण्ड में इन दिनों एक गीत ने धूम मचा रखी है। इस गीत के प्रति दीवानगी न सिर्फ़ हिमाचल तक दिखायी दे रही है बल्कि पड़ोसी देश नेपाल में भी कम नहीं है। अल्मोड़ा अंग्रेज आयो टैक्सी में, बोल वाले इस गीत को स्वर दिया है सुप्रसिद्ध गायिका खुशी जोशी और नीरज चुफाल ने। मधुर-कर्णप्रिय संगीत गोविंद दिगारी ने दिया है वीडियोग्रैफी भी उन्हीं की है। गीत, कुमाँऊ का पारम्परिक लोकगीत है जिसे झोड़ा नाम से जाना जाता है।झोड़ा, जोड़ा का ही औच्चारणिक भेद है। दो दलों में बँट कर या जोड़े में गाये जाने के कारण इन्हें झोड़ा कहा जाता है। दो बार अनिवार्य रूप से दोहराया जाना भी नामकरण का एक आधार है। हथझोड़ा नाम भी प्रचलन में है, खासकर नृत्यप्रधान झोड़ों के लिए। चांचरी लोकगीत/लोकनृत्य झोड़ा/हथझोड़ा से इतनी समानता रखते हैं कि प्रायः झोड़ा और चांचरी को एक-दूसरे का पर्याय समझा जाता है। सही नाम के चयन की दुविधा के कारण अक्सर झोड़ा-चांचरी संयुक्त नाम का प्रयोग भी देखा जाता है। गीत के स्तर पर दोनों में अंतर होता भी नहीं है। अंतर नृत्य में ही दिखायी देता है विशेषकर पदसंचालन गति में, आरोह-अवरोह में और लय की दीर्घता में।
गीत का फिल्मांकन सुदूरवर्ती क्षेत्र पिथौरागढ़ के डीडीहाट में किया गया है। गीत का कथ्य बहुत कम समझने के बावजूद इसे व्यूअर्स का भरपूर प्रेम मिल रहा है। रिलीज़ होते ही ये मिलियन-व्यूज़ क्लब में शामिल हो गया था और फिलहाल पाँच मिलियन व्यूज़ के साथ साल का सर्वाधिक हिट गीत बना हुआ है। गीत की सादगी ही उसका प्लस प्वाइंट बन गयी है। खुशी जोशी की कर्णप्रिय आवाज़ मन पर जादू करती है और उनके हँसमुख चेहरे के एक्सप्रेशन्स सम्मोहन।
52 लाख से अधिक व्यूज़ से गीत के प्रति दीवानगी समझी जा सकती है। गीत के बारे में रोचक ये भी कि गीत की थीम भले ही सभी लोगों के गले न उतर रही हो पर स्वर और संगीत का जादू ऐसा है कि सुनने वाला स्वयं को थिरकने से रोक नहीं पा रहा है। बहुत-से लोगों को लगता है कि गीत की टेक एक आनुप्रासिक तुकबंदी मात्र है और इसमें कोई अर्थ या कहानी तलाशना अनावश्यक और अतार्किक ही होगा। इस बात पर राय जुदा हो सकती है कि इस गीत में दीवानगी अंग्रेज के प्रति अधिक है या टैक्सी के प्रति। वैसे गीत के शब्दों में एक पूरी कहानी भी छिपी है, जिसे थोड़ी-सी मेहनत से समझा जा सकता है। इस लोकप्रिय गीत में छिपी हुई किंतु रोचक कहानी को समझने का प्रयास करते हैं।
बालो कल्याणचंद द्वारा जिस अल्मोड़ा नगर को बसा कर, सोलहवीं शताब्दी में पहली बार राजधानी बनाया गया था, वहाँ अंग्रेजों का पहली बार आगमन 1815 की सिंगोली संधि के बाद हुआ था। बात नैनीताल की होती तो दावे से कहा जा सकता था कि वहाँ आने वाला पहला अंग्रेज, कमिश्नर ट्रेल या घुम्मकड़, व्यवसायी लेखक पीटर बैरन था, पर अल्मोड़ा के मामले में इतनी पुख्ता जानकारी नहीं मिलती है। मिलता है तो ये झोड़ा, अल्मोड़ा अंग्रेज आयो टैक्सी में। ये भी इतिहास में दर्ज़ है कि कुमाऊँ की पहली मोटर ट्रांसपोर्ट कम्पनी, अल्मोड़ा की हिल मोटर ट्रांसपोर्ट कम्पनी थी, जिसके मालिक मुंशी ललिता प्रसाद टम्टा थे। 1920 में स्थापित इस कम्पनी की लॉरियाँ ही पहले-पहल अल्मोड़ा में चली थी, जिन्हें टैक्सी भी कहा जाता था। हालांकि तब इनकी रफ़्तार 10-12 किमी प्रति घंटा से अधिक नहीं होती थी, पर दुनिया की औद्योगिक क्रांति से अपरिचित सीधे-साधे पहाड़ियों के लिए तो ये दृश्य किसी चमत्कार से कम नहीं था। बहुत से गाँवों के किस्से सुनने में आते हैं कि वहाँ की महिलाओं ने गाँव में पहली बार पहुँची मोटरगाड़ी के सामने उत्साह में हरी घास डाल दी थी, ये सोच कर कि मोटरगाड़ी भी हरी घास खाती होगी।
इस पृष्ठभूमि के साथ समीक्ष्य लोकगीतको समझने में आसानी होगी। समझा जा सकता है कि 1920-1925 के बीच की बात रही होगी जब सुदूर दानपुर क्षेत्र की कोथिगेर (मेलार्थी) महिलाओं के समूह ने अल्मोड़ा में शान से टैक्सी चलाता हुआ अंग्रेज देखा होगा।नया-अनोखा अनुभव था, ऐतिहासिक भी, तो वापसी में उसको किसी गीत में ढलना ही था।और देखते ही देखते जोड़ पर जोड़ जुड़ते गये और सृजित हो गया एक खूबसूरत झोड़ा लोकगीत, जिसके शब्द इस तरह हैं –
अल्मोड़ा अंग्रेज आयो टैक्सी में
बंदुकी का बाना म्यर झुमका रैग्या बग्स में
जथैं जूलों संग जूलों टैक्सी में
तू घट मैं बान म्यर झुमका रैग्या बग्स में।
पार बटी बर्यात आ छै टैक्सी में
शोर्याल बिष्ट की म्यर झुमका रैग्या बग्स में
पैली को शबद म्यर टैक्सी में
अपणा ईष्ट की म्यर झुमका रैग्या बग्स में।
अशाई को जाम सुआ टैक्सी में
धूरा पाको आम म्यर झुमका रैग्या बग्स में
भुलुलू भुललु कूं छू टैक्सी में
भूली भुली फाम म्यर झुमका रैग्या बग्स में।
बजार कु मटीतेल टैक्सी में
जंगल को छ्यूल म्यर झुमका रैग्या बग्स में
सब तीर मोल लिऊल टैक्सी में
माया का हैं ल्यूल म्यर झुमका रैग्या बग्स में।
बरमा जन्या सिपाई का टैक्सी में
कमर खुकुरी म्यर झुमका रैग्या बग्स में
जब तेरी याद उंछी टैक्सी में
मैं लागे हिकुरी म्यर झुमका रैग्या बग्स में।।
टैक्सी में बैठे अंग्रेज को अल्मोड़े में दुबारा देखने की अभिलाषा है, नायिका की। इस बार वो स्वयं भी सज-धज कर अल्मोड़ा जाना चाहती है। पर क्या करे, उसके झुमके तो उस संदूक में बंद हो रखे हैं जिसमें उसके फौज़ी पिता की बंदूक रखे जाने से ताला लगा हुआ है। नायिका यह भी कल्पना करती है कि हम दोनों जहाँ भी जाएंगे, टैक्सी में बैठ कर साथ जाएंगे। किसी संभावित आपत्ति को खारिज करते हुए खुद ही को समझाती है कि ऐसा क्यों नहीं हो सकता है, आखिर वो बांका बटोही है और मैं रूपवान युवती। गीत में प्रयुक्त घट शब्द मुझे कहीं से भी सार्थक नहीं लगता है। इसकी जगह पर मूल झोड़े में भट या बटौ शब्द रहा होगा जो ध्वनि-साम्य के कारण, गायकों के द्वारा घट के रूप में ग्रहण किया गया होगा। भट तथा बटौ का अर्थ क्रमशः बलिष्ठ/गठीला तथा बटोही होता है।
जैसा कि हम जानते ही हैं कि कोई लोकगीत सिंगल-सिटिंग में सृजित हो जाए ये जरूरी नहीं है। अधिकतर इसके अंश अलग-अलग समय में सृजित होकर मूल लोकगीत में जुड़ते रहते हैं। ऐसा ही इस झोड़ा लोकगीत में भी हुआ है। टैक्सी के बहुत सारे दृश्य इस लोकगीत में शामिल होते रहे जबकि टेक में अंग्रेज वाला दृश्य ही रहा। एक दृश्य वो है जब टैक्सी में पिथौरागढ़ के किसी शोर्याल बिष्ट को अपनी बारात में टैक्सी में बैठा देखा गया। निश्चित ही वो ठसक वाला कोई थोकदार रहा होगा, बटरोही जी के कथानायक थोकदार की तरह। यहाँ लोकगीत में तंज भी है कि टैक्सी में बैठने का उत्साह कुछ ऐसा था कि ईष्टदेवता को समर्पित, बारात प्रस्थान की शबद ताल बजने से पहले ही दूल्हा शोर्याल बिष्ट टैक्सी में बैठ गया था।
एक और दृश्य में ये रेखांकित किया गया है कि बाज़ार का मिट्टी का तेल शान से टैक्सी में ढोया जा रहा है जबकि प्रकाश के पारम्परिक पहाड़ी साधन छ्यूल (छुल्ला/छिल्का) से सहानुभूति भी जतायी जाती है कि जंगली छ्यूल! तेरी किस्मत में टैक्सी कहाँ। फिर अपने ही मन को सांत्वना देते हुए नायिका कहती है कि ठीक है पैसों के दम पर सब कुछ खरीदने का गुमान है तुम्हें, पर ये तो बताओ कि मेरा जैसा सच्चा प्रेम कहाँ से खरीदोगे।
एक दृश्य टैक्सी में बैठे, बर्मा के मोर्चे पर युद्ध लड़ने जाते हुए सिपाही का भी है, जिसकी कमर की पेटी में खुंसी हुयी खुकरी उसकी भावी भूमिका की दास्तान बताती हुयी-सी जान पड़ती है। उस सिपाही को दिल दे चुकी नायिका बता रही है कि जब तेरी याद आती है तो मैं सिसकियां भरती रह जाती हूँं। हर बार सोचती हूँ कि भूल जाउंगी, पर तुम्हारी याद तो अमिट बन आसन जमा बैठी है दिल में। गौरतलब है कि कुमांऊ रेजीमेंट औरगढ़वाल राइफल्स की स्थापना से पहले उत्तराखण्ड के युवा गोरखा राइफल्स में ही भर्ती होते थे। गोरखा राइफल्स में रहते हुए ही उन्होंने बर्मा व अफगानिस्तान में महत्वपूर्ण युद्धों में भाग लिया था।
इस विश्लेषण के बाद, पूरा विश्वास है कि आप भी मानने लगेगें कि अल्मोड़ा अंग्रेज आयो टैक्सी में लोकगीत बेसिर-पैर की तुकबंदी नहीं बल्कि सुगठित और कलात्मक लोकगीत है जिस पर दुनिया के किसी भी इलाके को गर्व हो सकता है। इस मधुर-कर्णप्रिय गीत को उसकी थीम समझते हुए सुनेंगे तो दोगुना आनंद मिलेगा।