अरुण कुकसाल
जीवन में फक्कड़ी के बादशाह ओंकार बहुगुणा ‘मामू’ का पौड़ी में और जीवनीय जीवटता के धनी भगवान सिंह पंवारजी का केवर्स गांव में 12 अप्रेल 2022 को देहान्त हो गया। हमारी पीढ़ी के इन अग्रज व्यक्तित्वों की एक साथ विदाई से उपजा खालीपन हमेशा रहेगा। इन दोनों मित्रों का जीवनीय सफर सामाजिक सरोकारों को हमेशा निर्भीकता और जीवंतता से निभाते हुए बीता।
सीपीआईएम से जुड़े औंकार बहुगुणा ‘मामू’ उत्तराखंड में जनसंघर्षों के अग्रणी थे। अस्सी के दशक में राजेंद्र रावत ‘राजू’ और शमशेर बिष्ट के साथ ‘उमेश डोभाल हत्याकांड’ के विरोध में सबसे पहले निर्भीक आवाज पौड़ी से ‘मामू’ की ही गूंजी थी। ‘मामू’ हम मित्रों के लिए परिवार का वह प्यारा अभिभावक था, जो हर बात और परिस्थिति में अपने अनुजों के साथ खड़ा रहता है। उसका सानिध्य अपनत्व और हिम्मत दोनों प्रदान करता था।
ठीक अस्सी के दशक में श्रीनगर (गढ़वाल) में ‘अलकनंदा सैनिक होटल’ संचालित करते हुए भगवान सिंह पंवारजी सामाजिक सेवा के पर्याय थे। वे सन् 1962 के चीन युद्ध के वीर सैनिक और युद्ध बंदी रहे थे। ओर्डिनेस फैक्टरी, देहरादून में नौकरी करते हुए वे कर्मचारी यूनियन में सक्रिय रहे। सन् 1978 के करीब सैनिक होटल की शुरुआत उन्होने श्रीनगर में की थी।
सन् 1980 के आस-पास तब हम जैसे युवाओं के लिए श्रीनगर का ‘सैनिक होटल’ होटल नहीं वरन जमकर भंडारा छकने का आश्रय था। फ्री का खाना खाते हुए हमारे स्वाद को हुक्का गुडगुडाते पंवारजी की निश्चल मुस्कराहट और भी स्वादिष्ट बना देता था। तब वे हमारे लिए होटल मालिक नहीं अपने ही परिवारजन से दिखते। सत्तर-अस्सी के दशक में श्रीनगर (गढ़वाल) में अध्ययनरत अधिकांश युवाओं को ‘कंडारी टी स्टाल’ की ‘चाय-बंद’ और ‘सैनिक होटल’ के ‘भोजन’ ने अभावों की हीनता का बोध नहीं होने दिया। आज जो भी वो हैं उसमें इनका योगदान वो भुला नहीं सकते।
उस दौर में दरियादिल पंवारजी और फक्कड़ ‘मामू’ की सादगी हमें आकर्षित करती पर इन दोनों की स्पष्टवादिता और निडरता हमें और भी अचंभित करती थी। ये दोनों पुण्य व्यक्तित्व ‘मित्रों’ के लिए ‘दिल’ और ‘दुष्टों’ के लिए ‘दिमाग’ को खुला रखते थे। तभी तो ‘सादगी’ और ‘साहस’ इनके व्यक्तित्व के अहम् हिस्सा थे। आज भगवान सिंह पंवारजी और औंकार बहुगुणा ‘मामू’ अपनी वही ‘अप्रतिम सादगी’ और ‘अदम्य साहस’ की प्रेरणा को हमको देते हुए इस इहलोक से विदा हुए हैं।