विनोद पाण्डे
ये कोविड न जाने किस-किस को छीनने वाला है।
आज आखिर नरेन्द्रपाल सिंह की कोरोना से मृत्यु की खबर आ ही गई। लगभग एक सप्ताह पहले उनके देहान्त की अफवाह उड़ी थी, मगर जल्दी ही मालूम पड़ गया कि यह झूठ है। हम लोग खुश हुए, क्योंकि एक अंधविश्वास है कि अगर किसी की मौत की झूठी खबर आ जाये तो उस की उम्र बढ़ जाती है। तभी हमें यह पता चला कि वे कोविड से संक्रमित होकर बाॅम्बे अस्पताल (हल्द्वानी) में भर्ती हैं। पर उन्हें ज्यादा मोहलत नहीं मिली। जबकि हम सभी लोग मानते हैं कि वे एक लंबी उम्र के हकदार थे। उनका जीवन अपने लिए कम, दूसरों के लिए ज्यादा था।
लोग उन्हें ‘गंभीर’ या ‘गली वाले सरदारजी’ के नाम से ज्यादा जानते थे। गंभीर ब्रदर्स उनके प्रतिष्ठान का नाम था। मल्लीताल मामू हलवाई वाली गली में उनकी तीन दुकानें थीं। कभी उन्होेंने राशन की दुकान की, कभी हार्डवेयर की। अंततः एक बर्तन की, एक कपड़े की और एक रेडीमेड कपड़ों की दुकान उनका आखिरी धंधा रहा। वे पीडब्ल्यूडी के ‘ए ग्रेड’ के ठेकेदार भी थे। कुमाऊँ मंडल विकास निगम, उद्यान विभाग, चाय बोर्ड के अलावा राजभवन और हाईकोर्ट के काम वे करते रहते थे। अक्सर उनकी दुकान में वह सामान भी मिल जाता, जिसे अन्यत्र ढूँढ कर आप परेशान हो चुके होते, जैसे गैस का रेग्यूलेटर, गैस हीटर आदि। लोग कहते थे कि उनके दुकान में दाम और क्वालिटी दोनों ही सही होते हंै। अपने परिचितों से पैसे नहीं लेने का उनका शगल था। कभी तो लगता कि वे व्यापार भी शौक के लिए ही करते थे।
मेरा उनसे परिचय वर्ष 2000 में हुआ था, जब हम नैनीताल में ‘नयना ज्योति’ के नेत्र शिविर लगाने की सम्भावनायें ढूँढ रहे थे। हमारे पास पैसा नहीं था। इसलिए हम चाहते थे कि शहर के सक्रिय लोग इस अभियान मंे जुड़ जायें तो काम आसान हो जायेगा। मेरे भाई प्रदीप ने हमें नरेन्द्रपाल जी से मिलने का सुझाव दिया और पहली मुलाकात ही अभिन्न दोस्ती में बदल गया और हमें अपने नेत्र शिविरों के लिए एक ‘अंडरराइटर’ मिल गया। जिस तरह शेयर मार्केट में अंडरराइटर यह जिम्मेदारी लेता है कि अगर शेयर पूरे न बिक पायें तो बचे हुए शेयरों की पूंजी वह अदा करेगा, उसी तरह नेत्र शिविर की तैयारी के दौरान यदि हमारा कोई काम अटकता या कोई सामान कम पड़ता तो सरदार जी अपनी जादू की छड़ी घुमा कर समस्या हल कर देते।
उनकी जानकारी राजनीति से लेकर आम जनता की रुचि की बातों में हमेशा अपडेट रहती थी। फेसबुक जैसे सोशल मीडिया में वे सक्रिय रहते थे। उनकी शौकों में होम्योपैथी भी थी। इनकम टैक्स और सेल्स टैक्स में वे लोगों को पूरी जिम्मेदारी से राय देते थे। मुझे एक दिन बड़ा आश्चर्य हुआ उन्होंने मुझे बाजार में रोक कर कहा कि जंगलों की परिभाषा को लेकर दायर जनहित याचिका में जस्टिस धूलिया का जो निर्णय आया था, उसकी काॅपी नहीं मिल पायी। अखबारों में जो छपा उससे कुछ समझ में नहीं आया, इसलिए उस निर्णय की कापी पढ़नी पड़ेगी। उनकी रुचियां इतनी ही विस्तृत थीं, इसीलिए उनके मित्रों का दायरा भी विस्तृत था।
नरेन्द्रपाल नैनीताल गुरुद्वारे के एक स्तम्भ थे। गुरुद्वारे हमेशा से सेवा के पर्याय रहे हैं। शायद एक सिख होने के नाते ही उनमें सेवा भाव कूट-कूट कर भरा था। पर पंजाबी होने के कारण व्यापार भी उनके स्वभाव में था। इन दोनों कामों के बीच वे इस तरह सामंजस्य बनाये रखते थे कि हमेशा मुस्कुराते हुए ही दिखते थे। जब भी उनसे पूछते कि कैसे ये सब कर लेते हो तो उनका सीधा जवाब होता कि ‘‘बस हो जाता है।’’
कुछ साल पहले उनकी पत्नी का निधन हो गया था, जिसके बाद वे एक तरह से अकेले हो गये थे। उनकी एक बेटी है जिसका वे बीस वर्ष पूर्व विवाह कर चुके थे। उनके प्रतिष्ठान के कारिंदे, जिनके सुख-दःुख का वे हमेशा ख्याल रखते थे, ही उनका परिवार था। उसी परिवार का हम लोग भी एक हिस्सा बन गये थे। उनका वह परिवार बहुत बड़ा हो गया था। उनका जाना नैनीताल के सामाजिक सरोकारों के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है।
मामू वाली गली से गुजरने में अब बहुत अजीब लगेगा। तुम हमेशा याद आओगे सरदार जी!