गोविंद पंत ‘राजू’
हमारे साथ चालीस पैतालिस साल का संबंध छोड़ कर देवेंद्र नैनवाल तो देह मुक्त हो गये लेकिन उनके होने का अहसास हमेशा हम सब के बीच बना रहेगा। पिछले कुछ वर्षों से वे कई शारीरिक समस्याओं से जूझ रहे थे।कैंसर से उनकी लड़ाई काफी लंबी चली और अपनी जिजीविषा तथा आत्म शक्ति के बूते वे लगातार जीतते रहे।कुछ महीने पहले जब समस्या गंभीर होने लगी तो कई बार उन्हें अस्पताल में भर्ती भी होना पड़ा।भाभी की स्थिति भी लगातार गंभीर बनी हुई थी,ऐसे में उनके बड़े पुत्र संजय ने अपना दिल्ली का कामधाम छोड़ कर खुद को माता पिता की सेवा में समर्पित कर दिया।संजय ने घर को ही एक तरह के अस्पताल में बदल दिया।लेकिन देवेंद्र दा की हालत बिगड़ती चली गई और अंततः कई दिन तक लाइफ सपोर्ट प्रणाली से सहारे चल रही उनकी सांसें थम ही गईं।
पेशे से इंजीनियर होने के साथ वे बड़े भाषाविद भी थे।हिंदी,अंग्रेजी,संस्कृत, नैपाली और कुमाऊनी पर उनकी गहरी पकड़ थी। उर्दू और बांग्ला के भी जानकार थे। नैपाली से हिंदी और कुमाऊनी में उन्होंने अनेक अनुवाद किए थे।कुमाऊनी लिपि कैसी हो, कुमाऊंनी कैसे लिखी जाए इस बारे में वे हमेशा सोचते थे। इस बारे में उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण लेख भी लिखे थे।लोक भाषाओं में भी उनकी गहरी रुचि थी।
अपने पेशे से इतर समाज, संस्कृति और पत्रकारिता उनकी पहली पसंद थी।नैनीताल समाचार उन्हे बहुत प्रिय था। एक दौर ऐसा भी था जब वे बिला नागा हर रोज नैनीताल समाचार के दफ्तर में मौजूद होते थे।नैनीताल समाचार के संपादकीय सहयोगी के रूप में उनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता।
उनका तकनीकी ज्ञान अद्भुत था।हमारे बहुत सारे मित्रों के घरों के नक्शे उन्हीं की निगरानी और निर्देशन में तैयार हुए थे। पी डब्ल्यू डी की नौकरी के बावजूद उनका कैरियर एकदम बेदाग रहा। वे बहुत पारिवारिक व्यक्ति थे और लोगों की मदद करने में उन्हें बहुत आनंद आता था।
स्थानीयता से उनका बेहद लगाव था और कुमाऊनी लोक संस्कृति के भी वे श्रेष्ठ जानकार थे। ज्योतिष पर उनकी अच्छी खासी विशेषज्ञता थी । पहाड़ी खाने तथा देशी जड़ी बूटियों के बारे में भी उनका ज्ञान उच्चतम श्रेणी का था।लोक गीतों की उनकी जानकारी कई बार हम लोगों को चौंका देती थी।
संपन्न पारिवारिक पृष्ठभूमि के बाद भी वे बेहद सरल व्यक्ति थे।वे मनुष्यता से प्रेम करते थे और अपने संपर्क में आने वाले हर एक पर अपनी सरलता की छाप छोड़ देते ।बचपन के दिनों के किस्सों की उनके पास खान थी और उन्हें सुनाने में उनको बहुत खुशी होती थी।अपनी जिंदगी के शुरुआती बगावती दिनों में एन डी तिवारी किस तरह उनके नया बाजार वाले घर में छिप कर रहे थे यह किस्सा उनके मुंह से हमने कई बार सुना था।
नैनीताल समाचार में उनके सक्रिय दिनों में उनके सानिध्य में हमने भी बहुत कुछ सीखा।उनके प्रेम से जुड़ी एक घटना याद आ रही है। एक बार मैं जब काठगोदाम से ट्रेन से लखनऊ जा रहा था तो उन दिनों वे हल्द्वानी में थे।उन्होंने मुझसे कहा था कि वे मेरी पसंद के कबाब लेकर आएंगे।लेकिन जब वे काठगोदाम स्टेशन पहुंचे तभी ट्रेन चल पड़ी।इसके बाद वे स्कूटर भागते हुए हल्द्वानी पहुंचे और भागते भागते मेरे हाथ में पैकेट थमा कर ही सांस ली।ऐसा था उनका प्रेम !
बीमार रहने के बावजूद उनकी चैतन्यता काम नहीं हुई थी।सोशल मीडिया पर वे लगातार सक्रिय रहे।आखिरी पोस्ट में उन्होंने लिखा था ,अगर में यहां नहीं दिखूं तो मेरी खोज खबर ले लेना।आज जब वे नहीं हैं तो कैसी खोज कैसी खबर। उन्हें तो अब बस याद ही किया जा सकता है