चंदन बंगारी
लंबी बीमारी के बाद पर्वतीय साहित्यकार और कुमाऊँनी पत्रिका दुदबोली के संपादक और ‘चंद्रकुंवर बर्त्वाल स्मृति सम्मान’ से सम्मानित मथुरादत्त मठपाल जी नहीं रहे।
आऊंगा ह्यूँ हिमालकि कोखि बै निकइ बेर देस अ देसावर हुँ, चली रहौ गंग हो….कुमाऊँनी भाषा की इन पंक्तियों का मजमून हिमालय की कोख से निकलने वाली स्नेहमयी ” रामगंगा ” की उन उछलती, कूदती, फाँदती लोकधारा से है जिसके साथ पहाड़ का जीवन रच बस कर खिलखिलाता है। 2006 में प्रकाशित कुमाऊँनी भाषा की लोककृति ” फिर फ्योलि हँसैं ” में रामगंगा के साथ पहाड़ की सजीवता, सरलता , सहजता और सुदंरता को उकेरने वाले लोक साहित्यकार मथुरादत्त मठपाल किसी परिचय के मोहताज नही हैं। 1985 से कुमाऊँनी भाषा को लेखन से समृद्ध करते आ रहे आदरणीय मठपाल जी के 78 बंसत लोकसाहित्य धारा को छलछलाते हुऐ बीते। एक नदी की तरह उनके शब्दों का प्रवाह तन मन को लोकतत्व में सरोबोर करते हुऐ प्रकृति और पहाड़ के प्रति प्यार, समर्पण और आकर्षण जगा देता है। उनकी इस महान काव्य प्रतिभा को सम्मान देने के लिऐ प्रकृति के सहचरी बनकर काव्य कुसुम खिलाने वाले हिमवंत कवि चन्द्रकुँवर बर्त्वाल की स्मृति में दिया जाने वाले ” चन्द्रकुँवर स्मृति सम्मान” से उन्हे सम्मानित किया जा रहा है। उन्हे यह सम्मान मन्दाकिनी घाटी की साहित्यिक नगरी अगस्त्यमुनि में 19 अगस्त को प्रदान किया जायेगा।
29 जून 1941 को अल्मोड़ा जिले के नौला, भिकियासैण में जन्मे मथुरादत्त मठपाल ने शिक्षाविभाग से सेवानिवृति के उपरांत पंपापुरी स्थित आवास से वर्ष 2000 में दुदबोलि नाम से कुमाऊंनी पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया। दुदबोलि के 24 त्रैमासिक (64 पृष्ठ) अंक निकालने के बाद 2006 में इसे वार्षिक (340 पृष्ठ) किया गया। जिनमें लोक कथा, लोक साहित्य, कविता, हास्य, कहानी, निबंध, नाटक, अनुवाद, मुहावरे, शब्दावली व यात्रा वृतांत आदि को जगह दी जाती है। डाॅ. रमेश शाह, शेखर जोशी, ताराचंद्र त्रिपाठी, गोपाल भटट, पूरन जोशी, डाॅ. प्रयाग जोशी सरीखे 50 कवि व लेखक दुदबोली से जुड़े है
श्रीमद भगवत गीता का कुमाऊंनी अनुवाद छपने के बाद आगामी अंक में प्रसिद्व कवि ताराचंद त्रिपाठी द्वारा इंगलैंड से लाए मेघदूत का अनुवाद और नेपाली, कुमाऊंनी बालगीत भी छापे जा रहे हैं। मठपाल जी के स्वयं रचित पांच काव्य संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। आजादी से पहले व बाद में भी कुमाऊंनी भाषा में सार्थक लेखन होने के साथ ही अनेक पत्रिकाएं प्रकाशित भी हुईं। मगर ऐसी कौशिशें आमतौर पर हाशिए पर ही रहीं।
इनके बीच दुदबोली का लगातार बारह वर्षों तक प्रकाशन होना कुमाऊंनी साहित्य के क्षेत्र में किसी उपलब्धि से कम नहीं कहा जा सकता। हालांकि पत्रिका के बारह वर्षो के नियमित प्रकाशन के बावजूद पाठकों की संख्या महज 125 होना गंभीर प्रश्न है। लेकिन 72 साल की उम्र में भी उत्साह से लबरेज मठपाल जी के कहते है कि वह कुमाऊंनी भाषा व साहित्य के क्षेत्र में लेखक, प्रकाशक व संपादक के रूप में अपने हिस्से की लड़ाई लड़ रहे हैं। भले ही इसका नतीजा किसी भी रूप में देखा या लिया जाय।
कुमाऊंनी साहित्य बचाना ही मकसदः मथुरादत्त मठपाल जी कहते हैैं कि गुमानी से लेकर अब तक करीब 200 साल के बीच कुमाऊंनी भाषा में लिखे गए समग्र साहित्य का संकलन व प्रकाशन कर भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित करना मुख्य मकसद है। भले ही पत्रिका प्रकाशन कार्य में उन्हें घाटा उठाना पड़ता है, मगर इसे उनका शौक, लत या धुन कुछ भी कहा जा सकता है। आर्थिक मदद के लिए उन्होंने सरकार के सामने कभी हाथ नहीं फैलाया। कुछ चुनिंदा लोगों ने पत्रिका प्रकाशन में आर्थिक सहयोग भी किया। साहित्य संकलन, प्रूफ रीडिंग से लेकर तैयार पत्रिका को भेजने के लिए डाकघर तक ले जाने का कार्य अकेले करते हुए उच्चकोटी के साहित्य को ही पत्रिका में जगह देते हैं। वह कहते हैं कि पत्रिका के ज्यादातर पाठक बुजुर्ग हैं।
मगर दुदबोली में कुमाऊंनी साहित्य के संरक्षण में संतोषजनक कार्य हुआ है। उनका यह कार्य किसी दिन जरूर याद किया जाएगा। भाषायी अस्मिता को रोजगार से जोड़ने पर बल देते हुए तर्क देते हैं कि अंग्रेजी भाषा रोजगार में उपयोग होने के चलते हिंदी पर वजनदार है। पहाड़ों में साधारण बोलचाल में कुमाऊंनी के बजाय हिंदी का ज्यादा प्रयोग होने लगा है। वह कहना नहीं भूलते कि लोगों में अपनी भाषा को बचाने की ललक कतई नहीं है।
उनकी उपलब्धि व कार्य: .
1988 में उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान से सुमित्रा नंदन सम्मान.
2011 में उत्तराखंड भाषा संस्थान से डाॅ. गोविंद चातक सम्मान .
भाषा व साहित्य के क्षेत्र में किए कार्यों के चलते प्रदेश में कई शहरों में सम्मानित .
पांच कुमाऊंनी काव्य संकलन हो चुके प्रकाशित .
दुदबोलि के पहले 24 अंक फोटो स्टेट व स्क्रीन प्रिंटिग से छपवाए .
पत्रिका प्रकाशन में पेंशन का तीस फीसदी खर्च .
पत्रिका के संपादन से प्रकाशन व पाठकों को भेजने का कार्य स्वयं करते हैं .
बंगला, गढ़वाली, नेपाली, गुजराती साहित्य का अनुवाद प्रकाशित .
प्रसिद्व कवि स्व. कृपालु दत्त जोशी की रचनाओं का खोजकर संकलन कर मूक गीत शीर्षक से प्रकाशित किया।
गायब हुए छह हजार ठेठ कुमाऊंनी शब्दों व दो हजार मुहावरों का संकलन .
श्रीमदभगवत गीता व मेघदूत का कुमाऊंनी अनुवाद
लोकभाषा के लिए समर्पित मथुरा दत्त मठपाल जी को सादर नमन