विनीता यशस्वी
बहादुर सिंह कोटलिया जी का नैनीताल समाचार से बहुत पुराना रिश्ता था। नैनीताल की भूगर्भीय स्थितियों को लेकर वे हमेशा ही चिंतित रहते थे। कुछ वर्ष पूर्व ‘नैनीताल बचाओ अभियान’ की एक बैठक में उन्होंने कहा था कि स्थितियाँ ऐसी ही रहीं तो नैनी झील का जीवन 25 साल से ज्यादा नहीं होगा. नवम्बर 2022 में खूपी गाँव और उसके आसपास के इलाकों में हो रहे भू धंसाव को लेकर उनसे गंभीर चर्चा हुई थी। उस समय भी वे इस बात से आहत थे कि उन्होंने इस बाबत अपनी बातों को कई मंचों पर रखा, मगर कभी भी उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया गया। उस समय उनके साथ नैनीताल के कई इलाकों में एक यात्रा करके इन सभी इलाकों की भूगर्भीय स्थिति को समझने की भी बात तय हुई थी, पर वह योजना अधूरी ही रह गयी । उन्होंने उस वक़्त अपना एक आलेख भी दिया था, जो कि अंग्रेज़ी में है। ‘नैनीताल समाचार’ में जल्दी ही उसका अनुवाद प्रकाशित किया जाएगा। कोटलिया जी के अचानक हुए देहावसान पर नैनीताल समाचार परिवार अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है.
अचला जोशी
गुरुजी के देहावसान की सूचना मिली और मेरी नज़र टेबल में पड़ी अपनी बीएससी की पेलियोंटोलॉजी की कॉपी में जाकर ठहर गई, उनका पहला लेक्चर 06 मार्च 2019 को हमें पेलियोंटोलॉजी शब्द की स्पेलिंग याद करवाने से हुआ था। कोट पैंट और टाई लगाकर क्लास में प्रवेश करने वाले व्यक्ति लेक्चर खत्म होने के बाद जैसे चूने की खान से बाहर निकलते थे (प्रोजेक्टर वाली क्लास में भी चॉक डस्टर का इस्तेमाल करते थे), जब तक फॉसिल्स की मॉर्फोलॉजी वो हमें जबानी याद न करवा देते थे दूसरे सैंपल्स को देखने की अनुमति तक नहीं मिलती थी…बीएससी चतुर्थ सेमेस्टर में हम सबका सबसे पसंदीदा विषय पेलियोंटोलॉजी ही था। रविवार को एक्स्ट्रा क्लास भी ली जाती थी, क्लास अटेंड करने वालों को सर की ओर से एक चाय मिलती थी, उनका पढ़ाने का तरीका सबसे अलग था, हमारा मनोबल और विषय के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए वो हमें अपनी रिसर्च लाइफ के काफी किस्से सुनाते थे, और लेक्चर को हम ध्यान ओर एकाग्रता से सुने इसके लिए भी वो अचानक एक प्रश्न पूछा करते थे जिसका उत्तर हमें 30 सेकेंड्स में देना होता था, और जो उसका सही उत्तर देता था उसे सेमेस्टर के अंत में ट्राइमैक्स पेन मिलने का वादा था, हमारे बैच के सेमेस्टर अंत में 14-15 पेन आई थी। चाय का लालच , पेन का लालच कुछ भी कह लो सर की क्लासेज होती बहुत रोचक थी।
मैं तो व्यक्तिगत रूप से खुद को भाग्यपूर्ण मानती हूं कि गुरुजी के मार्गदर्शन से ही मुझे लिमिट-२०१९ इंटरनेशनल अलेक्जेंडर फॉन हंबोल्ट फाउंडेशन कोलोकियम में भाग लेने का मौका मिला और वहां से ही मेरा रुझान रिसर्च की ओर बढ़ा, कई संपर्क स्थापित हुए और भूविज्ञान के क्षेत्र में मेरा जो भी योगदान रहेगा उसकी नींव स्थापित करने का श्रेय हमेशा गुरुजी को ही जायेगा।
भूविज्ञान के बहुआयामी परिदृष्टता के धनी व पुरामौसम विज्ञान के ज्ञाता अब हमारे बीच नहीं रहे पर उनके अपार ज्ञान का एक सूक्ष्म भाग हमारे बीच रिसर्च पेपर के माध्यम से सदैव जीवित रहेगा और हम सबको अपना सर्वोत्तम देने के लिए प्रेरित करता रहेगा।
अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि