दिवा भट्ट
अविश्वसनीय जैसा लगता है कि डॉक्टर शेर सिंह बिष्ट नहीं रहे, लेकिन यह समय ऐसा आया है कि ऐसी अनेक अविश्वसनीय सूचनाएं लगातार आ रही हैं और हमारी संvवेदना को झकझोरती हुई अपने सच होने के प्रमाण भी देती जारही हैं। प्रोफेसर शेर सिंह बिष्ट लगभग चार दशक तक कुमाऊं विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करने के पश्चात् मार्च 2018 में अवकाश ग्रहण करने के बाद हल्द्वानी जाकर रहने लगे थे।
10 मार्च 1953 को अल्मोड़ा जिले के भनोली क्षेत्र के डुंङगरा गांव में जन्मे शेर सिंह जी ने हाईस्कूल तक की पढ़ाई अपने गांव से की ।उसके बाद सर्वोदय इंटर कॉलेज जैंती से इंटर करने के पश्चात् उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय के अंतर्गत अल्मोड़ा कॉलेज से बी ए तथा कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल से हिंदी विषय के साथ एम. ए. और पीएचडी किया था। तत्पश्चात उन्होंने कुमाऊं विश्वविद्यालय में ही अध्यापन प्रारंभ कर दिया था।
प्रोफेसर बिष्ट हिंदी साहित्य के एक प्रखर और बहुआयामी विद्वान थे मध्यकालीन भक्ति साहित्य, काव्यशास्त्र, आलोचना साहित्य तथा छायावादी साहित्य का उन्होंने गहन अध्ययन किया था।इन विषयों में अनेक पुस्तकें भी लिखी थी।कवि सुमित्रानंदन पंत के साहित्य का ध्वनिवादी अध्ययन उनकी एक अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक है। इसके साथ-साथ कुमाऊनी भाषा के उत्थान में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है । कुमाऊनी- हिंदी- अंग्रेजी शब्दकोश ,कुमाऊनी की बोलियों का सर्वेक्षण, कुमाऊनी की कहावतों और मुहावरों के कोष, कुमाऊनी व्याकरण, कुमाऊनी भाषा के विकास और स्वरूप आदि उनकी अनेक पुस्तकें हैं। कुमाउनी भाषा -साहित्य के इतिहास, व्याकरण आदि पर काम करने के साथ-साथ उन्होंने कुमाउनी में रचनात्मक पुस्तकें भी लिखी हैं; जिनमें इजा और भारत माता जैसी काव्य पुस्तकों के साथ-साथ निबंध, कहानी इत्यादि गद्य विधाओं में भी रचनाएं की हैं। कुमाउनी भाषा पर उनकी जबर्दस्त पकड़ है। उनकी रचनाएं अभिव्यक्ति की वैविध्यपूर्ण क्षमताओं से परिपूर्ण कुमाउनी भाषा की विविध भंगिमाओं तथा शब्दावली का खजाना हैं।
कुमाउनी भाषा को कुमाऊं विश्वविद्यालय के एम. ए. के पाठ्यक्रम में शामिल करने का श्रेय प्रोफेसर केशव दत्त वाली को जाता है , तो स्नातक स्तर पर कुमाउनी को एक विषय के रूप में पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने के लिए प्रोफेसर बिष्ट को सदैव याद किया जाएगा। कुमाउनी और हिंदी दोनों भाषाओं में सतत सृजनशील रहते हुए शेर सिंह जी ने अपने ज्ञान को पुस्तकों के रूप में भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया है। इसके लिए उन्हें अनेक सम्मान भी समय-समय पर प्राप्त होते रहे।
निरंतर पढ़ने-लिखने में निरत रहने वाले बिष्ट जी की रचनात्मक उपलब्धियों में उनकी जीवन संगिनी श्रीमती विमला बिष्टजी का बहुत बड़ा योगदान है, जो छाया की भांति सतत उनके साथ रह कर उन्हें समस्त अनुकूलताएं उपलब्ध कराती रहीं। ईश्वर उन्हें वियोग की इस अथाह पीड़ा को सहने और आगे की यात्रा निर्विघ्न संपन्न करने की शक्ति प्रदान करे।
अध्ययन, और लेखन मैं ही सतत संलग्न रहने वाले प्रोफ़ेसर बिष्ट गंभीर,अंतर्मुखी, एकांत प्रिय, आत्माभिमानी और आत्मविश्वास से परिपूर्ण स्वभाव के थे। विभागीय सहयोगी के तौर पर हमने तीन दशक से अधिक समय तक उनके साथ काम किया। बहुत से कार्यक्रमों का मिल कर संचालन, संपादन किया। परस्पर सलाह- मशविरा, स्पर्धा, बहस और सहयोग करते हुए एक-दूसरे से बहुत कुछ सीखते भी रहे। कई बातें एक साथ याद आरही हैं ।
नियमित- संयमित जीवनचर्या का पालन करने वाले ह्रष्ट पुष्ट व्यक्तित्व वाले शेरसिंह जी इस तरह कोविड महामारी की भेंट चढ़ गये! 17 अप्रैल को सुशीला तिवारी अस्पताल,हल्द्वानी में भर्ती हुए और 18-19 अप्रैल की रात के 3 बजे हार स्वीकार करके चले भी गये! इस पर विश्वास नहीं होता। उनकी विद्वता,रचनात्मकता और कर्मठता के कारण उनके अनेक प्रशंसक बने, जो सभी आज अत्यंत दुखी हैं ।
उनके आकस्मिक निधन से सभी गहरे आघात का अनुभव कर रहे हैं। हम सब उनकी आत्मा की चिर शांति की कामना करते करते हैं और उनकी रचनाओं के रूप में अपने बीच में उनकी उपस्थिति को सदैव अनुभव करते रहेंगे।